Wednesday, December 30, 2020

नाम नहीं बताऊंगा

मुझे आज जिस व्यक्ति का इंटरव्यू करना था वह अपनी वेशभूषा से किसान लग रहा था और मेरे स्टूडियो में उसी लापरवाही से बैठा था जैसा कि कुछ समय पहले वह धरना स्थल पर अपनी ट्रेक्टर ट्राली में बैठे था। स्टूडियो मैं लगे कैमरों से वह डरा हुआ नहीं था बल्कि मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह कैमरों को डराते हुए कह रहा हो कि अब मैं तुमको बताऊंगा कि मैं कौन हूं।
मेरा अनुभव कहता है कि आजकल मध्यवर्ग में क्रोध का स्तर कुछ अधिक बढ़ा हुआ है। उसको सरकार से इतनी शिकायतें हैं कि ज़रा सी बात पर यह वर्ग उग्र हो जाता है।  यही मध्यवर्ग आजकल किसानों की शक्ल में संघर्ष करते हुए सड़कों पर है। जितना क्रोध इस समय इस वर्ग में है उतना गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जीने वाले गरीबों या अमीरों में नजर नहीं आता।
मैंने उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक कई बार देखा मुझे ऐसा लगा कि यह एक व्यक्ति ना होकर स्वयं मुकम्मल आंदोलन है, जो मेरे प्रश्न पूछते ही फट जाएगा और पल भर में सरकार विरोधी शिकायतों की फेहरिस्त खोल कर रख देगा। मैंने इंटरव्यू आरंभ करते हुए उससे पूछा- तुम्हारा नाम क्या है।
उसने मेरे शक को सही साबित करते हुए एक प्रकार से फटते हुए मुझसे ही प्रश्न कर दिया- क्या मेरी बेइज्जती करने के लिए बुलाया है?
मैंने अपने लेहजे में नरमी बरतते हुए कहा- नाम पूछना बेज्जती नहीं होती है। इंटरव्यू का नियम होता है कि इंटरव्यू देने वाले का नाम पूछा जाए। तुम अपना नाम बताओ ताकि हमारे दर्शकों को मालूम हो सके कि वह किसकी बात सुन रहे हैं।
उसने कहा- मैं अपना नाम सर्वजनिक नहीं करना चाहता इस कारण नाम नहीं बताऊंगा।
संवाद को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- ऐसा क्या है तुम्हारे नाम में जो तुम सर्वजनिक नहीं करना चाहते। तुम इस समय नेशनल चैनल पर हो, करोड़ों लोग तुम्हारा नाम जानना चाहते हैं। पर मैं करोड़ों लोगों को अपना नाम नहीं बताना चाहता, उसने साफ शब्दों में कहा।
मैंने पूछा- इसका कारण?
उसने कहा-मेरी पहचान किसान है जो नाम बताते ही समाप्त हो जाएगी।
नाम से किसानियत का क्या संबंध है, मैं समझा नहीं। उसने कहा-बहुत गहरा संबंध है,आप अपना इंटरव्यू शुरू कीजिए।
यह समस्या तो बड़ी गंभीर है मैंने एक बार फिर कौशिश की। उसने कहा-ऐसा ही समझ लीजिए। मैंने संवाद जारी रखते हुए अपने चर्चित पत्रिकाना अंदाज में कहा-मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हारा नाम मुगल कालीन की याद दिलानेे वाला है ?
उसने प्रश्न का उत्तर ना देते हुए केवल इतना कहा कि जब मैं अपना नाम बताऊंगा तो परेशानी मेरे लिए कम तुम्हारे लिए ज्यादा खड़ी हो जाएगी।
मैंने चौंकते हुए उससे पूछा ऐसा क्यों?
उसने कहा-मान लो अगर मैंने अपना नाम तुम्हारी अटकलों के अनुसार मुगलकालीन युग से संबंधित बता दिया तो तुम असल मुद्दों से भटक कर मेरा नाम बदलने, मेरी घर वापसी या मेरे नाम के पीछे पाकिस्तान या चायना को तलाश करने लग जाओगे, जैसा कि भविष्य के अनुभव कहते हैं और वैसे भी तुम्हें मेरे नाम से क्या लेना देना है तुमने तो स्वयं मेरा नाम अन्नदाता रखा था फिर अचानक ही तुमने मुझे इतने नाम दे दिए कि मैं स्वयं कंफ्यूज हूं कि मैं स्वयं को टुकड़े टुकड़े गैंग कहूं, अर्बन नक्सल कहूं, दलाल, राजद्रोही, आतंकवादी, खालिस्तानी कहूं। इन सबके अतिरिक्त आलसी, निठल्ले, बहके हुए लोग कहते हुए पिछले एक माह से तुम्हारी जुबान नहीं थकी है। लोगों ने अपने भाषणों में या अपने ट्वीट द्वारा मुझे इन नामों से केवल एक बार ही बदनाम किया होगा जबकि तुम्हारे चैनल 24 घंटे मैं कई हजार बार इन नामों के सहारे कभी मेरे संघर्ष पर घड़ियाली आंसू बहाकर तो कभी मेरे मान सम्मान पर सिधा हमला करके मुझे रूसवा कर रहे हैं। अब तुम मुझे किसी भी नाम से पुकारो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर उसने एक गहरी सांस ली और थोड़ा रुक कर बोला मुझसे तुम किसी नए नाम की उम्मीद क्यों रखते हो। मैं नहीं चाहता कि इस संघर्ष के गर्भ से जन्म लेने वाली आवाज़ के चेहरे पर एक नए नाम का टेग अभी से लगा दिया जाए, ताकि तुम उसको पंजाब, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र या हिंदू, मुसलमान,सिख, ईसाई और जातियों में बांट कर उसको कमजोर कर सको। यह कहते हुए वह भावुक हो गया और उसकी आंख से एक आंसू टपक कर जब जमीन की ओर बढ़ने लगा तो मैं चाहते हुए भी उसको अपने हाथों की हथेली पर सजा नहीं सका क्योंकि पत्रकारिता मेरी मजबूरी थी।
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धन्यवाद सहित 

शाहिद हसन शाहिद

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Sunday, December 20, 2020

मैं भी किसान हूं

अचानक मेरे अंदर का किसान जाग उठा और बाग़ियाना अंदाज में कहने लगा कि मैं भी किसान हूं और आंदोलन में शरीक होने के लिए सिंधु बॉर्डर पर जाना चाहता हूं।
मैंने उसको हैरत से देखा और पूछा तुम कब से किसान हो गए?
उसने भी मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा और कहा- मैं तुम्हारे अंदर एक साहित्यकार की भूमिका में काफी समय से छवियां गढ़ने का रचनात्मक कार्य कर रहा हूं। भिन्न भिन्न प्रकार की पृष्ठ भूमियों पर चरित्र पैदा करके तुम्हारी कहानियों को जीवन्त करता रहा हूं। इसके पश्चात भी क्या मुझे यह बताने की आवश्यकता है कि मैं भी किसान हूं, तुमको ज्ञात होना चाहिए कि जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से कुछ भी पैदा कर रहा है वह किसान है। मैं छवियां पैदा करने वाला किसान हूं और अपने किसान भाइयों के संघर्ष को बल देने के लिए संघर्ष स्थल पर जाना चाहता हूं। 
उसकी दलील सुनने के बाद मैंने कहा- मैं समझ गया गमले में पुदीने की खेती करने वाले किसान की तरह तुम भी एक किसान हो,पर इसके लिए संघर्ष का ही रास्ता क्यों?  
मुझे इस समय किसान कई वर्गों में बटे नज़र आ रहे हैं, एक वर्ग संघर्ष कर रहा है, जबकि दूसरा सम्मेलन। तुम सम्मेलन वाले किसान क्यों नहीं हो जाते जहां खतरा कम है कुछ ना करने के पश्चात भी रंग चोखा है।
संघर्ष का दूसरा नाम ही किसान है, सम्मेलन तो तुम्हारे जैसे साहित्यकार, राजनीतिक या मुद्दों से फरार होने वाले लोग करते हैं। उसने मेरे बग़ैर  मांगे सुझाव का उत्तर देते हुए कहा।
अब मैं समझा कि कुछ लोग किसानों को अर्बन नक्सल क्यों कह रहे हैं। मैंने एक बार फिर उसको अपने कटाक्ष के निशाने पर लेते हुए कहा। उसने मेरी बात सुनी अनसुनी करते कहा- मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन मैं यह जानता हूं कि तुम्हारी वे सब कहानियां जो तुमने समाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए लिखी हैं और जिस पर तुमको बड़ा गर्व है वे सब बकवास हैं। 
यह अचानक से मेरी कहानियां बकवास किस प्रकार हो गयीं उनको तो लोगों ने पसंद किया है उनकी प्रशंसा की है। मैंने उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो उसने कहा, बर्फ जैसी ठंडी रात में खुले आसमान के नीचे संघर्ष करने वाले किसानों के साथ ना तो तुमने अभी तक ठंडी चाय पी है और ना ही उनके साथ लकड़ी जलाकर अलाव पर हाथ तापें हैं। मैंने उसकी बात को बीच में ही रोकते हुए कहा कि देसी गीजर से हुए गरम पानी से नहाते हुए भी तुम ने मुझे नहीं देखा होगा। उसने कहा- ठीक है....! इन कड़े अनुभवों से जब तक तुम नहीं गुज़रोगे किसानों की ही नहीं किसी भी समाजिक संघर्ष की कहानी नहीं लिख सकते यह मेरा विश्वास है। मैंने संवाद को आगे बढ़ाते हुए कहा- लंगर में काजू किशमिश,बादाम और पिज़्ज़ा खाने के बाद जिम और मसाज का मज़ा लेने वाले किसानों के संघर्ष की कहानी मैं नहीं लिख सकता इतना सुनकर ही मेरा पेट खराब हो जाता है।
काजू बादाम सुनकर पेट नहीं खराब होता है किसानों के कंधों पर रखी वह अदृश्य बंदूक देखकर तुम्हारा पेट खराब हो जाता है जिसका भय दिखाकर सरकार विपक्ष को निशाना बना रही है। उसने तुरंत उत्तर देते हुए कहा।
यह बात तुमने ठीक कही, बंदूक जैसी कोई चीज इस संघर्ष में डराने का काम तो कर रही है यह मैं भी महसूस कर रहा हूं। 
मेरी बात सुनकर वह एक क्षण के लिए खामोश हुआ और फिर बोला कुछ लोगों कह रहे हैं कि किसानों को संयोजक ढंग से भ्रमित किया जा रहा है तुमने सुना और भय के कारण आंखें बंद कर लीं और खामोश हो गए परंतु जब किसानों ने कहा कि हमको भ्रष्टाचारी,आतंकवादी,अर्बन नक्सली,टुकड़े टुकड़े गैंग,देशद्रोही, खालिस्तानी और बारबाला एंटोनियो के गुलाम कहकर बहुत सी बंदूकों से गोलियां दागी जा रही हैं तो तुम किसानों पर लगाए गए पचास लाख के जुर्माने के ज़िरो गिन्ने में व्यस्त रहे। यह कहां का इंसाफ है अंतरात्मा भी कोई चीज होती है। इतना कहकर उसने मुझे सोचने के लिए छोड़ दिया। 
अब मैं सच कहूं तो सच्चाई यह है कि मेरे अंदर मौजूद किसान ने मुझे अंतरात्मा की उस कसौटी पर खड़ा कर दिया है जहां मेरे लिए यह फेसला करना मुश्किल है कि आंखों पर काली पट्टी बांधकर इंसाफ करने वाली देवी की जगह अगर मैं स्वयं होता तो मुझे किसान की मर्यादा पर चली गोलियां नज़र आतीं या छुपा हुआ वह एजंडा, जो किसान को किशमिश बादाम की जगह भविष्य में सूखे चने खाने पर मजबूर कर देगा।
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शाहिद हसन शाहिद
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Thursday, December 10, 2020

ज़िद्दी बुड्ढा

मेरी पत्नी मेरी परवाह नहीं करती, मेरी बेटी मेरी बात नहीं सुनती, बेटा प्राय: मुझसे नाराज़ रहता है। बहू द्वारा मेरा निरादर करना आम 
बात है, करीबी रिश्तेदार मुझसे दूर भागते जा रहे हैं संक्षेप यह कि किसी के पास मेरे लिए ना तो समय है ना आदर-सम्मान। मोदी सरकार की तरह हो गया हूं मैं, कोई मुझसे खुश ही नज़र नहीं आता। जिसको देखो वह धरना प्रदर्शन कर रहा है। दिन प्रतिदिन दयनीय होती मेरी हालत पर लोग हंसते और मज़ाक उड़ाते तो नज़र आते हैं पर समाधान के लिए बढ़ते हाथ नज़र नहीं आते, बहुत तनाव भरी परिस्थितियों से गुजर रहा हूं मैं आजकल।
मेरे एक बुजुर्ग मित्र ने जब मुझसे अपना यह दर्द बयान किया तो मैं भावुक हो गया जबकि मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि इस आधुनिक मशीनी युग में इस बुजुर्ग की यह अकेली कहानी नहीं है यह कहानी तो अब घर घर की कहानी बन चुकी है, पता नहीं इस युग के बच्चों को यह क्या हो गया है कि वे अपने बुजुर्गों का आदर-सत्कार करना ही भूल गए हैं। 
टूटते रिश्तों और दम तोड़ती मर्यादा को पुनः स्थापित करने में अपनी भूमिका तलाश करते हुए मैंने उस बुजुर्ग से एक बुद्धिजीवी की तरह समझाया कि आप शब्दों की शक्ति को भूल गए हैं इसलिए दुखी हैं आप भूल गए हैं कि शब्द तोप और तलवार से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं यह जानते हुए भी आपने तोप और तलवार तो उठा ली है और उन शब्दों को भूल गए हैं जो जख्मों पर मरहम से ज्यादा तेज काम करते हैं। मेरी बात सुनकर बुजुर्ग ने मुझे शक भरी नजरों से घूरते हुए कहा-तुम कहना क्या चाहते हो ?
मैंने विश्वास भरे स्वर में कहा-दुनिया की समस्त समस्याओं का हल चंद शब्दों के जादू में छुपा है। शब्दों से जादू करना सीख लीजिए और फिर देखिए चमत्कार कि किस प्रकार आप से नफ़रत करने वाले भी आपके प्रिय बन जाते हैं।
बुजुर्ग ने शक भरी नज़रों से मेरी ओर देखा, जैसे मैं कोई पेशावर जादूगर हूं, जो अपने शब्दों के जादू से जल्द ही अपनी जेब से खरगोश निकालकर उसे दिखा कर अचंभित कर दुंगा।
बुजुर्ग को आश्चर्य से देखते हुए मैंने पूछा- इस प्रकार क्यों देख रहे हैं, बात को समझिए लोगों के दरमियान समन्वय बनाने के लिए संवाद की आवश्यकता होती है और संवाद शब्दों से संभव होता है। आंकड़ों या इतिहास के पन्नों से नहीं। आपकी हर समस्या का हल शब्दों के इस जादू में छुपा है जो मैं आपको बताने वाला हूं।
बुजुर्ग ने जिज्ञासा से पूछा-वह जादुई मंत्र क्या है, जो मुझे नहीं आता और आप मुझे बताने वाले हैं।
मैंने कहा वह बहुत सरल है। आपको केवल कुछ शब्द अपने परिजनों से इस प्रकार कहना हैं कि मैंने तुम्हारी हर वह गलती जो तुमने मेरे आत्मसम्मान को पहुंचाई है उसके लिए मैं तुमको क्षमा कर रहा हूं अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है, इन जादुई शब्दों के कहने के बाद आप कमाल देखिएगा कि किस प्रकार आपकी आत्मा पर आए सब घाव खुद-ब-खुद भर जाएंगे और आपके अपने आपको अपनी पलकों पर बिठाने के लिए विवश हो जाएंगे। आपको केवल अपने जादुई शब्दों पर पूरा उतरना पड़ेगा जो निस्वार्थ होंगे और याद रखना होगा कि किसी को क्षमा कर देना जीवन का वह मंत्र है जो जीवन को आशावादी व ऊर्जावान बना देता है। याद रखिए नाराज़गी का कारण दूसरे नहीं आप स्वयं होते हैं इसलिए पहल भी आपको स्वयं से ही करते हुऐ अपनी बहू, बेटी और पत्नी को उनकी गलतियों के लिए क्षमा करना होगा। इस प्रकार आप स्वयं को तनाव मुक्त कर पाएंगे। 
मेरे सकारात्मक सुझाव को बीच में रोकते हुए बुजुर्ग ने बड़ी हिकारत से मुझे देखा और अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेहराते हुए कहा- बातें बहुत अच्छी कर लेते हो परंतु वे स्वभाविक नहीं होती हैं, मैंने आश्चर्य से पूछा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
बुज़ुर्ग ने बड़ी सहजता के साथ कहा-मैं अपने परिजनों को अच्छी तरह जानता हूं आपका परामर्श मानकर अगर मैंने अपनी बहू बेटी और पत्नी से आपका बताया हुआ मंत्र कह भी दिया कि कोई बात नहीं मैंने तुम्हारी हर गलती के लिए तुमको क्षमा कर दिया है। अब मुझे तुम लोगों से कोई शिकायत नहीं है। सुख शांति बनाए रखो और आराम से रहो। जिसके उत्तर में उन्होंने पलटकर मुझसे यह कह दिया कि तुमसे क्षमा मांग कौन रहा है, ऐ- सटठियाए हुए बूढ़े और रही बात शिकायत की, तो वह हम सबको तुम से है, तुमको हमसे कोई शिकायत नहीं है, हम तो सामान्य तौर पर ही रह रहे हैं; परंतु तुमने अपने नए-नए नियमों व कानूनों से दुखी कर रखा है इसलिए हम तुमको माफ करने के बिल्कुल तैयार नहीं हैं। हमें तो सिर्फ तुमसे छुटकारा चाहिए।
इस परिस्थिति में आप अपने जादुई शब्दों को क्या नाम देंगे।
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Monday, November 30, 2020

लव-जिहाद

मेरी चिंता का कारण यह नहीं है कि मुझे पेट भरने के लिए रोटी चाहिए, चिंता का कारण यह भी नहीं है कि मेरे सर पर छत का साया नहीं है, ना ही यह है कि मुझे शरीर ढकने के लिए कपड़े की आवश्यकता है। यह सब भौतिक सुविधाएं तो भगवान ने मुझे बेहिसाब दे रखी हैं। विलासिता पूर्ण जीवन, सुंदर व सुशील पत्नी, संस्कारी बच्चे, घनिष्ठ मित्रों की भीड़ के अतिरिक्त नौकरों की पूरी फौज,"जैसा आपका आदेश" कहने वाले 
जी-हज़ूर्ये, दूर वह क़रीब के रिश्तेदार, इज़्ज़त, दौलत हर प्रकार की चकाचौंध सब कुछ तो है मेरे पास फिर भी मैं मन से अशांत हूं। एक बेचैनी एक तनाव मैंने अपनी दौलत से खरीद रखा है, जो अब मेरा भाग्य बन चुका है और मैं अपने ही हाथ का खिलौना बन कर रह गया हूं।
पूरी पूरी रात जाग कर सीसीटीवी कैमरों द्वारा घर व बाहर की हलचल पर अपनी पत्नी, बहू,बेटियों और विशेषकर उस बड़ी-बड़ी स्टाइलिश मूछों वाले अपने पसंद के सिक्योरिटी गार्ड पर नज़र रखता हूं, जिसको विशेष तौर पर मैंने अपनी सुरक्षा के लिए नियुक्त किया है और जो हर समय हाथ बांधे मेरी सेवा में उपस्थित रहता है।
साहस, वीरता एवं पौरूष की प्रतीक उसकी मूछें दिन के समय मुझे और मेरे परिवार को प्रभावित वह उत्साहित रखती हैं। अपने सेवकों में मुझे वह पसंद भी अधिक है; परंतु रात आते ही उसकी शानदार मूछें मुझे लव-जिहाद के भूत की भांति डराने लगती हैं।
अपने कमरे के बाहर रात के समय जब मैं इन पहरेदार मूछों को अपनी व परिवार की सुरक्षा करते देखता हूं तो डर जाता हूं और भय के कारण पूरी-पूरी रात जागकर इन खतरनाक मूछों की मामूली सी मामूली हरकत पर नज़र रखता हूं ताकि यह मूछें कोई अनहोनी ना कर जाएं। मैं आपको सही बता रहा हूं कि मेरे मन ने इस अंजान भय को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है कि मेरी जरा सी भूल मेरे लिए काल बन सकती है और यह खतरनाक मूछें एक न एक रात कोई शिकार अवश्य कर डालेंगी।
इस खौफ के कारण ही मैं अपने कमरे में रखे सीसीटीवी मॉनिटर पर पूरी पूरी रात जाग कर नजरें जमाए बैठा रहता हूं ताकि ना निगाह हटेगी और ना दुर्घटना घटेगी।
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Friday, November 20, 2020

चटपटी चाट के पत्ते

मेरे दिल के डॉक्टर का कहना है कि मैं नमक और तेज मसालों का सेवन ना करूं क्योंकि मैं ब्लड प्रेशर का मरीज हूं।
हड्डियों का डॉक्टर कहता है कि दही,खट्टी- मीठी चटनी, छिलके दार दालें, दूध से तैयार किसी भी प्रकार के व्यंजन का सेवन ना करूं यह सब यूरिक एसिड उत्पन्न करते हैं। जिस कारण घुटनों का दर्द बढ़ जाता है।
मेरा अनुभव भी यही कहता है कि थोड़ा सा असंतुलित भोजन मेरे दिल की धड़कने तेज करने, सांस फूलने व घुटनों के दर्द को बढ़ाने के लिए प्रर्याप्त होता है।
स्वास्थ्य की इस खराब स्थिति के बावजूद, मैं अपनी फूली हुई सांस व एक वफादार दोस्त की तरह दिन-रात साथ रहने वाले अपने घनिष्ठ मित्र यानी घुटनों के दर्द के साथ नगर के मीना बाजार की मशहूर चाट वाली दुकान पर शाम होते ही पहुंच जाता हूं।
इस दुकान की चाट पापड़ी और गोलगप्पे अपने तीखे स्वाद और तेज़ मसालों के कारण शहर के चटोरों में काफी मशहूर हैं। दुकान पर स्वस्थ लोगों का हर समय मेला लगा रहता है।अब आप सोच रहे होंगे कि इन स्वस्थ चाट के चटोरों के बीच मेरा जैसा अस्वस्थ व्यक्ति जिस पर चाट खाने की पूर्णतः पाबंदी है वह अपने स्वास्थ्य का ख्याल ना रखते हुए चाट की दुकान पर जाने का जोखिम क्यों मोल लेता है? कौनसी ऐसी मजबूरी है कि बगैर चाट खाए यह व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता? चाट की दुकान से उठने वाले मसालों की सुगंध उससे कुछ भी अनर्थ करा सकती है। इन प्रश्नों के उत्तर में, मैं केवल इतना ही कहूंगा की चाट की दुकान पर जाना मेरी कोई मजबूरी नहीं है। मुझे स्वंय पर और अपनी ज़ुबान पर इतना यकीन और भरोसा है कि स्वादिष्ट चाट मेरी सेहत से खिलवाड़ करने का हौसला नहीं कर सकती। मेरे वहां जाने का कारण तो एक तलाश है जो मुझे उन गरीब बच्चों के दरमियान ले जाती है, जो चाट खाने की अपनी चाहत में अमीरों द्वारा फेंके चाट के झूठे पत्ते प्राप्त करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। नंग धड़ंग यह मासूम बच्चे अपनी फ्री स्टाइल कुश्ती दिखाते समय चोट भी खा जाते हैं फिर भी हार नहीं मानते और झूठे पत्तों को अपना हक़ समझते हुए अपनी जद्दोजहद में अपने ही भाइयों के साथ लड़ने का कौशल अमीरों को दिखाते नहीं थकते हैं, जबकि चाट खाने के शौकीन लोग अपने मनोरंजन के लिए अपने चाट के झूठे पत्ते उन बच्चों की ओर रुक-रुक कर फेंकते हैं, ताकि तमाशा जारी रहे। मैं तो केवल एक मुर्दा समाज की तरह यह देखने जाता हूं कि यह गरीब बच्चे कब बड़े होंगे और कब इस बात को समझेंगे कि उनकी गरीबी का मजाक उड़ाने वाले इन अमीरों के लिए वह कब तक मनोरंजन का साधन बनते रहेंगे। अमीरों की सोच में कब बदलाव आएगा यह मैं नहीं जानता या उन में कब कोई ऐसा अमीर पैदा होगा जो इस मनोरंजन के बाद या पहले इन बच्चों को एक चाट का पत्ता खिलाने का हौसला रखता हो यह भी मैैं नहीं जानता, हां...! यह अवश्य जानता हूं कि बच्चे गरीब हैं, पिछड़े हैं और जरूरतमंद हैं।अमीरों को सोचना चाहिए की चाट की खुशबू और चोट का दर्द तो सब को एक ही समान विचलित करता है चाहे वह अमीर हो या गरीब हो।

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Tuesday, November 10, 2020

मुझे इंटरव्यू देना है

साधू सा देखने वाला एक व्यक्ति मेरे कार्यालय मैं आया और कहने लगा- मुझे इंटरव्यू देना है, पत्रकार बुलाओ।
मैंने सर से पैर तक उसको कई बार देखा और मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नया नया साधू बना है, पहले यह निश्चय ही मिडिल क्लास का रहा होगा, उसकी मनोस्तिथि देखते हुए मैंने उससे कहा दिया कि हम साधू-संतों के इंटरव्यू नहीं करते हैं। इतना सुनते ही वह क्रोधित हो गया और बिगड़ कर कहने लगा-
इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी कोई इज्जत ही नहीं है। उसके गुस्से को देखते हुए मैंने कहा- इज्जत है, परंतु वह 5 वर्ष बाद तुमको मिलती है अभी समय नहीं आया है,जब समय आएगा तो इज्जतदार लोग तुम्हारे दरवाजे पर इज्जत लेकर पहुंच जाएंगे उस समय तुम इज्जत दार बन जाना और इंटरव्यू देना। मेरा कटाक्ष सुन कर उसने शक भरी नज़रों से मुझे देखा और पूछा- तुम कौन हो? मैंने कहा- लेखक...! लेखक सुनते ही उसने बुरा सा मुंह बनाया और कहा- मुझे तुमसे बात नहीं करनी है, मुझे दबंग पत्रकार चाहिए, जो आंखों में आंखें डालकर कड़क आवाज मैं पूछ सके मुझे जवाब चाहिए। ऐसा पत्रकार बुलाओ। मैंने कहा- मैं पत्रकार भी हूं और लेखक भी टू इन वन। उसने टू इन वन पर गौर ना करते हुए कहा -लेखक पत्रकार नहीं हो सकता। उसका स्पष्ट विश्लेषण सुनकर मैंने कहा- अब लेखक और पत्रकार में कोई फर्क नहीं रह गया है, बड़े-बड़े नेताओं के इंटरव्यू अब लेखक ही पत्रकार बनकर कर रहे हैं और तुम कह रहे हो कि लेखक पत्रकार नहीं हो सकता
तुमको मालूम नहीं की देश बदल चुका है,अब लेखक ही नहीं फिल्मों के नायक भी इंटरव्यू करने लगे हैं।पत्रकार तो केवल अपने स्वामी द्वारा दिए हुए निर्देशों का पालन करते हुए केवल चीखने चिल्लाने तक ही सीमित रह गए हैं। अपनी बात बीच में रोकते हुए मैंने उससे कहा- छोड़ो इन बातों को तुम बताओ इंटरव्यू क्यों देना चाहते हो? उसने कहा- तुमने अभी कहा था कि देश बदल चुका है, जो गलत है, मैं कड़े शब्दों से इसका खंडन करता हूं ,देश नहीं बदला है, लोग बदल गए हैं। हमारे मालिक बदल गए हैं जिन्होंने या तो हमको देश के अमीरों को बेच दिया है या गिरवीं रख दिया है। मेरी गरीबी इसका सबूत है। पर इस समय मैं अपनी गरीबी पर बात करने नहीं आया हूं और ना ही यह बताने आया हूं कि मैं जन्मजात साधू नहीं हूं। मैं तुम्हारे कार्यालय में अपने साथ हुए धोखे पर बात करने आया हूं,उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने आया हूं। मैंने उसकी पीड़ा को समझते हुए सहानुभूति दिखायी और पूछा-तुम्हारी अपनी पहचान खत्म होने से भी ज्यादा बड़ा कोई और नया धोखा हुआ है ? उसने कहा हां...! आज सुबह ही हुआ है। मैंने पूछा कैसा धोखा हुआ है और किसने दिया है? उसने एक समाचार पत्र मुझे दिखाते हुए कहा- इस समाचार पत्र ने मुझे धोखा दिया है। मैंने समाचार पत्र हाथ में पकड़ते हुए पूछा- इसने क्या धोखा दिया है तुम को? उसने कहा- मैंने सुबह का नाश्ता नहीं किया है,चाय भी नहीं पी है। उसकी इन बातों का अर्थ ना समझते हुए मैंने पूछा- इसमें समाचार पत्र का क्या दोष है? उसने कहा-केवल ₹3 ही थे मेरे पास, मैंने चाय नहीं पी उन पैसों से समाचार पत्र खरीद लिया। अब तुम खुद ही देख लो,12 पन्नों के इस पत्र में 9 पन्नों पर पूरे पूरे पेज के विज्ञापन हैं जिन में अधिकतर में सरकार की उन नीतियों का उल्लेख है जो धरातल पर कहीं नहीं हैं, फिर उसने मेरी ओर देखा और कहा, हमारी कोई इज्जत ही नहीं है हमें फेक न्यूज़ बेची जा रही हैं। मैंने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उस से कहा -तुम्हें समाचार पत्र नहीं खरीदना चाहिए था तुम इन पैसों की चाय पी लेते। उसने कहा मुझे अपने बच्चों की फिक्र है। तुम ही बताओ क्या हमारे बच्चों की सब आवश्यकताएं सन्यासी हो गई हैं। देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। सब ने सुबह की चाय पी ली है। सबके हाथ में मिनरल वाटर की बोतलें थमा दी गई हैं। सबको भरपेट पिज़्ज़ा व फल फ्रूट मिल गए हैं। सब स्वस्थ हो गए हैं। सब बच्चे नौकरी करने लगे हैं। सबको कोरोना वैक्सीन मिल गई है। यही सब कुछ जानने के लिए मैंने समाचारपत्र खरीदा था परंतु वहां व्यवसाय और बाज़ारबाद तो मिला पर देश या उसकी मूल समस्याएं नहीं मिलीं। सब फ्रॉड है। मेरे ₹3 डूब गए।
अपनी सारी पूंजी डुबो देने वाले व्यक्ति का दुख सुनने के बाद मैं यह नहीं समझ पाया कि इसको किन शब्दों से समझाऊं कि हमारे देश ने विकास की जिस गति को अपनाया है उसमें गरीब या उसकी समस्याओं को कोई स्थान नहीं है, परंतु यह शब्द मैं उससे कह नहीं सका वह अब भी भावुक होते हुए यही कह रहा था कि मुझे इंटरव्यू देना है। पत्रकार बुलाओ। 
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Sunday, November 1, 2020

पहचान कौन ?

पहचान तो लिया होगा....! दरवाजे पर खड़ी गेहूं के आटे से बनी रोटी ने मुझसे इस प्रकार पूछा,जैसे वह खाने लायक रोटी ना होकर तलाक शुदा पत्नी हो और कटाक्ष करते हुए पूछ रही हो, पहचान कौन ?
मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा-पहचान लिया और क्यों नहीं पहचानूंगा ? तुम वही रोटी हो जिसने युगों-युगों से समय का पहिया थाम कर रखा है। जिसने अपना रुतबा फकीरों की कुटिया से राजाओं के महलों तक हमेशा बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। जिसके लिए बार-बार युद्ध लड़े गए हैं और आज भी लड़े जा रहे हैं। तुम्हारे ना मिलने से कई मानव जातियां भूख के समंद्र में गार्क होकर अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। मैं जानता हूं तुम वही हो जिसकी तलाश में लोग अपना देश,परिवार और अपनी पहचान तक छोड़ देते हैं। 
रोटी ने धैर्य के साथ अपनी प्रशंसा या कथा सुनी और कहा ठीक कह रहे हो तुम....! मेरी आवश्यकता हर समय हर व्यक्ति,हर समाज और हर जीवित प्राणी को रही है। मेरा महत्व कल भी था और आज भी है और भविष्य में भी इसी प्रकार बना रहेगा, तुम यह भी जानते हो की मुझे प्राप्त करने के लिए सख्त मेहनत की शर्त हमेशा रही है। परंतु समय के बदलाव के कारण अब उस शर्त के अतिरिक्त कुछ नए बदलाव आ गए हैं। इन नए बदलाव के कारण ही मुझे घर-घर जाकर लोगों से पूछना पड़ रहा है कि नई शर्तें पूरी करेंगे तभी मैं उनका पेट भरने का आश्वासन दूंगी। 
यह रूप रोटी का मैंने पहली बार देखा था कि वह घर घर जाकर पूछ रही थी कि मेरी आवश्यकता है,तो मेरी शर्तें पूरी करो,तभी मैं तुम्हारा पेट भरने के लिए तैयार हूंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि दरवाजे- दरवाजे रोटी का भटकना स्मृद्धि या विकास का कारण नहीं है, जैसा कि पहले मेरे मन में विचार आया था या अनुभव था। यह एक लक्ष्य था जिसको प्राप्त करके ही रोटी गृह प्रवेश कर सकती थी। 
रोटी के इस रूप को देखकर मैं अचंभित हो उठा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं रोटी के प्रस्ताव पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया दूं। अमीर और गरीब का भेदभाव ना रखने वाली रोटी को मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था कि वह पेट भरने के लिए मेहनत के अतिरिक्त किसी दूसरी शर्तों का सहारा ले रही हो। मेरे मन में एक प्रश्न आया और मैंने उससे पूछा- घर में प्रवेश के लिए मेहनत के अतिरिक्त और क्या शर्त है तुम्हारी?
रोटी ने स्वयं को हवा में लहराते हुए कहा- शर्त, अनिवार्य भी है, जो मेहनत द्वारा मुझे प्राप्त करने से अतिरिक्त है। इससे पहले तो मेहनत के अतिरिक्त कोई और शर्त तुमको पाने के लिए नहीं होती थी। मैंने तर्क देते हुए पूछा।
वह समय मूर्खों का था,अब समय बदल गया है, रोटी ने दो टुक जवाब देते हुए कहा।
मैं समझ गया मुझे अपना आधार कार्ड किसी संस्था के साथ लिंक कराना पड़ेगा। यह भी अनिवार्य है,इसके अतिरिक्त भी एक शर्त और है। रोटी ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए उत्तर दिया। वह क्या है ? मैंने अचंभित होते हुए पूछा- उसने कहा राष्ट्रवाद साबित करने के लिए वंदे मातरम सुनाना अनिवार्य है। 
रोटी की शर्त सुनते ही मैं अचंभित रह गया। मुझे तुरंत अपने पड़ोसी का ख्याल आ गया जिसको वंदे मातरम नहीं आता था जबकि रोटी की उसे सख्त आवश्यकता थी। मैंने रोटी से कहा- तुम्हारी आवश्यकता मुझे भी है और मेरे पड़ोसी को भी है, परंतु तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिए मुझे 2 दिन का समय चाहिए। रोटी ने मेरा चेहरा देखते हुए प्रश्न करते हुए पूछा- तुमको वंदे मातरम नहीं आता है, तुम समय क्यों चाहते हो? मैंने कहा-आता है परंतु मेरे पड़ोसी को नहीं आता है। मैं इन 2 दिनों में अपने पड़ोसी को वंदे मातरम याद करा दूंगा।
यह कहते हुए मुझे अपने शब्दों में खुशामद का भाव साफ नजर आ रहे थे जबकि रोटी का चेहरा भावहीन था किसी हिटलर की तरह।
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शाहिद हसन शाहिद
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Wednesday, October 28, 2020

सफेद दाढ़ी

किसी ने मुझसे कहा- तुम्हारी दाढ़ी काफी बड़ी और सफेद हो गई है, तुम इसका फायदा क्यों नहीं उठाते? मैंने उसको हैरत भरी नजरों से देखा....! उसने परवाह ही नहीं की और कहा-पैसा कमाओ इस से, मुझे मत देखो। मैंने हैरत से पूछा- दाड़ी से पैसा किस प्रकार कमाया जा सकता है। दाढ़ी मेरे चेहरे का नूर है, किसी मशीन का पार्ट या हाथ का हुनर नहीं है। जो रोज़ी-रोटी कमाने में सहायक हो। उसने कहा तुम बेवकूफ हो एक अच्छी मासूम सी भोली भाली सूरत लेकर भूखे मर रहे हो, जबकि दाढ़ी बढ़ा कर लोग करोड़ों कमा रहे हैं। तुम्हारी जैसी खूबसूरत दाढ़ी तो क़िस्मत से मिलती है। फायदा उठाओ,इस से जो बहुत आसान है। मैंने उससे कहा- कुछ बताओगे भी या यूं ही ऊल जलूल बातें करते रहोगे। उसने मेरी ना समझी पर तरस खाते हुए कहा- यह दौर सोशल मीडिया का है और मैं देख रहा हूं कि जिन लोगों को दीन (धर्म)के बारे में कुछ भी नहीं मालूम वह भी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ियों और कैमरों के सहारे दीन के लिए मॉडलिंग करके मोटी रकमें कमा रहे हैं। किसी माहिर एक्टर की तरह एक्टिंग करते हैं और अपनी रटी रटाई तक़रीर कंप्यूटर से पढ़ कर लोगों को उनकी जिंदगी मैं दीन की अहमियत,शिक्षाएं और इस्लामी क़िस्से, कहानियां सुनाते नज़र आते हैं। उनकी जुबान मैं अरबी,फार्सी के अल्फाज कम इंग्लिश के ज्यादा होते हैं, ताकि लोग उनकी गुफ्तगू पर तव्वजह दें और उनकी दाढ़ी और इंग्लिश के रोब को महसूस करते हुए ज्यादा से ज्यादा लाइक कर सकें।
मैंने सोशल मीडिया पर बहुत से उल्मा को दीन की बातें करते हुए और लोगों को बगैर इंग्लिश अल्फाज के भी गुफ्तगू करते हुए देखा व सुना है। उसने कहा हां देखा होगा सोशल मीडिया पर दीन सिखाने वालों में बहुत से ऐसे भी हैं जो यह कह कर दीन सिखाते नज़र आते हैं कि वह नए-नए मुसलमान बने हैं, उन्हें दीन के बारे में ज्यादा इल्म तो नहीं है। वह मुसलमान बनने से पहले एक मशहूर गायक,खिलाड़ी,डॉक्टर,
लोहार,बढ़ाई,साइंटिस्ट या कोई बड़ेबिजनेसमैन थे। मुसलमान बनने के बाद खुदा ने उनको अचानक ग़ैबी या रूहानी ताकतों से नवाज़ दिया, इस प्रकार वह लोगों को गुमराही से निकालने का काम करते हैं या खुद को उस गुमरही मैं तलाश करके दीन की तबलीग़ करते हैं। मैंने कहा, यहां तक तो ठीक है पर दाढ़ी के जरिए पैसा किस तरह कमाया जा सकता है। उसने कहा- दीन की तबलीग़ से तालुक़ रखने वाले दो तीन वीडियो देख लो तुम्हारी खुद समझ में आ जाएगा। अपने दोस्त की बात मानते हुए मैंने एक वीडियो देखना शुरू किया यह मौलाना मुझे कुछ जाने पहचाने से लगे इसलिए मैंने इनका पूरा वीडियो देखने का फैसला किया। वीडियो जैसे ही शुरू हुआ, तो सब से पहले उस में किसी फास्ट फूड का (ऐड)इश्तेहार नज़र आया जिसको एक महिला उसकी बच्ची इस टेगलाइन के साथ पेश करते नज़र आ रही थी ।
"यही आज की पसंद है, यही जिंदगी का आनंद"। ऐड पूरा होने के साथ ही मौलाना ने अपनी गुफ्तगू का आगाज़ यह फरमाते हुए किया कि हमने इस्लामी रिवायात को छोड़ दिया है। हम फास्ट फूड की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। हम जहां मौका देखते हैं वहां खड़े हो कर इस तैयार खाने को खा लेते हैं।दस्तरख्वान कितने घरों में सजाया जाता है? या हम किन इसलामी सुन्नतों के एहतमाम या एहतराम के साथ खाना खाते हैं? यह सब अब सवाल बनकर रह गए हैं। यह हमारी मा'शरत की तबाही है। अभी वह इस तबाही के दायरे को बढ़ा कर क़ौम को समझाने जा ही रहे थे कि इस्लाम ने जब शराब बंदी कि तब मुसलमानों ने अपने घरों में जमा की गई शराब नालियों में बहा दी थी,क्योंकि अल्लाह के प्यारे रसूल ने फरमाया था की शराब तमाम बुराइयों की जड़ है जो अब तुम पर हराम कर दी गई है। इसका पीना जमा करना या तिजारत करना सब हराम है, तभी एक तिजारती (कमर्शियल) ब्रेक आ गया जिसमें शराब की ऐड दिखाई जा रही थी। इसके बाद फिर मौलाना नज़र आए अब वह पहले से ज्यादा जलाल में थे और समाज में आई तमाम बुराइयों के लिए सीधे तौर पर पूरी क़ौम को कटघरे में खड़ा करके गलया रहे थे।वह पूरी कौम से पूछ रहे थे या यूं कहा जाए कि वह ऐतराज़ कर रहे थे कि समाज के द्वारा अपनाई जा रही आधुनिक जीवन शैली, कुछ नए-नए अपनाए गए रीति-रिवाज,फैशन किस तरह दीनेहक़ का हिस्सा बन गए हैं। वह जवाब तलब कर रहे थे कि यह क्या तरीका है कि हमारे नौजवानों ने अपने पजामे उतार दिए हैं और फटी हुई हाफ पेंट पहनना शुरू कर दी है। तभी उनकी तक़रीर को रोककर सोशल मीडिया द्वारा बाजार को कंट्रोल करने वाले माहिर खिलाड़ियों ने एक बड़े ब्रांड के रेडीमेड गारमेंट्स का ऐड लगा दिया जिसमें कुछ नौजवान लड़के, लड़कियां फटी हुई हाफ पेंट पहनकर मॉडलिंग करते नज़र आए। मैंने मौलाना के ब्यान को यहीं पर रोकते हुए अपने दोस्त से पूछा इसमें पैसा कहां है? यहां तो सिर्फ मज़ाक़ ही मज़ाक है।उसने कहा यह जो ऐड आप देख रहे हैं, यह हजारों और लाखों रुपए की पेमेंट मौलाना को अदा करते हैं। मैंने अपने दोस्त से पूछा इस्लाम में फोटो खिंचवाना हराम है यह बात मुझे याद है, परंतु मौलाना को याद नहीं है। उसने हंसते हुए कहा तो फिर ठीक है,तुम पीएम की तरह दाढ़ी बढ़ाओ और दाढ़ी-दाढ़ी खेल खेलते रहो और एक दूसरे से पूछते रहो कि तुम्हारी दाढ़ी मेरी दाढ़ी से ज्यादा 
सफेद कैसे?
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Tuesday, October 20, 2020

बलात्कार

यह एक सच्चाई है कि मैं समाचार पत्र नहीं पड़ता हूं, परंतु मेरे अंदर का आदमी समाचार पत्र पढ़ने का बड़ा शौकीन है। वह रोज सुबह उठकर सोसाइटी की लाइब्रेरी पहुंच जाता है, जहां वह एक दो नहीं बल्कि नगर से प्रकाशित होने वाले हर छोटे-बड़े समाचार पत्र को बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ता है। इस दिलचस्पी में भी एक खास बात यह है कि समाचार पत्र में प्रकाशित हर प्रकार की खबरें छोड़कर वह क्राइम रिपोर्ट पढ़ने में काफी रूचि दिखाता है।इन क्राइम रिपोर्ट में भी वह खासतौर पर बलात्कार से संबंधित और इनमें भी कम आयु की लड़की के साथ हुई घटना को पढ़ने में काफी रूचि दिखाता है। 
अपने अंदर के इस आदमी को मैं भली भांति पहचानता हूं, वह बड़ा बहानेबाज़ व आवारा सिफत व्यक्ति है। जिस प्रकार की छवि वह समाज को दिखाता है वैसा वह बिल्कुल नहीं है। मुझे उसकी यह आवारगी बहुत बुरी लगती है। जिसके लिए में उसको बराबर टोकता रहता हूं। मैं उसको समझाता हूं कि उसको अपनी यह बुरी आदत छोड़ देना चाहिए। एक दिन मैंने उससे कहा तुम ऐसी खबरें क्यों पढ़ते हो जो ज़हनी अयाशी पैदा करती हैं। इतना सुनकर वह भड़क गया और गुस्से में चिखते हुए कहने लगा- क्षमा कीजिए, यह सोच आपकी है जो मेरे अंदर आवारगी देखती है, मेरी नहीं है । सही सोच क्या है यह बताने का भी कष्ठ करें, मैंने उसको चिढ़ाते हुए पुनः प्रश्न किया। एक ही बलात्कार का समाचार जिस की घटना, स्थान ,तिथि, चरित्र और चरित्रों का नाम एवं आयु एक ही होती है उसी समाचार को अलग-अलग समाचार पत्रों में पढ़कर आप कौन सा शोध कार्य करते हैं ?
मेरा ऐतराज़ सुनते ही उसने तुरंत उत्तर देते हुए कहा- रिपोर्टिंग......! रिपोर्टिंग शब्द सुनकर मुझे एक प्रकार से झटका लगा और मैं अचंभित होते हुए बोला- मैं समझा नहीं, रिपोर्टिंग से तुम्हारा क्या मतलब है ? मेरे अचरज को देखते हुए वह शांति रहा और मीठे स्वर से बोला, मैं बताता हूं, कहते हुए वह मुझे समझाने वाले अंदाज में बताने लगा देखिए, आपका यह कहना ठीक है कि समाचार एक ही होता है घटना की शिकार लड़की, उसकी आयु, स्थान, क्या हुआ, कैसे हुआ अंततः हादसे की तारीख भी वही होती है,परंतु इस समाचार को लिखने वाले पत्रकार समाज के अलग-अलग वर्गो से आते हैं जिनकी कलम ही तय करती है कि खबर आम है, खास है, या बहुत खास है। उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विस्तार से बताना आरंभ क्या। हम इस सत्य को इस प्रकार समझ सकते हैं कि एक पत्रकार किसी मासूम लड़की के साथ हुए इस शर्मनाक हादसे का समाचार को केवल एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना, जो उसकी सोच के अनुसार रोज कहीं ना कहीं होती है बड़े सामान और सहज रूप से प्रस्तुत कर देता है। वह अपनी टिप्पणी में इस हादसे को उस लड़की या उसके परिवार की खराब किस्मत का दोष देकर अपना कर्तव्य पूरा करता है। जबकि दूसरा पत्रकार इसी घटना को कानून की बिगड़ी व्यवस्था या प्रशासन की ढ़ील बता कर सरकार के सर इलज़ाम डाल कर समाचार की जरूरतों को पूरा कर देता है। कोई तीसरा पत्रकार इस घटना को समाज के गिरते हुए स्तर की दुहाई देते हुए इंसान के वेहशीपन या पश्चिमी सभ्यता को दोषी बताकर समाचार पूरा कर देता है। कोई चौथा पत्रकार इस घटना को आंखों देखा हाल बताते हुए एक मसालेदार  पोर्न फिल्म की तरह पेश करके अपने पाठकों का मनोरंजन करता है जबकि इस भीड़ मैं से निकलकर कोई एक पत्रकार ऐसा भी होता है, जो इस घटना की पीड़ित लड़की की मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व स्वाभिमान की पीड़ा को अपनी अंतरात्मा की गहराइयों से महसूस करते हुए समाचार इस प्रकार लिखता है जैसे वह पत्रकार ना होकर स्वयं एक पीड़ित लड़की हो और जो अपने ऊपर हुए इस जुल्म को सहन करते हुए सारा ज़हर खुद ही पी जाना चाहती हो बिल्कुल वैसे ही जैसे एक सच्चा गायक किसी दर्द भरे गाने को अपने गले या पेट से ना गाकर दिल की गहराइयों से गाता है और हमारे मन मस्तिष्क पर अपनी छाप हमेशा हमेशा के लिए छोड़ जाता है।
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Saturday, October 10, 2020

कूड़ेदान

मैंने अपनी आंतों को पेट के अंदर इतना सिकरोड़ा कि वहां एक गड्ढा सा बन गया। फिर मैंने अपने पैरों को इस गड्ढे में फिट किया और पंजों के बल बैठ गया। इस प्रकार पंजों के बल उकड़ू बैठकर भूख पर विजय प्राप्त करना एक ऐसी प्राचीन कला है, जो पूरे विश्व के गरीबों में प्रचलित है।भूखे पेट की सहायता से मैंने इस कला पर बचपन में ही विजय प्राप्त कर ली थी। मेरा अनुभव कहता है कि इस प्रकार बैठने के बाद इंसान की सोई हुई ऐसी बहुत सी अंतरात्माएं जाग जाती हैं, जो फूले हुए पेट के साथ कभी नहीं जागतीं। आनंद देने वाले इस योग मुद्रा में बैठने के बाद मेरी अंतरात्मा ने देखा- मेरे चारों ओर खाने के बर्तन बिखरे पड़े हैं। जिनमें कुछ टूटे-फूटे हैं और कुछ ठीक-ठाक हैं। जो ठीक-ठाक हैं उन में अन्न का दाना नहीं है। वे खाली हैं मेरे पेट की तरह। 
मैं हैरानो-परेशान अभी इन बर्तनों को देख ही रहा था तभी मेरी नज़र उस कूड़ेदान की ओर चली गई,जहां कुछ दिन पहले तक शहर के सभ्य व सम्मानित लोग अपने मरे हुए कुत्ते, बिल्ली,घर का बेकार सामान और कन्या भ्रूण फेंक जाते थे,यह मेरे हुए शरीर सढ़ कर इतनी गंध पैदा करते थे कि आसपास के निवासियों का जीवन नर्कमय हो चुका था।
इस गंध ने मेरी नाक के नथुनों में जाकर मुझे कभी दुखी नहीं किया,कारण यह था कि इस गंध से कहीं अधिक गंध मेरी उस पेंट और शर्ट से आती थी,जो मैंने जवान होते ही इसी कूड़ेदान से उठाकर 60 वर्ष पहले पहन ली थी, और दूसरा कारण था कि मैं ना तो समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति हूं और ना ही सभ्य समाज का अंग जिसको गंध या सुगंध का अंतर मालूम हो।
कूड़ेदान को देखकर मेरे मन में एक पुरानी कहावत याद आने लगी कि 20 साल बाद कूड़ेदान के भी भाग्य बदल जाते हैं, यह कहावत अब मुझे सत्य होती प्रतीत हो रही थी। सामने वाले कूड़ेदान का भाग्य निसंदेह अब बदल चुका है। वह पहले से कहीं ज्यादा उदार एवं प्रगतिशील नजर आने लगा है। नगर के सम्मानित लोग अब इस कूड़ेदान पर अपने मरे हुए चूहे बिल्ली नहीं फेंकते, जो सड़कर उनका जीवन को नर्क बनाते थे, बल्कि वे अब कूड़ेदान को साफ-सुथरा एवं स्वच्छत रखते हुए करोना महामारी की संभावना से ग्रस्त अपने जीवित बुज़ुर्ग,बीमार माता-पिता व रिश्तेदारों को फेंक जाते हैं। जिनको कुछ समय बाद कारपोरेशन की गाड़ीयां कूड़े करकट की तरह उठाकर ले जाती हैं । गाड़ीयां जब इन जीवित रिश्तों को उठाकर ले जाती है तो यह रिश्तेदार उनको दूर खड़े होकर हाथ जोड़कर पूरे धार्मिक रीति रिवाज के साथ रुखसत होते हुए अपने घरों की बाल्कोनियों से देखते रहते हैं। इन में से कुछ लोग थाली या ताली बजाकर करोना योद्धाओं के प्रति अपना स्नेह एवं आदर सम्मान भी प्रकट करते हैं।
मेरी समस्या यह नहीं है के रिश्तेदारों ने अपने जीवित परिवारजन को कूड़ेदान पर फेंक दिया। समस्या यह भी नहीं है कि उन्होंने थाली और ताली क्यों बजाई? मेरी समस्या केवल इतनी है कि जो बदबूदार पैंट-कमीज मैंने 60 वर्ष पहले कूड़ेदान से उठाकर पहनी थी उसको उतारने के लिए कब, कौन और कहां से आएगा?
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991
I wrinkled my intestines so much inside the stomach that it became a hole there. Then I fitted my feet in this pit and sat on the feet. In this way, conquering hunger by sitting squatting is such an ancient art, which is prevalent among the poor all over the world. With the help of a hungry stomach, I conquered this art in my childhood. My experience says that after sitting in this way, many such sleeping souls wake up, which never wake up with bloated stomach. After sitting in this yoga post that gave pleasure, my conscience noticed - the food utensils are scattered all around me. Some of them are broken and some are fine. Those who are well-off do not have food grains. They are empty like my stomach.
 I was surprised to see these utensils right now, when my eyes went to the dustbin, where till a few days ago the civilized and respected people of the city used to throw their dead dogs, cats, household waste and female embryos , This used to make my body smell so bad that the lives of the nearby residents had become hellish.
 This smell never made me sad by going into the nostrils of my nose, the reason was that more than this smell came from my paint and shirt, which I had worn 60 years before when I was young, from this dustbin. And the second reason was that I am neither an eminent person of society nor a part of a civilized society who knows the difference of smell or fragrance.
 Seeing the dustbin, I started remembering an old saying that after 20 years, the fate of dustbin also changes, I now seemed to be true. The fate of the front dustbin has undoubtedly changed now. He is beginning to appear more liberal and progressive than ever before. The respected people of the city no longer throw their dead rat cats on this dustbin, which made their lives hell by rotting, but they now keep their dustbins clean and hygienic, with their surviving elderly, sick mother, prone to the Karona epidemic. Father and relatives are thrown away. After some time, the Corporation's cars are taken away like garbage. When the vehicles carry these living relations, these relatives stand away from them and fold their hands and watch them from the balconies of their homes, moving with full religious rituals. Some of these people also express their affection and respect for Karona warriors by playing thali or tali.
 My problem is not that relatives throw their surviving family on the trash. The problem is not also why they played the thali and clap? My only problem is that when, who and where will I come to remove the smelly pant-shirt that I wore from the dustbin 60 years ago?

Thursday, October 1, 2020

ड्रामेबाज़

आयु की ढलान पर खड़े उस व्यक्ति के बारे में विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता था कि वह वास्तव में पागल है या भविष्य के भावी खतरों से डरा हुआ एक आम व्यक्ति है। वेशभूषा देखकर भी उसको पागल नहीं कहा जा सकता था, जबकि बातें वह पागलों जैसे ही कर रहा था। सड़क किनारे खड़े होकर वह चीख-चीख कर कह रहा था- लोगों सुनों, मेरे बालों में जुंए रहती हैं। फिर कहता-नहीं वे जुंए नहीं हैं,घुसपैठिए हैं, फिर तुरंत ही कहता- घुसपैठिए भी नहीं हैं, वे आतंकी हैं। आतंकवाद से हम सबको लड़ना होगा। इतना कहकर वह नारे लगाने लगा,आतंकवाद जिंदाबाद,
आतंकवाद मुर्दाबाद। फिर कुछ रुक कर कहने लगा,आतंकवाद का मुझे सर तोड़ना है। यह कहते हुए उसने अपने सर के बाल नोचने आरंभ कर दिए। फिर लोगों को अपने हाथों की उंगलियों में फंसे दो चार बाल दिखा कर कहने लगा- देखो-देखो....! घुसपैठियों ने मेरे बाल तोड़ दिए। वे जालिम हैं। फिर टूटे बालों का दुःख मनाते हुए जोर-जोर से चीख-चीख कर रोते हुए कहने लगा- एक-एक करके मेरे बाल तोड़े जा रहे हैं। फिर एक ही पल में खुश होकर कहने लगा- हा हा हा...! मैं जल्द ही गंजा हो जाऊंगा, तब बड़ा मज़ा आएगा, अपने सर पर तबला बजाऊंगा, फिर लोगों की भीड़ से पूछने लगा- तुम मज़ा देखोगे, तबला सुनोगे ? अपनी हर बात को तीन बार कहना उसकी आदत थी। 3 बार कह कर वह समझ लेता था कि लोगों ने कह दिया है कि हम देख रहे हैं या हम देखेंगे या हम मज़ा लेंगे।
इस प्रकार की जुमले बाजी वह बहुत समय से कर रहा था। उसके चारों तरफ खड़े लोग मजा ले रहे थे। लोगों को उसके जुमले बहुत पसंद थे। कुछ न्यूज़ चैनल भी उस पर फिदा थे, वह अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए उसको कवर करते रहते थे। एक कैमरे की ओर मुंह करके पागल चीखते हुए बोला- घुसपैठियों....! सुन लो, तुम्हारी साजिशें सफल नहीं होने दूंगा। सर के सारे बाल नोच दूंगा पर तुमको अपने सर पर राज नहीं करने दूंगा। एक-एक घुसपैठिए को बाहर निकाल कर दम लूंगा, कहकर वह अपने उन रेशमी बालों को एक बार फिर नोचने लगा जिन को प्राकृतिक ने उसके सर पर बड़ी सुंदरता वह सजगता से सजाए थे,जो पहली नज़र में देखने से लगते थे कि भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों को मिलाकर एक गुलदस्ता बनाया गया है और फिर उसके सर पर सजा दिया गया हो। यह सजावट बड़ी आकृर्षित व मनमोहक थी पर उसके मन में यह बात घर कर गई थी कि उसके सुंदर बालों में कुछ गड़बड़ अवश्य है। इस गड़बड़ को ही वह विनाशकारी जुएं कह रहा था और डरा हुआ था।
लोगों ने उसको चीखते चिल्लाते देखा। स्वयं को चोट पहुंचाते देखा,परंतु कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, किसी प्रकार की कोई दया भी उसके प्रति नहीं दिखाई। एक पागल के लिए लोगों में सहानुभूति या दया कम ही होती है, तभी कहानी मैं एक नया मोड़ आया और लोगों की भीड़ में से कुछ महिलाएं उसकी और बढ़ीं और बगैर किसी डर के उसको घेरकर बैठ गयीं। उन में से बुजुर्ग महिलाओं ने पागल के सर को अपनी आगोश में रखा और उसकी जुंए तलाश करने में व्यस्त हो गयीं। कुछ क्षण बाद पागल एक मासूम बच्चे की तरह इन शक्तिशाली महिलाओं की गोद में शांत हो गया पर अचानक दूर खड़ी एक पत्रकार जो इस दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर रही थी वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गई। इस रहस्य को मैं आज तक नहीं समझ सका कि बुजुर्ग महिलाओं द्वारा एक पागल को शांत करने पर किसी चैनल की  पत्रकार क्यों ढेर हो गई?
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991
The person standing on the slope of age could not be said with confidence that he is indeed insane or a common man scared of future threats. Even seeing the costumes, he could not be called crazy, while he was talking like crazy.
 He was standing on the roadside screaming and screaming, "People listen, lice are in my hair." Then he says no, he is not a lice, he is not an intruder, then he immediately says - he is not an intruder but he is a terrorist. We all have to fight terrorism. Saying this, he started shouting slogans,
 Terrorism Zindabad, Terrorism Murdabad. Then something stopped and said, I have to break the head of terrorism. Saying this, he started scratching his hair. Then people showed two hairs stuck in the fingers of their hands and started saying - Look, look…! The intruders broke my hair. They are bloodthirsty. Then, while celebrating the broken hair, I started crying loudly and crying - one by one my hair is being broken. Then in an instant, he started saying happy - ha ha ha ...! I will be bald soon, then it will be great fun,
 I would play tabla on my head, then started asking the crowd of people - will you see the fun, will you listen to the tabla? It was his habit to say his words three times. He used to understand by saying 3 times that people have said that we are watching or we will see or we will enjoy.
 He had been doing this kind of play for a long time. People standing around him were enjoying. People loved her jumla. Some news channels were also attracted to him, he said while warning- Intruders….! Listen, your intrigues will not succeed. Will scrape off all the hairs of the head but will not let you rule your head. I would pull out every single intruder, saying that he again scratched his silky hair, which the natural had decorated with great beauty on his head, which at first glance seemed to be different A bouquet of flowers has been made and then decorated on its head. This decoration was very attractive and adorable but it was said in her mind that there is something wrong with her beautiful hair. He was calling this mess a destructive lice and was scared.
 People saw him screaming. He was seen hurting himself, but showed no reaction, no kindness towards him. People have little sympathy or compassion for a lunatic, then a new twist came in the story and some of the women in the crowd of people grew more and sat around him without any fear. The elderly women among them kept the madman's head in their arms and got busy searching for his lice. Moments later, like an innocent child, the insane woman calmed down in the lap of these powerful women, but suddenly a journalist standing far away capturing the scene with her camera fell unconscious to the ground. I could not understand this mystery till today why journalists piled up like a TRP of a channel when an elderly woman pacified a lunatic?
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 you want your literary lovers to read them, then forward them. Write your response in the Blockspot comment box. With thanks
 Shahid hasan shahid
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Wednesday, September 23, 2020

सोना लो, चांदी लो

सोना लो, चांदी लो, यह आवाज़ जैसे ही मोहल्ले की गलियों की दीवारों से टकराई। कई महिलाऐं टोकरीयां और थेले लेकर घरों से बाहर निकल आयीं। सोना-चांदी शब्द जो आपने पढ़े वे सत्य हैं। इसमें शब्दों की कोई जादूगिरी नहीं है। महिलाएं बहुत देर से इस सोने-चांदी बेचने वाले की प्रतीक्षा में थीं, वे उसकी आवाज़ सुनकर बगैर देर किए पूरी तैयारी के साथ घर से बाहर निकल आयीं। मैंने भी एक थैला उठाया और इस सोना-चांदी बेचने वाले वेंडर की प्रतीक्षा में महिलाओं के झुंड से दूर अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा हो गया।
आप सोच रहे होंगे कि विश्व में ऐसा कौन सा देश है, जहां सोना-चांदी वहां के वेंडर गलियों में आवाज़ लगाकर बेचते हों, कहीं मैं किसी काल्पनिक देश की बात तो नहीं कर रहा हूं। जहां सोना चांदी गली मोहल्ले में फेरीवाले आवाज़ लगाकर बेचते होंगे। नहीं,ऐसा नहीं है, मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है की मैं विदेश या काल्पनिक देश की बात नहीं कर रहा हूं ,मैं अपने ही देश की बात कर रहा हूं जिसकी अर्थव्यवस्था शून्य 25 से नीचे जा कर आत्महत्या करने के लिए उत्सुक है। वह देश जिसके सामने कई करोड़ संगठित व असंगठित बेरोजगारों की सेना मुंह खोले खड़ी है, जहां समाज का हर वर्ग असुरक्षा और अविश्वास के कारण एक दूसरे को शक की निगाह से देखता है। जहां झूठ और पाखंड आपसे आपका धर्म पूछता है,जहां राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को गाली देना सिखाया जाता है। जहां अन्न पैदा करने वाला अपने बच्चों के पेट भरने के लिए सड़कों पर बैठकर लाठियां खाता है। वह देश जो करोना आपदा की होड़ मैं अपने दोस्त अमेरिका से आगे निकलने की होड़ में है। वहां गली में फेरी लगाने वाले वेंडर सोना और चांदी फेरी लगाकर बेच रहे हैं। यह और बात है कि सोने चांदी के नाम से बिकने वाली सब्जियां सोने चांदी की तरह ही महंगी हैं। जिनको मध्यवर्गी ग्रहणियां केवल छूकर ही रह जाती हैं, खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं।
सोना-चांदी बेचने वाले ने मुझसे पूछा- बाबूजी...! आप क्या लेंगे। 
मैंने कहा-लेहसन। उसने कहा- ₹300 किलो, मैंने कहा- हरा धनिया। उसने कहा ₹300 किलो। हरी मिर्च, वह भी ₹300 किलो।
मैंने विरोध जताते हुए कहा-इतनी महंगी। उसने हंसते हुए कहा- मैं सोना और चांदी बेच रहा हूं, आपने शायद मेरी आवाज़ सुनी नहीं।
मैंने उसकी हंसी का बुरा मानते हुए कहा- आप सोना चांदी क्यों बेच रहे हैं, सब्जियां बेचिए जो लोगों के काम आ सकें। 
उसने मेरी बात को हवा में उड़ाते हुए कहा-
जो मिल रहा है और जिस दाम में मिला है, ले लीजिए साहब, समय का पता कुछ नहीं कल हम हों या ना हों।
उसके इस प्रकार बात करने पर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने चिढ़ते हुए कहा- क्यों ले लूं कोई ज़ोर जबरदस्ती है? उसने कहा- बाबू जी बुरा ना मानें तो मैं एक बात कहूं । मैंने कहा कहो। उसने कहा-इन्हीं तेवरों में यही बात अगर आपने सरकार से कही होती तो आज यह नौबत नहीं आई होती कि हमारी मां, बहनें सब्जी पकाने के लिए भी तरस गई हैं। वह सब्जी को केवल छूकर देखती हैं और फिर रेट सुनकर उसी जगह रख देती हैं, खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। फिर उसने किसी दार्शनिक विद्वान की तरह कहा-श्रीमान जी, हमारी सहनशक्ति खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है, हम नफरत और प्रोपेगेंडे के इस युग में बर्फ की तरह जम चुके हैं या मूल मुद्दों से भटक गए हैं, जबकि इस प्रकार से जम जाना या भटक जाना एक स्वस्थ समाज के लिए कोई अच्छा चिन्ह नहीं है, यह चिंता का विषय है। इतना कहकर वह थोड़ा सा रुका और फिर कहने लगा- यह तो आप भी भली-भांति जानते हैं कि पानी अगर बेहता रहे तब ही वह स्वच्छ व शीतल रहता है, एक जगह ठहर जाए तो सड़कर बदबू देने लगता है। इतना कहकर उसने एक गहरी सांस ली और फिर बोला-अगर बुरा ना मानें तो छोटा मुंह और बड़ी बात कहूं। मैंने बड़े रूखे पन से कहा- कहो। वह बोला प्रॉब्लम यह है कि आप अपना विरोध केवल सब्ज़ी वाले पर ही उतारना जानते हैं, इससे आगे कुछ नहीं। इतना कहकर वह हंसता हुआ आगे बढ़ गया और मैं बहुत देर तक अपने अंदर बर्फ जैसी ठंडक और ठहरे हुए पानी की गंध महसूस करता रहा फिर अचानक मैं दौड़ कर उसके पास गया और उससे पूछा- सब्जी बेचने से पहले तुम क्या करते थे? उसने कहा- दार्शनिक का प्रोफेसर था।
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991


Tuesday, September 15, 2020

हरामखोर

 जवान जादूगरनी ने जैसे ही अपने जादू के करतब दिखाना शुरू किए, लोगों ने यह कहते हुए चीखना और चिल्लाना शुरु कर दिया कि यह जादू पुराना है, कुछ नया दिखाओ। जादूगरनी ने कहा- मैं एक ऐसा जादू तुमको दिखाने जा रही हूं, जो तुम्हारे होश उड़ा देगा। दिमाग पिघला देगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो? लोगों ने कहा- हम तैयार हैं। लोगों का उत्साह देखकर जादूगरनी ने कहा- अपनी आंखें बंद करो और जब तक मैं ना कहूं इनको मत खोलना। उसकी बात मानते हुए लोगों ने अपनी आंखें बंद कर लीं और वे एक प्रकार से अंधभक्त बन गए। जादूगरनी ने मुंह ही मुंह में कुछ शब्द बुद बुदाना आरंभ किए। कुछ देर बाद उसने अंधभक्तों से कहा-अपनी बंद आंखें खोलो। भक्तों ने कहा-वे नहीं खुल रही हैं। जादूगरनी ने कहा-ओह, मैं भूल गई, तब उसने थाली बजाना आरंभ की और साथ खड़े लोगों ने ताली।थाली और ताली की जुगलबंदी जब भगतों के कानों तक पहुंची तो उन्होंने अपनी आंखें खोल दीं। अब उनकी खुली आंखों ने जो देखा उसको देख कर सब हैरान रह गए। जादूगरनी ने जो दावा किया था वह उस ने सच कर दिखाया था। उनको विश्वास नहीं हो रहा था कि यह कैसे संभव हो सकता है कि समंदर के किनारे रहने वाले भक्तों को जादूगरनी ने चुटकी बजाते ही अपने जादू से बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर पहुंचा दिया था, जहां से उनको छुपे आतंकी भी साफ नज़र आ रहे थे। लोगों ने जादूगरनी से पूछा- यह कौन सी जगह है और हम कहां हैं ? जादूगरनी ने कहा- तुम पीओके में हो।
लोगों ने कहा- हम पीओको में क्या कर रहे हैं? जादूगरनी ने कहा शासक बाबर के राज के मज़े ले रहे हो। किसी नए प्रश्न के आने से पहले जादूगरनी ने चेतावनी देते हुए लोगों से कहा- अगर इस से अधिक की तुमने मुझे से इच्छा रखी तो में बाबर के फौजियों को बुलाकर तुम्हारी वह पिटाई करवाऊंगी कि तुम्हें अपनी नानी, और फिर नानी की नानी याद आ जायेगी। शब्द पिटाई सुन कर कुछ लोग डर गए,उनकी निगाहों के सामने माबलंचिग जैसे केई मामले घूम गए, परंतु भीड़ में से एक व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने चीखते हुए कहा- ऐ...! जादूगरनी, तूने यह अच्छा नहीं किया। हमने अपना पूरा जीवन समंदर को समर्पित किया है। और उसने भी हमें वह सब कुछ दिया है, जिसकी हम इच्छा कर सकते हैं। हमको अपना समंदर और प्रदेश प्यारा है, हम इन पहाड़ियों का क्या करेंगे, हमको वापस वहीं पहुंचाओ, जहां के हम वासी हैं। जादूगरनी ने कहा- ऐसा संभव नहीं है। अधिकृत पहाड़ियां भी हमारी हैं जिन को हम किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ सकते। व्यक्ति ने क्रोधित होते हूए कहा- 
तू हरामखोर है। जादूगरनी ने पूछा, यह हरामखोर क्या होता है व्यक्ति ने कहा- जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है यही हरामखोरी है। इतना सुनकर जादूगरनी शोर मचाने लगी और अंधभक्तों को उकसाते हुए कहने लगी देखो-देखो यह देश द्रोही मुझे गाली दे रहा है। देश की बेटी का अपमान कर रहा है। नारी सम्मान की बातें करने वाला नारी को खुलेआम बेइज्जत कर रहा है। इतना सुनकर कुछ भोंपू टायप के लोग जोर-जोर से चीखने लगे...... शर्म करो शर्म करो।
भीड़ में से एक दूसरा आदमी निकल कर सामने आया और उसने जादूगरनी से कहा- हमें बताओ जादू करते समय तुमने ऐसे कौन से शब्द कहे थे। जो हम इस स्थिति तक पहुंच गए। जादूगरनी ने कहा- वे जादुई शब्द थे राम मंदिर, मुसलमान, आतंकवाद,गद्दार, राष्ट्रद्रोह, और निपोटिज़्म। व्यक्ती ने चीखते हुए कहा- यह शब्द जादू नहीं कर सकते, यह शब्द तो किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा लगते हैं। तुम इन शब्दों से जादू नहीं कर सकतीं। जादूगरनी बिगड़ गई और कहने लगी मुझे इन्हीं शब्दों से जादू करना सिखाया गया है।इन शब्दों ने वह कर दिखाया है जिसकी तुम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इतना सुनकर कई लोगों ने एक साथ कहा तू झूटी है। 
जादूगरनी ने कहा- मैं झूठी नहीं पागल हूं, यकीन ना आए तो मूवी माफिया से पूछ लो। जिसने मुझे 2008 में पागल 2016 में डायन 2020 में स्टॉकर, एवं खिसकी हुई घोषित कर रखा है।
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991

Saturday, September 12, 2020

कीचड़ ना उछालिए

खबर यह है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जो छोटे और मझोले किसानों को ₹6000 सालाना की वित्तीय मदद देने के लिए दिसंबर 2018 में शुरू हुई थी। वह आज कल चर्चा में है। तमिल नाडु कृषि विभाग की जांच में सामने आया है की लाभार्थियों में 5.5 लाख से ज्यादा नकली नाम इस में शामिल हैं। जिससे राजकोष को लगभग ₹110 करोड़ का चूना लगा है।
लोगों का कहना है की कृषि विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने एक सिंडिकेट बनाया और  नकली दस्तावेजों द्वारा अयोग्य लोगों को योजना के साथ जोड़ दिया। यह सारी कवायद ऑनलाइन होना थी जिसमें झूठे दस्तावेज और पासवर्ड इस्तेमाल किए गए। योजना की शर्तों के अनुसार किसानों के पास 2 हेक्टेयर तक जमीन होना चाहिए व परिवार से एक ही व्यक्ति इस योजना का लाभ ले सकता है। नौकरशाही ने ऐसा ना करके योजना का दायर बढ़ा कर एक घर से 6 लोगों तक पहुंचा दिया और ग्रेटर चेन्नई के आलीशान बंगलो में रहने वालों को भी स्कीम का लाभ पहुंचाया जिनके पास कृषि भूमि थी ही नहीं। कुछ ऐसा ही हाल दूसरे प्रदेशों को का भी है जहां बड़े पैमाने पर आयोग्य लोगों को उपरोक्त योजना में शामिल किया गया है। 
कुछ विद्वानों का कहना है कि यह खुली धोखाधड़ी है। कुछ का विचार है कि यह राष्ट्र विरोधी कार्य है। जबकि प्रधानमंत्री  कहते हैं कि हमारे देश में गरीबों की बात तो बहुत हुई है, लेकिन गरीबों के लिए जितना कार्य पिछले 6 साल में हुआ है, उतना कभी नहीं हुआ। हर वह क्षेत्र, हर वह सेक्टर जहां गरीब, पीड़ित, शोषित, वंचित, अभाव में था, सरकार की योजनाएं उस का संबल बनकर आयीं।
मैं सोचता हूं कि ऐतराज करने वाले लोग यह क्यों नहीं समझते कि अब गरीब की परिभाषा बदल गई है जिसको हम पहले गरीब मानते थे वह तो धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ठीक कह रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था जिस हाल में या जिन कारणों से अस्वस्थ है, उसमें सबसे ज्यादा बुरी हालत मध्य वर्गी समाज की है, जो देखते ही देखते गरीब हो गया। वह रहता तो कोठियों में हैं, जो उसने कभी अपने बुरे वक़्त में पहले बना ली थीं, परंतु अब उसके पास अपनी कमीज़ का सफेद कॉलर बचाने के लिए ₹6000  धोखे से लेने के अतिरिक्त आत्महत्या का ही विकल्प रह जाता है। अंततः मैं इतना ही कहूंगा की हर चर्चा को जुमले बाज़ी कहकर गरीबों के लिए सरकार की सद्भावनाओं का मज़क ना उड़ाएं और ना ही कीचड़ उछालें सच्चाई भी तलाश कर लिया कीजिए।
शाहिद हसन शाहिद
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बंदूक की खाली नाल

मेरे आश्चर्य की सीमा उस समय समाप्त हो गई जब मैंने देखा कुछ चिड़ियां सूर्य को निगलने की कोशिश में है।
वह सूर्य- जिसकी गरिमा एवं ऊर्जा में हम शांतिमय, सौहार्द्रपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। जो अपनी आंखों पर काली पट्टी बांधकर हमें धर्मनिरपेक्षता के साथ न्याय देता है। उसी सूरज को आज कुछ बिगड़ेल चिड़ियों की ओर से आपने पंखों की काली छतरियां दिखाकर ललकारा जा रहा है। उसके प्रताप को समाप्त करने की योजना की जा रही है। यह एक खतरनाक पहल थी, जिसे देखकर मुझे धक्का लगा और मैं एक आम नागरिक की तरह व्याकुल हो उठा। व्याकुलता कि इस घड़ी में मुझे अपनी वह शपथ याद आ गई, जो मैंने कभी एक सभ्यनागरिक की भांति राष्ट्रवाद, शिष्टाचार, आपसी भाईचारे, अहिंसा और सर्वधर्म सम्मान व शांतिमय जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा के साथ ली थी।
शपथ का विचार आते ही मैंने सोचा- अगर आज सूर्य पर काले बादल छा गए और वह चिड़ियों के षड्यंत्र का शिकार हो गया, तो मेरी राष्ट्र भावना का क्या होगा। देश के प्रति मेरी निष्ठा व परिस्थितियां कहती हैं कि मैं इस समय खामोश ना रहकर आगे बढ़कर इस संभावित खतरे का मुकाबला करूं। खाली हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से शपथ की मर्यादा पूरी नहीं होगी। समय मुट्ठी में बंद रेत की तरह होता है अगर यह फिसल गया तो मेरे पास केवल अफसोस करने के कुछ नहीं बचेगा। व्यक्तिगत तौर पर मुझे कुछ न कुछ निर्णय निश्चय ही लेना होगा।
 यह सूर्य ही नहीं रहा तो हम न्याय के लिए किसके द्वार पर जाकर खटखटा एंगे। मुझे अवश्य ही इन निर्भय एवं ज़िद्दी चिड़ियों के विरुद्ध क़दम उठाना चाहिए।
यह सोचकर मैंने तुरंत उत्साहित होते हुए एक स्वाभिमानी व साहसी निर्णय लिया। मैंने साहस के साथ अपनी दोनाली बंदूक निकाली। बंदूक पर चढ़ी धूल व मिट्टी साफ की। उसका बहुत ही बारीकी के साथ निरीक्षण किया। निशाना चेक किया और फिर बंदूक के कारतूस निकाल कर बाहर रखे। एक गहरी सांस ली और स्वयं को शांत करते हुए अपनी इस पूरी कारवाई से संतुष्ट होकर बंदूक की खाली नाल पर अमन का प्रतीक सफेद कपड़ा बांधा और उसको रख आया निर्भीक, बिगड़ेल, ज़िद्दी चिड़ियों की ओर मुंह करके,खुले आकाश के नीचे। जो उस समय भी सूर्य को निकलने की चेष्टा में निरंतर प्रयास कर रहीं थीं।
नोट:- यह कहानी मैंने दूसरी बार पोस्ट की है। पहली कहानी किसी कारणवश डिलीट हो गई थी।

Thursday, September 10, 2020

बूढ़े हो गए हो तुम

मैंने अपने बेटे से कहा-आज़ादी का अर्थ यह नहीं है जैसा कि तुम समझ रहे हो।दिशाहीनता और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित तुम्हारी जीवन शैली ने आज़दी शब्द को अर्थहीन बना दिया है। इसका का आदर करो, यह बहुत क़ीमती है, मेरे बेटे।
उसने आत्म-निर्भरता के साथ नपे-तुले शब्दों में एक ही वाक्य में उत्तर देते हुए मुझ से कहा- आप बूढ़े हो गए हैं पिताजी।
मैंने अपनी बेटी से कहा- समाज ने लड़कियों के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हुई हैं। तुम उन सीमाओं का उल्लंघन करती दिखाई दे रही हो। लज्जा हमेशा से स्त्री का बहुमूल्य आभूषण रहा है, तुमने यह आभूषण क्यों उतार फेंका मेरी प्यारी बेटी? उसने तुरंत भाहीन स्वर मैं मुझे उत्तर देते हुए कहा- आप बूढ़े हो गए हैं पापा।
मैंने अपनी पत्नी से कहा- नारी स्वतंत्रता, महिला सशक्तिकरण,आत्मसम्मान एवं पुरुष से समानता जैसे शब्दों के मायाजाल मैं फंसकर यह जो कुछ आप नि:संकोच एवं निर्भय होकर कर रही हैं,यह सरासर गलत है और आने वाली पीढ़ियों के लिए तबाही भी। हमारी सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज किसी भी स्थिति में  इसकी अनुमति नहीं देते हैं। भविष्य की पीढ़ियों के चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी आपके कंधों पर है। इस जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक पूरा कीजिए और तुरंत रोकिए इन खुराफात को, जो समाज में आ रहे बदलाव के नाम पर आप अपनाती जा रही हैं,नहीं तो देर हो जायेगी। अगर देर हो गई तो विरासत के नाम पर नई पीढ़ी को देने के लिए आपके पास कुछ नहीं बचेगा। इतना सुनकर उन्होंने बड़ी निंदनीय निगाहों से मुझे देखा और ललकारते हुए कहा- बूढ़े हो गए हैं आप।
परिवार की प्रतिक्रियाएं सुनने के बाद, मैंने समाज को संबोधित करते हुए कहा- ऐसी क्या मजबूरी थी जो रिश्तों की गरिमा,मान-मर्यादा, आपसी भाईचारा,सम्मान, प्रेम, व्यवहार,चरित्र की गरिमा, शालीनता सब कुछ छोड़ दी तुमने। तुम ही तो हमेशा से हमारी पहचान रहे हो। तुम ही बदल गए तो हम किस दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर स्वयं को पहचानेंगे।
भावी पीढ़ियां किस चीज पर गर्व करेंगे।
क्या तुमने कभी सोचा है ? तो उसने बड़े  अहंकारपूर्ण एवं उपेक्षिता के साथ मुझ से हुए कहा- बूढ़े हो गए हो तुम।
इसके बाद मैंने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा- राष्ट्र स्वाभिमान, सम्मान,गौरव, रीति- रिवाज, सभ्यता आदि सब राष्ट्र इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों से लिखे यह वह शब्द होते हैं, जो सदियों में निर्माण होते हैं। त्यौहार प्र:या हमारी सभ्यता एवं परंपरा की पहचान रहे हैैं, तुमने इन सब मूल्यवान आदर्शों को छोड़कर यह किस नई सभ्यता के साथ हाथ मिला लिया है जो हमारी विचारधारा व चरित्र से मेल नहीं खाती है। हर रोज नए-नए त्यौहार,नई-नई मान्यताएं, जो तुम मनाने लगे हो वे हमारे समाज का कभी अंग नहीं रही हैं, यह विशेष दिवस मनाने का चलन तुमने कहां से सीख लिया। जो हमारी सभ्यता का हिस्सा कभी थे ही नहीं। इसकी जवाबदेही तो तुमको करनी ही होगी नहीं तो समय तुम्हें माफ नहीं करेगा।
उसने बड़ी घृणित नज़रों से मुझे देखते हुए कहा- बूढ़े हो गए हो तुम।
इस पूरे संवाद का निष्कर्ष यह निकला कि हर वर्ग ने एकमत होकर यह घोषणा करने में देर नहीं की कि मेरी सोच बूढ़ी एवं रूढ़िवादी हो चुकी है और मैं बुढ़ा। जबकि मैं यह मानने के लिए कदापि तैयाार नहीं कि मैं बूढ़ा हो गया हूं। मेरी चेतना मेरी सोच और मेरा विवेक मुझसे पूछता है। क्या क़ुराने पाक की शिक्षाएं,गीता के संदेश, बाइबल के उपदेश या गुरु ग्रंथ साहब की वाणी कभी बूढ़ी हो सकती है ? क्या पीर-फकीरों, ऋषि- मुनियों के पाक क़दमों से गुंथी मेरे देश की मिट्टी बूढ़ी हो सकती है ? क्या मेरे देश की बहुरंगी विरासत कभी बूढ़ी हो सकती है? अगर यह सब बूढ़े नहीं हो सकते हैं, तो मैं कैसे विश्वास कर लूं कि मैं बूढ़ा हो गया हूं।

- शाहिद हसन शाहिद
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Monday, September 7, 2020

दीवार पर लिखी गालियां

लेखक- शाहिद हसन शाहिद----

मैं उस समय अचंभित रह गया जब मैंने अपने घर की कच्ची दीवार पर पवित्र रंगों से लिखी दखीं अश्लील व नस्ली गालियां।
मैंने अपने बच्चों को बुलाया और उनसे पूछा-क्या तुम इन गालियों का अर्थ जानते हो ?
वह बोले-हां------हम अर्थ जानते हैं।
मैंने पूछा- क्या जानते हो ?
उन्होंने कहा- यही की हमारी औकात इन गालियों से अधिक नहीं है।
बच्चों का उत्तर सुनकर मैंने अपने पड़ोसी से पूछा- क्या तुम इन गालियों का अर्थ समझते हो, पहले तो वह कुछ नहीं बोला, फिर कुछ सोच कर कहने लगा- हां-------मैं इतना आवश्य समझता हूं की अगर हम उस पेंटर को तलाश कर लें जिसने यह गालियां लिखी हैं तो हमें इन गालियों का अर्थ अवश्य पता चल जाएगा।
मैंने फिर दूसरे पड़ोसी से पूछा- तुम्हारा क्या विचार है इन गालियों के बारे में ?
वह बोला-इन गालियों के बारे में मेरा कोई विशेष विचार तो नहीं है,पर मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि गालियां लिखने के लिए जिस पवित्र रंग का प्रयोग किया गया है, वह उचित नहीं है। इस पवित्र रंग के अतिरिक्त कोई दूसरा रंग होना चाहिए था तो उचित रहता।
मैंने तीसरे पड़ोसी से पूछा- तुम्हारी क्या राय है इन गालियों के संदर्भ में ?
वह बोला- शब्दों की कठोरता में भविष्य को तांडव करते देख रहा हूं। भगवान कृपा करे हम सब पर।
फिर मैंने चौथे पड़ोसी से कहा- महोदय, आप भी कुछ प्रतिक्रिया या विचार प्रकट कीजिए मेरे घर की दीवार पर लिखी इन अश्लील गालियों पर।
वह बोल-क्या बोलूं ? मैं तो केवल इतना जानता हूं कि गालियां हमारे समाज व हमारे चरित्र का दर्पण होती हैं, जब हम गालियों द्वारा अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं तो सुनने वाले को वह अवश्य गालियां लगती हैं जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है वह गालियां देने वाले के भीतर का भय या डर होता है जो गालियों के रूप में दूसरे पक्ष को डराने का कार्य करता है। इस समय वही डर तुमको डरा रहा है।
इस प्रकार मैंने समाज के हर व्यक्ति को अपने घर की कच्ची दीवार पर पवित्र रंगों से लिखी गालियों पर उनकी प्रतिक्रियाएं जानने की कोशिश की और सब ने ही अपने मतानुसार इन गालियों पर अपनी अपनी टिप्पणी दीं, पर अफसोस किसी एक ने भी हाथ में कपड़ा पकड़कर इन गालियों को दीवार से साफ करने की पहल नहीं की।
समाज की बहानेबाजी,नपुंसकत और संवेदनहीनता से दुखी होकर मेरे अंदर का अमानुष गुस्से से पागल हो उठा और उसने अपने इसी पागलपन से ग्रस्त होकर अपने मासूम बच्चों की बाहें मजबूती के साथ पकड़ीं और बंद कराया उनको उसी मकान में जिसकी कच्ची दीवार पर पवित्र रंगों से लिखी गयीं थीं अश्लील व नसली गालियां।
 साथ ही साथ बच्चों को यह चेतावनी भी दे आया की खबरदार- जो तुमने अपना मुंह और घर का दरवाजा खोला। तुम्हें अपना मुंह और घर का दरवाजा उस समय तक बंद रखना है जब तक तुम जवान होकर गालियां लिखने वालों को इन गालियों का अर्थ व परिणाम समझाने के योग्य ना हो जाओ।
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शाहिद हसन शाहिद

Saturday, September 5, 2020

पागल इंसान


एक महिला का निर्वस्त्र शव सुबह से सड़क  किनारे पड़ा लोगों की उपेक्षा का शिकार हो रहा था। आते जाते लोग उसको तिरछी निगाहों से देखते और सुबह-सुबह मूड खराब ना हो जाए इस डर से आगे बढ़ जाते। कुछ लोग रुके भी परंतु काम की जल्दी में मुंह घुमा कर वह भी आगे बढ़ गए। 
आबादी से भरे इस मोहल्ले में इस अपमानित होते शव की परवाह करने वाला दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था, जो महिला पर चादर डाल कर उसकी गरिमा का सम्मान करे।
समाज की अपंगता व उपेक्षा का शिकार यह शव लोगों को शायद इस कारण भी आकर्षित नहीं कर पा रहा था, क्योंकि उसका शरीर जवान ना होकर बूढ़ा था।
सड़क से गुजरते एक पागल की नजर उस शव पर पड़ी। पागल ने भयभीत नजरों से शव को देखा, फिर समाज के उन मुर्दा दिल लोगों की और देखा जो प्रतिक्रियाएं देने मैं व्यस्त थे। पागल ने एक शब्द उन से नहीं कहा। 
उसने विलंब किए बगैर अपनी फटी धोती उतारी और उस अपमानित होते नग्न मृत शरीर पर डाल कर चुपचाप आगे बढ़ गया।
पागल की धोती उतरते ही एक नई समस्या उत्पन्न हो गई। अब एक वयस्क व्यक्ति सभ्य समाज में नग्न अवस्था में बड़ी बेशर्मी के साथ घूमने के लिए तैयार था। जिसे देखकर स्वाभिमानी लोगों की सोई स्वाभिमानी ता जाग उठी और उनको लगा जैसे पागल ने अपनी धोती ना उतारकर पूरे समाज की धोती उतार दी हो। इस पीड़ा को महसूस करते हुए वह जोर-जोर से चीखने और चिल्लाने लगे-
अरे यह क्या हो रहा है? एक पागल जवान व्यक्ति हमारे मोहल्ले में इस प्रकार नंगा घूम रहा है, बेशर्मी की भी कोई सीमा होती है। पकड़ो इसको, रोको इस पागल को,यह पागल इस अवस्था में हमारे मोहल्लों में ना जाने पाए जहां हमारी बहू बेटियां रहती हैं।
समाज की ललकार के बाद लोगों की सोई अंतर्रात्मा जाग उठी उनको लगा कि पागल को अगर तुरंत ना रोका गया तो अनर्थ हो जाएगा इस कारण उन सब ने अपना आवश्यक काम -धंधा छोड़ा और उस पागल को पकड़ने के लिए दौड़ पड़े।
 थोड़ी सी मेहनत के बाद सभ्य समाज के मूल्यों से बेपरवाह वह पागल लोगों की पकड़ में आ गया। पागल के पकड़ में आते ही पहले तो इन लोगों ने उसकी इस अपराध के लिए जमकर पिटाई की कि वह शरीफ लोगों के मोहल्ले में बेशर्मी के साथ निर्वस्त्र घूम रहा था। फिर एक फटा कपड़ा देकर उसकी नंगता पर पर्दा डाल दिया।
 इस पूरे प्रकरण के बाद भी उस बुजुर्ग महिला का निर्वस्त्र शव वहीं पड़ा स्वाभिमानी  समाज के जागने की प्रतीक्षा करता रहा।
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धन्यवाद सहित
शाहिद हसन शाहिद

सब खुश हैं


मैं खुश हूं बल्कि बहुत ज्यादा खुश हूं ।

चार दिन अस्पताल में गुजार कर 'जान बची और लाखों पाए' कहावत अनुसार स्वस्थ लाभ लेकर वापस जीवित घर जो आ गया हूं।

मेरे स्वस्थ होने पर मेरा डॉक्टर भी खुश है। उसके कहने के अनुसार उसने 25000 रुपए की मामूली राशि लेकर मुझे नया जीवन जो प्रदान किया है, वह जीवन जो थोड़ी देर से क्लीनिक पहुंचने पर मेरा नहीं रहता और कुछ भी बुरा हो सकता था, जो समय पर क्लीनिक पहुंचने पर टल गया।

मेरे दोस्त वा रिश्तेदार भी मेरे स्वस्थ होने पर खुश हैं, उनकी खुशी का कारण है कि उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का बहाना लेकर टेलीफोन द्वारा मेरा हाल पूछ कर मेरे प्रति अपनी सद्भावनाएं समय पर पहुंचा दी थीं। जिस कारण वे अपनी आत्मीयता दिखाने में सफल रहे, नहीं तो सोचिए अगर मेरे साथ भगवान ना करे कुछ बुरा हो जाता और उनको अपनी व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर मेरे उस बुरे में शामिल होना पड़ जाता तो उनके लिए कितनी मुश्किल हो जाती।

मेरी बैगम भी खुश हैं, क्योंकि उन्होंने एक बार फिर मेरे प्रति अपना समर्पण व त्याग से सिद्ध कर दिया है की वह हमेशा की तरह इस बार भी वफादारी और प्रेम की कसोटी पर खरा सोना साबित हुई हैं, जबकि इसकी कीमत उनको अपने गले की वह सोने की चैन बेचकर अदा करना पड़ी है, जो मैंने उनको निकाह के समय मुंह दिखाई पर दिखी थी।

मेरे जीवित होने पर मेरे बच्चे भी बहुत खुश हैं। वह अपनी खुशी में खुदा का शुक्र अदा करना नहीं भूल रहे हैं, जिसने उनकी इज्जत बचा ली वह सोचते हैं कि अगर पापा के साथ कुछ बुरा हो जाता तो अस्पताल के बिल के साथ-साथ कफन, दफन और दूसरी धार्मिक क्रियाओं के अतिरेक इस अवसर पर आने वाले अतिथियों और उनके नाज़ नखरों पर आने वाला लगभग एक लाख का खर्च वह कैसे पूरा कर पाते क्योंकि उनकी मां के पास बेचने के लिए केवल सोने की चैन के अतिरिक्त कुछ और था ही नहीं।

- शाहिद हसन शाहिद

पाजी का खेल खत्म

पाजी का खेल खत्म
आजकल मैं एक ऐसी मनोवैज्ञानिक बीमारी से ग्रस्त हूं जिसमें कहने वाला कहता कुछ और है और मैं समझता कुछ और हूं। इसका अर्थ यह नहीं  है कि मैं बेरा हो गया हूं या मुझे सुनाई कम दे रहा है। बल्कि कोविड-19 के कारण गत 4 माह से घर में बगैर किसी अपराध के क़ेदियों जैसी जिंदगी गुजारने के कारण मेरे दिमाग ने अपनी मनमानी करना आरंभ कर दी है। मनमानी के कारण ही  आज  के समाचारपत्र की पहली हेडिंग को मैंने कुछ इस प्रकार पढ़ा-"पाजी का खेल खत्म"। इतना पढ़कर मैं कुछ क्षण के लिए स्तंभ रह गया कि यह कैसे हो सकता है ? पाजी तो ठीक-ठाक थे, कल तक तो वह शांत मन से मोर को दाना खिला रहे थे फिर यह कैसे हो गया ? समाचार के हेडिंग में मुझे कुछ संदेह लगा। मैंने उत्सुकता के साथ विस्तार से समाचार पढ़ना आरंभ किया तो ज्ञात हुआ कि पाजी नहीं बल्कि पबजी लिखा है। जिस को मेरे बीमार दिमाग ने पाजी पढ़ लिया और मैं वह सोचने लगा जिसको सोचने का 138 करोड़ भारतीयों को कोई हक नहीं है। 
यह तो वह  समाचार था जिसको सुनकर चीन भुखला उठा। उसके होश उड़ गए, अर्थव्यवस्था धरा शाही हो गई और वह पाजी के सामने गिड़गिड़ाने लगा। समाचार की  यह वह प्रतिक्रियाएं थीं जो हमको बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बतायीं।
पबजी के बंद होने के ग़म में कुछ लोग यह कहते भी सुने गए की पबजी को पूरे विश्व के 17.5 करोड़ युवाओं ने डाउनलोड कर रखा है। इसमें सर्वाधिक 5 करोड़ से अधिक भारतीय हैं। जिनमें से लगभग 3.5 करोड़ सक्रिय खिलाड़ी थे जो अब पबजी बन्द होने के बाद पुणीता बेरोजगार हो गए हैं।
युवाओं और बच्चों में लोकप्रिय गेमिंग एप प्लेयर अननोन बैटलग्राउंड यानी पबजी पर सरकार ने पाबंदी लगाने के पश्चात कुछ विद्वानों का यह भी कहना है की सरहदों पर चीन को मुंहतोड़ जवाब हमारे जवान दे रहे हैं और देश की अंदर की सफाई हमारे पाजी कर रहे हैं।
 यह पाजी शब्द भी बड़ा अनोखा है अगर पंजाबी भाषा में प्रयोग हो तो इसका अर्थ भाई होता है जबकि हिंदी भाषी इसका उपयोग चालाक एवं शैतान के तौर पर करते हैं। मैं पंजाबी अर्थ को उचित समझते हुए कहूंगा की पाजी ने 118 एप्स बंद करके जीडीपी वाले मुद्दे को अपने जादुई करिश्मे से गायब कर दिया, यही पाजी का मास्टर स्ट्रोक है। यह नए भारत का उदय है, जो विश्व गुरु है। अंततः मैं नए- नए हुए बेरोजगारों के प्रीति अपनी संवेदना प्रकट करते हुए कहूंगा कि वह खेलकूद से बाहर निकलें और मनोरंजक मींम्स देखने के लिए स्वयं को तैयार करें। जो भारतीय होंगे और हमको आत्मनिर्भर बनाने में सहयोगी भी।
-शाहिद हसन शाहिद
   

भौंकने वाले कुत्ते


मुझे याद है वह दिन जब शाम ढलते ही अचानक सैकड़ों कुत्तों ने शहर को चारों तरफ से घेरकर जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया था।
 जिस कारण महिलाएं डर गई थी और बच्चों ने रो-रो कर आसमान सर पर उठा लिया था। कुत्तों के इस प्रकार जोर-जोर से भोकने के कारण पूरे नगर का शांतिमय वातावरण अचानक आतंक के साए में आ गया था। इस घटना के बारे में किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है और कुत्ते क्यों भूख रहे है?
स्थानीय नौजवान भी इस अचानक होने वाले शौर की आवाज सुनकर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए थे, वह अचरज में थे परंतु शांत रहकर अचानक पैदा हुई परिस्थितियों को समझने की कोशिश कर रहे थे तभी मैंने एक बुजुर्ग की तरह जवानों को ललकारते हुए कहा था-
खड़े-खड़े क्या देख रहे हो ? किसकी प्रतीक्षा में हो, कुछ करते क्यों नहीं? तुम्हारी मर्यादा क्या खाक चाट रही है कुत्ते तुम्हें ललकार रहे हैं और तुम खामोश तमाशा ही बने खड़े हो। क्या यह पागल कुत्ते जब तुम पर हमला कर देंगे तभी तुम जागोगे, उठाओ अपनी-अपनी लाठियां और हमला करो इन भोकने वाले कुत्तों पर और भगाओ इनको शहर से दूर बहुत दूर जहां इनका स्थान है। मेरी ललकार सुनकर वीर जवानों ने एक दूसरे की और देखा था और आंखों ही आंखों में फैसला किया था कि यही वह उचित उपाय है जिससे स्वाभिमान और जिवन दोनों बचाए जा सकते हैैं। बस फिर क्या था पल भर में सैकड़ों लाठियां निकल आई थीं और बड़े संयोजित ढंग से इन भोकने वाले कुत्तों की ओर बढ़ गई थीं, कुछ समय बाद हम सब ने देखा था कि शौर थम गया है और कुत्ते खामोश हो गए हैं।
 कुछ समय बाद पता चला कि शोर थमने का कारण वह मजबूत लाठियां नहीं थीं, बल्कि वह रोटियां थीं जो हमारे स्वाभिमानी वीर जवान अपनी मजबूत लाठियों के साए में भयभीत लोगों की नजरों से छुपा कर इन भोकने वाले कुत्तों के लिए चौराहे पर रख आए थे।
- शाहिद हसन शाहिद
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