Sunday, February 28, 2021

आतंकी कौवे

वह एक ऐसा साधु है जो शनी और मंगल के प्रकोप से मुझे बचाने और मेरी हर मनोकामना पूरी करने के उद्देश्य से सप्ताह में कई बार मुझसे सरसों का तेल, काली दाल ले जाता है। इसके अतिरिक्त भी वह नित्य नए बहानों से मोटी रक़में मेरी जेब से निकालने का मास्टर है। अपनी इस अनोखी कला के कारण ही कभी कभी वह मुझे वित्त मंत्री लगने लगता है, रक़म ठगते समय वह राष्ट्रीय हित का सहारा लेकर मुझे भावुक बनाने में सफल हो जाता है और मैं हर बार उसके हाथों मुर्ख बन जाता हूं। एक आम आदमी जो मैं ठहरा। झोला छाप वह एक ऐसा साधु है जो मुझे यह विश्वास दिलाने में सफल है कि मेरा दिया हुआ दान मेरे विकास और मेरी जान माल की हिफाजत की फुल फलेज गारंटी है और साधु स्वयं मेरी हर इच्छा पूरा करने के लिए वचनबद्ध है। दान की इस शक्ति को समझते हुए मैं साधु महाराज का एक प्रकार से अंध भगत बन चुका हूं जो स्वयं को बड़ा भाग्यशाली और गोरवान्वित महसूस करता है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैंने साधु पर विश्वास के रूप में एसबीआई में एक बड़ी रकम फिक्स डिपॉजिट कर रखी हो, जिसको मैं जब चाहूं, जहां चाहूं, जितना चाहूं कैश करा सकता हूं।
एक दिन मैंने साधु की वचनबद्धता को परखने के तौर पर उससे कहा- महाराज मेरे मन की इच्छा तो यह है कि मैं देश का प्रधानमंत्री बनूं परंतु देश की परिस्थितियों को देखते हुए अब मैं यह चाहता हूं कि आप मुझे केवल "निठल्ला" बनने का वरदान दें।
मेरी अजीब सी इच्छा सुनने के बाद साधु ने कहा "निठल्ला" तो मैं तुमको बना दुंगा परन्तु पहले तुम्हें राष्ट्र हित में एक काम करना होगा। मैंने पूछा वह क्या है ? 
साधु ने तुरन्त कहा- खुले आकाश में उड़ने वाले उन काले कौवों को भगाना होगा जिनकी कांव-कांव ने देश के शांतिपूर्ण माहौल को दूषित कर रखा है।
साधु के इस सुझाव को मैं समझ नहीं सका कि वह ऐसा क्यों कह रहा है कि मैं निठल्ला बनने से पहले कौवे उड़ाऊं। साधु ने तो मुझे विश्वास दिलाया था कि वह मेरी हर मनोकामना पूरी करने की शक्ति रखता है, सो मैंने निठल्ला बनने की अपनी इच्छा कह दी तो यह कंडिशन एप्लाई शर्तें कहां से आ गयीं ? 
स्वाभाविक तो यह था कि साधु मुझसे पूछता कि अचानक तुमने प्रधानमंत्री बनने की अपनी चाहत से मुंह क्यों मोड़ लिया?
"निठल्ला" बनने का विचार तुम्हारे मन में कहां से आ गया?
यह शब्द तुमने कहां से सिखा? 
जिसके उत्तर में, मैं उसको बताता कि यह शब्द मैंने किसान आंदोलन से सिखा है और वहीं से मैंने यह भी जाना है कि आजकल देश निठल्लों को काफी इज़्ज़त की निगाह से देख रहा है। निठल्लों का ग्राफ शेयर मार्केट की तरह उछालें मार रहा है। इसी गर्व को ग्रहण करने की ख्वाहिशों ने मुझे यह साहसी फेसला लिने पर मजबूर किया है। परंतु जुमले बाज़ साधु ने मेरी हसरत पर पानी फेरते हुए बड़ी चतुराई से मुझे असल मुद्दे से भटका कर मेरा सामना काले कौवों से करा दिया जिनको वह आतंकवादी समझता है। 
अब मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि साधु के बताए आतंकियों को कहां तलाश करूं। साधु किन आतंकियों की बात कर रहा है। 
कहीं उसका इशारा उन कौवों की ओर तो नहीं है जो गत चार पांच वर्ष में देश के कौने कौने में कभी किसान आंदोलन जीवी बनकर,कभी आतंकवादी जीवी, कभी नक्सलवादी जीवी, कभी अर्बन नक्सलवादी जीवी, कभी टुकड़े टुकड़े गेंग जीवी,कभी मजदूर जीवी,कभी व्यापारी जीवी,कभी निम्न व मध्य वर्गीय जीवी,कभी शिक्षक जीवी, कभी सहायक शिक्षक जीवी, कभी पाकिस्तानी जीवी, कभी चाइनीज़ जीवी, कभी लव जिहाद जीवी, कभी तीन तलाक़ जीवी, कभी सीए विरोधी जीवी, कभी एन आर सी विरोधी जीवी, कभी जयश्री राम विरोधी जीवी, कभी डॉक्टर जीवी, कभी नर्स जीवी, कभी प्रोफेसर जीवी, कभी विद्यार्थी जीवी, कभी आंगन वाड़ी वर्कर जीवी और ना जाने किस किस रूप के आंदोलन जीवी कौवे बनकर देश के आकाश में कांव कांव करते सुनाई दे रहे हैं। इन कौवों तक पहुंचते ही मेरी हालत अब कुछ इस प्रकार हो गई है कि जब मैं सोता हूं तो मुझे सपने में कौवे नज़र आते हैं। जागता हूं तो मुझे हर व्यक्ति कौवा जैसा दिखाई देता है और मैं उसके चेहरे पर कौवे की नुकेली चोंच देखकर नफरत से मुंह मोड़ लेता हूं। निगाहें हर समय आसमान और ज़मीन पर नए नए कौवे तलाश करती रहती हैं। विपक्ष का तो हर नेता मुझे कौवा ही नज़र आता है। 
कौवों के इन माया जाल से जितना खुद को आज़ाद कराना चाहता हूं उतना ही उसमें फंसता जा रहा हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी इस हालत के लिए किसको जिम्मेदार ठहराऊं.....?
खुद को.....?
अपनी इच्छा को.....?
साधु को.....?
या कौवों को.....?
राष्ट्रहित में किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही होगी। 
मुजरिम कोई तो है इन परिस्थितियों का। 
ऐसा मुजरिम जिसको माफ नहीं किया जा सकता। 
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शाहिद हसन शाहिद
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Monday, February 15, 2021

अफवाह जीवी

काला कुर्ता,गले में भगवा गमछा और माथे पर लाल तिलक लगाए जब वह सड़क पर इतराते हुए निकलता तो देखने वाले दंग रह जाते। लोगों को महसूस होता कि सड़क पर कोई आंदोलनन जीवी नहीं बल्कि पूरा आंदोलन दौड़ा चला आ रहा है।
जीव जैसा दिखने वाला यह व्यक्ति था बहुत ही चुस्त व चालाक। हाथ नचा-नचा कर बात करने और जुमले वाज़ी का वह ऐसा हुनर जानता था कि अच्छे-अच्छे मदारी उसके सामने पानी भरते नज़र आते। उसके चाहने वालों का एक बड़ा ग्रुप था जो उसको पप्पू कह कर बुलाता था, जिसका वह कभी बुरा नहीं मानता था। 
पप्पू ने "अफवाह जीवी" नाम का एक क्लब बना रखा था। यह अपनी तरह का ऐसा क्ल्ब था जो नए और पुराने चुटकुलों को नए अर्थ और नए जुमलों से सजाकर मनोरंजित बाजार में उतार कर लोगों को मुस्कुराने के लिए मजबूर करता था।
इस अनोखी पैदावारी यूनिट का पप्पू ऐसा चेयरमैन था जो लोगों की फरमाइश पर अपनी फेक्ट्री का तैयार चुटकुला उसी समय सुनाकर आगे बढ़ जाता। यही उसकी दिनचर्या थी। आज भी उसने लोगों की फरमाइश पर एक चुटकुला सुनाया जो कुछ इस प्रकार था....
एक बुद्धिजीवी बहुत बड़ा पत्नी प्रेमी था जो हर समय पत्नी की सेवा में लगा रहता और उसको मेरी सरकार, मेरी सरकार कहकर खुश रखने की कोशिश करता रहता था। जबकि पत्नी उसको आम जनता की तरह बुध्दूजीवी से अधिक भाव नहीं देती थी। पत्नी का चरित्र बड़ा विवादित था। वह अपने बुध्दू पति से अधिक अपने घनिष्ठ मित्रों को तवज्जो देती थी। लोगों की निगाह में वह एक दिशाहीन पत्नी थी,जो अपने कुछ मित्रों के साथ बने संबंधों को लेकर काफी बदनाम थी। पत्नी के तर्क अनुसार यह उसकी नवीनतम जीवन शैली का एक ऐसा पक्ष था जिस पर किसी को कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए। 
पत्नी के इस रवैये और लोगों के तानों से वह व्यक्ति काफी दुखी और डिप्रेश रहता था। उसने अपनी पत्नी को बार-बार समझाया कि तुमने अपने लिए जो रास्ता चुना है वे ठीक नहीं है। दूसरे पुरुषों से इस प्रकार खुलेआम संबंधों रखना हमारा पारंपरिक समाज स्वीकार नहीं करता है। कुछ पर्दा रहना चाहिए। खुलेपन की इस अंधी दौड़ से तुुम बाहर आओ और अपनी इस खराब आदत को छोड़ कर एक संस्कारी पत्नी की तरह मेरे दिल की सरकार और मेरा स्वाभिमान बनकर रहो।
दिशाहीन पत्नी पर इन बातों का कोई असर नहीं था और वह अपनी हरकतें छोड़ने को तैयार नहीं थी। उस व्यक्ति के घनिष्ठ मित्र उसकी इस परिवारिक समस्या को जानते थे परन्तु वे इस संबंध में उसकी कोई सहायता नहीं कर पाते क्योंकि वे जानते थे कि यह उसका आंतरिक घरेलू मामला है।
एक दिन अचानक वह व्यक्ती खुश-खुश अपने मित्रों के पास पहुंचा। 
मित्रों ने जब उसका खुशी से हो रहा लाल चेहरा देखा तो वे समझ गए कि कोई अच्छी खबर है, जो वह उनको सुनाने वाला है।
मित्रों ने उत्सुकता दिखाते हुए उससे कई सवाल एक साथ पूछ डाले- उन्होंने पूछा- क्या भाभी ने तुम्हारी नसिहत मान ली है, क्या उन्होंने अपने चरित्र को ठीक करने का निर्णय ले लिया है, क्या उन्होंने अपने आवारा मित्रों को छोड़कर तुम्हारे साथ एक वफादार पत्नी की तरह रहना स्वीकार कर लिया है?
मित्रों के सवाल सुनकर उस व्यक्ति ने एक गहरी सांस ली और कहा-ऐसा कुछ नहीं हुआ है। सब कुछ पहले जैसा ही है वह अपनी ज़िद पर अभी भी कायम है।
मित्रों ने पूछा तो फिर तुम्हारी खुशी का राज़ क्या है?
उसने गंभीर होते हुए कहा-मैंने खुश रहने का आसान रास्ता तलाश कर लिया है।
मित्रों ने पूछा- वह रास्ता क्या है? 
उसने कहा- मैंने अपनी सोच बदल ली है।
मित्रों ने कहा- हम समझे नहीं?
उसने कहा-मेरी बदली हुई सोच अब यह कहती है कि मेरी पत्नी जिसको मैं प्यार से "सरकार" कहता हूं वह समाजिक तौर पर धर्म पत्नी तो मेरी है परंतु फील गुड उससे आजतक उसके धनवान मित्र लेते रहे हैं। अब मेरी नई सोच के अनुसार आज से मैं यह सोचूंगा कि वह पत्नी तो उन धनवान लोगों की ही है परंतु जब भी मुझे अवसर मिलेगा मैं "फील गुड" का मज़ा उठाउंगा। 
इतना कहकर पप्पू आगे बढ़ गया। लोग हंसते रहे किसी ने यह नहीं सोचा कि पप्पू ने जवाहर लाल नेहरू के ज़माने के पुराने चुटकुले को किस सुन्दरता के साथ अपनी जुमले बाज़ी की महारत से आज का सच बना दिया था।
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