Monday, November 30, 2020

लव-जिहाद

मेरी चिंता का कारण यह नहीं है कि मुझे पेट भरने के लिए रोटी चाहिए, चिंता का कारण यह भी नहीं है कि मेरे सर पर छत का साया नहीं है, ना ही यह है कि मुझे शरीर ढकने के लिए कपड़े की आवश्यकता है। यह सब भौतिक सुविधाएं तो भगवान ने मुझे बेहिसाब दे रखी हैं। विलासिता पूर्ण जीवन, सुंदर व सुशील पत्नी, संस्कारी बच्चे, घनिष्ठ मित्रों की भीड़ के अतिरिक्त नौकरों की पूरी फौज,"जैसा आपका आदेश" कहने वाले 
जी-हज़ूर्ये, दूर वह क़रीब के रिश्तेदार, इज़्ज़त, दौलत हर प्रकार की चकाचौंध सब कुछ तो है मेरे पास फिर भी मैं मन से अशांत हूं। एक बेचैनी एक तनाव मैंने अपनी दौलत से खरीद रखा है, जो अब मेरा भाग्य बन चुका है और मैं अपने ही हाथ का खिलौना बन कर रह गया हूं।
पूरी पूरी रात जाग कर सीसीटीवी कैमरों द्वारा घर व बाहर की हलचल पर अपनी पत्नी, बहू,बेटियों और विशेषकर उस बड़ी-बड़ी स्टाइलिश मूछों वाले अपने पसंद के सिक्योरिटी गार्ड पर नज़र रखता हूं, जिसको विशेष तौर पर मैंने अपनी सुरक्षा के लिए नियुक्त किया है और जो हर समय हाथ बांधे मेरी सेवा में उपस्थित रहता है।
साहस, वीरता एवं पौरूष की प्रतीक उसकी मूछें दिन के समय मुझे और मेरे परिवार को प्रभावित वह उत्साहित रखती हैं। अपने सेवकों में मुझे वह पसंद भी अधिक है; परंतु रात आते ही उसकी शानदार मूछें मुझे लव-जिहाद के भूत की भांति डराने लगती हैं।
अपने कमरे के बाहर रात के समय जब मैं इन पहरेदार मूछों को अपनी व परिवार की सुरक्षा करते देखता हूं तो डर जाता हूं और भय के कारण पूरी-पूरी रात जागकर इन खतरनाक मूछों की मामूली सी मामूली हरकत पर नज़र रखता हूं ताकि यह मूछें कोई अनहोनी ना कर जाएं। मैं आपको सही बता रहा हूं कि मेरे मन ने इस अंजान भय को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है कि मेरी जरा सी भूल मेरे लिए काल बन सकती है और यह खतरनाक मूछें एक न एक रात कोई शिकार अवश्य कर डालेंगी।
इस खौफ के कारण ही मैं अपने कमरे में रखे सीसीटीवी मॉनिटर पर पूरी पूरी रात जाग कर नजरें जमाए बैठा रहता हूं ताकि ना निगाह हटेगी और ना दुर्घटना घटेगी।
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शाहिद हसन शाहिद
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Friday, November 20, 2020

चटपटी चाट के पत्ते

मेरे दिल के डॉक्टर का कहना है कि मैं नमक और तेज मसालों का सेवन ना करूं क्योंकि मैं ब्लड प्रेशर का मरीज हूं।
हड्डियों का डॉक्टर कहता है कि दही,खट्टी- मीठी चटनी, छिलके दार दालें, दूध से तैयार किसी भी प्रकार के व्यंजन का सेवन ना करूं यह सब यूरिक एसिड उत्पन्न करते हैं। जिस कारण घुटनों का दर्द बढ़ जाता है।
मेरा अनुभव भी यही कहता है कि थोड़ा सा असंतुलित भोजन मेरे दिल की धड़कने तेज करने, सांस फूलने व घुटनों के दर्द को बढ़ाने के लिए प्रर्याप्त होता है।
स्वास्थ्य की इस खराब स्थिति के बावजूद, मैं अपनी फूली हुई सांस व एक वफादार दोस्त की तरह दिन-रात साथ रहने वाले अपने घनिष्ठ मित्र यानी घुटनों के दर्द के साथ नगर के मीना बाजार की मशहूर चाट वाली दुकान पर शाम होते ही पहुंच जाता हूं।
इस दुकान की चाट पापड़ी और गोलगप्पे अपने तीखे स्वाद और तेज़ मसालों के कारण शहर के चटोरों में काफी मशहूर हैं। दुकान पर स्वस्थ लोगों का हर समय मेला लगा रहता है।अब आप सोच रहे होंगे कि इन स्वस्थ चाट के चटोरों के बीच मेरा जैसा अस्वस्थ व्यक्ति जिस पर चाट खाने की पूर्णतः पाबंदी है वह अपने स्वास्थ्य का ख्याल ना रखते हुए चाट की दुकान पर जाने का जोखिम क्यों मोल लेता है? कौनसी ऐसी मजबूरी है कि बगैर चाट खाए यह व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता? चाट की दुकान से उठने वाले मसालों की सुगंध उससे कुछ भी अनर्थ करा सकती है। इन प्रश्नों के उत्तर में, मैं केवल इतना ही कहूंगा की चाट की दुकान पर जाना मेरी कोई मजबूरी नहीं है। मुझे स्वंय पर और अपनी ज़ुबान पर इतना यकीन और भरोसा है कि स्वादिष्ट चाट मेरी सेहत से खिलवाड़ करने का हौसला नहीं कर सकती। मेरे वहां जाने का कारण तो एक तलाश है जो मुझे उन गरीब बच्चों के दरमियान ले जाती है, जो चाट खाने की अपनी चाहत में अमीरों द्वारा फेंके चाट के झूठे पत्ते प्राप्त करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। नंग धड़ंग यह मासूम बच्चे अपनी फ्री स्टाइल कुश्ती दिखाते समय चोट भी खा जाते हैं फिर भी हार नहीं मानते और झूठे पत्तों को अपना हक़ समझते हुए अपनी जद्दोजहद में अपने ही भाइयों के साथ लड़ने का कौशल अमीरों को दिखाते नहीं थकते हैं, जबकि चाट खाने के शौकीन लोग अपने मनोरंजन के लिए अपने चाट के झूठे पत्ते उन बच्चों की ओर रुक-रुक कर फेंकते हैं, ताकि तमाशा जारी रहे। मैं तो केवल एक मुर्दा समाज की तरह यह देखने जाता हूं कि यह गरीब बच्चे कब बड़े होंगे और कब इस बात को समझेंगे कि उनकी गरीबी का मजाक उड़ाने वाले इन अमीरों के लिए वह कब तक मनोरंजन का साधन बनते रहेंगे। अमीरों की सोच में कब बदलाव आएगा यह मैं नहीं जानता या उन में कब कोई ऐसा अमीर पैदा होगा जो इस मनोरंजन के बाद या पहले इन बच्चों को एक चाट का पत्ता खिलाने का हौसला रखता हो यह भी मैैं नहीं जानता, हां...! यह अवश्य जानता हूं कि बच्चे गरीब हैं, पिछड़े हैं और जरूरतमंद हैं।अमीरों को सोचना चाहिए की चाट की खुशबू और चोट का दर्द तो सब को एक ही समान विचलित करता है चाहे वह अमीर हो या गरीब हो।

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शाहिद हसन शाहिद
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Tuesday, November 10, 2020

मुझे इंटरव्यू देना है

साधू सा देखने वाला एक व्यक्ति मेरे कार्यालय मैं आया और कहने लगा- मुझे इंटरव्यू देना है, पत्रकार बुलाओ।
मैंने सर से पैर तक उसको कई बार देखा और मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नया नया साधू बना है, पहले यह निश्चय ही मिडिल क्लास का रहा होगा, उसकी मनोस्तिथि देखते हुए मैंने उससे कहा दिया कि हम साधू-संतों के इंटरव्यू नहीं करते हैं। इतना सुनते ही वह क्रोधित हो गया और बिगड़ कर कहने लगा-
इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी कोई इज्जत ही नहीं है। उसके गुस्से को देखते हुए मैंने कहा- इज्जत है, परंतु वह 5 वर्ष बाद तुमको मिलती है अभी समय नहीं आया है,जब समय आएगा तो इज्जतदार लोग तुम्हारे दरवाजे पर इज्जत लेकर पहुंच जाएंगे उस समय तुम इज्जत दार बन जाना और इंटरव्यू देना। मेरा कटाक्ष सुन कर उसने शक भरी नज़रों से मुझे देखा और पूछा- तुम कौन हो? मैंने कहा- लेखक...! लेखक सुनते ही उसने बुरा सा मुंह बनाया और कहा- मुझे तुमसे बात नहीं करनी है, मुझे दबंग पत्रकार चाहिए, जो आंखों में आंखें डालकर कड़क आवाज मैं पूछ सके मुझे जवाब चाहिए। ऐसा पत्रकार बुलाओ। मैंने कहा- मैं पत्रकार भी हूं और लेखक भी टू इन वन। उसने टू इन वन पर गौर ना करते हुए कहा -लेखक पत्रकार नहीं हो सकता। उसका स्पष्ट विश्लेषण सुनकर मैंने कहा- अब लेखक और पत्रकार में कोई फर्क नहीं रह गया है, बड़े-बड़े नेताओं के इंटरव्यू अब लेखक ही पत्रकार बनकर कर रहे हैं और तुम कह रहे हो कि लेखक पत्रकार नहीं हो सकता
तुमको मालूम नहीं की देश बदल चुका है,अब लेखक ही नहीं फिल्मों के नायक भी इंटरव्यू करने लगे हैं।पत्रकार तो केवल अपने स्वामी द्वारा दिए हुए निर्देशों का पालन करते हुए केवल चीखने चिल्लाने तक ही सीमित रह गए हैं। अपनी बात बीच में रोकते हुए मैंने उससे कहा- छोड़ो इन बातों को तुम बताओ इंटरव्यू क्यों देना चाहते हो? उसने कहा- तुमने अभी कहा था कि देश बदल चुका है, जो गलत है, मैं कड़े शब्दों से इसका खंडन करता हूं ,देश नहीं बदला है, लोग बदल गए हैं। हमारे मालिक बदल गए हैं जिन्होंने या तो हमको देश के अमीरों को बेच दिया है या गिरवीं रख दिया है। मेरी गरीबी इसका सबूत है। पर इस समय मैं अपनी गरीबी पर बात करने नहीं आया हूं और ना ही यह बताने आया हूं कि मैं जन्मजात साधू नहीं हूं। मैं तुम्हारे कार्यालय में अपने साथ हुए धोखे पर बात करने आया हूं,उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने आया हूं। मैंने उसकी पीड़ा को समझते हुए सहानुभूति दिखायी और पूछा-तुम्हारी अपनी पहचान खत्म होने से भी ज्यादा बड़ा कोई और नया धोखा हुआ है ? उसने कहा हां...! आज सुबह ही हुआ है। मैंने पूछा कैसा धोखा हुआ है और किसने दिया है? उसने एक समाचार पत्र मुझे दिखाते हुए कहा- इस समाचार पत्र ने मुझे धोखा दिया है। मैंने समाचार पत्र हाथ में पकड़ते हुए पूछा- इसने क्या धोखा दिया है तुम को? उसने कहा- मैंने सुबह का नाश्ता नहीं किया है,चाय भी नहीं पी है। उसकी इन बातों का अर्थ ना समझते हुए मैंने पूछा- इसमें समाचार पत्र का क्या दोष है? उसने कहा-केवल ₹3 ही थे मेरे पास, मैंने चाय नहीं पी उन पैसों से समाचार पत्र खरीद लिया। अब तुम खुद ही देख लो,12 पन्नों के इस पत्र में 9 पन्नों पर पूरे पूरे पेज के विज्ञापन हैं जिन में अधिकतर में सरकार की उन नीतियों का उल्लेख है जो धरातल पर कहीं नहीं हैं, फिर उसने मेरी ओर देखा और कहा, हमारी कोई इज्जत ही नहीं है हमें फेक न्यूज़ बेची जा रही हैं। मैंने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उस से कहा -तुम्हें समाचार पत्र नहीं खरीदना चाहिए था तुम इन पैसों की चाय पी लेते। उसने कहा मुझे अपने बच्चों की फिक्र है। तुम ही बताओ क्या हमारे बच्चों की सब आवश्यकताएं सन्यासी हो गई हैं। देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। सब ने सुबह की चाय पी ली है। सबके हाथ में मिनरल वाटर की बोतलें थमा दी गई हैं। सबको भरपेट पिज़्ज़ा व फल फ्रूट मिल गए हैं। सब स्वस्थ हो गए हैं। सब बच्चे नौकरी करने लगे हैं। सबको कोरोना वैक्सीन मिल गई है। यही सब कुछ जानने के लिए मैंने समाचारपत्र खरीदा था परंतु वहां व्यवसाय और बाज़ारबाद तो मिला पर देश या उसकी मूल समस्याएं नहीं मिलीं। सब फ्रॉड है। मेरे ₹3 डूब गए।
अपनी सारी पूंजी डुबो देने वाले व्यक्ति का दुख सुनने के बाद मैं यह नहीं समझ पाया कि इसको किन शब्दों से समझाऊं कि हमारे देश ने विकास की जिस गति को अपनाया है उसमें गरीब या उसकी समस्याओं को कोई स्थान नहीं है, परंतु यह शब्द मैं उससे कह नहीं सका वह अब भी भावुक होते हुए यही कह रहा था कि मुझे इंटरव्यू देना है। पत्रकार बुलाओ। 
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Sunday, November 1, 2020

पहचान कौन ?

पहचान तो लिया होगा....! दरवाजे पर खड़ी गेहूं के आटे से बनी रोटी ने मुझसे इस प्रकार पूछा,जैसे वह खाने लायक रोटी ना होकर तलाक शुदा पत्नी हो और कटाक्ष करते हुए पूछ रही हो, पहचान कौन ?
मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा-पहचान लिया और क्यों नहीं पहचानूंगा ? तुम वही रोटी हो जिसने युगों-युगों से समय का पहिया थाम कर रखा है। जिसने अपना रुतबा फकीरों की कुटिया से राजाओं के महलों तक हमेशा बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। जिसके लिए बार-बार युद्ध लड़े गए हैं और आज भी लड़े जा रहे हैं। तुम्हारे ना मिलने से कई मानव जातियां भूख के समंद्र में गार्क होकर अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। मैं जानता हूं तुम वही हो जिसकी तलाश में लोग अपना देश,परिवार और अपनी पहचान तक छोड़ देते हैं। 
रोटी ने धैर्य के साथ अपनी प्रशंसा या कथा सुनी और कहा ठीक कह रहे हो तुम....! मेरी आवश्यकता हर समय हर व्यक्ति,हर समाज और हर जीवित प्राणी को रही है। मेरा महत्व कल भी था और आज भी है और भविष्य में भी इसी प्रकार बना रहेगा, तुम यह भी जानते हो की मुझे प्राप्त करने के लिए सख्त मेहनत की शर्त हमेशा रही है। परंतु समय के बदलाव के कारण अब उस शर्त के अतिरिक्त कुछ नए बदलाव आ गए हैं। इन नए बदलाव के कारण ही मुझे घर-घर जाकर लोगों से पूछना पड़ रहा है कि नई शर्तें पूरी करेंगे तभी मैं उनका पेट भरने का आश्वासन दूंगी। 
यह रूप रोटी का मैंने पहली बार देखा था कि वह घर घर जाकर पूछ रही थी कि मेरी आवश्यकता है,तो मेरी शर्तें पूरी करो,तभी मैं तुम्हारा पेट भरने के लिए तैयार हूंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि दरवाजे- दरवाजे रोटी का भटकना स्मृद्धि या विकास का कारण नहीं है, जैसा कि पहले मेरे मन में विचार आया था या अनुभव था। यह एक लक्ष्य था जिसको प्राप्त करके ही रोटी गृह प्रवेश कर सकती थी। 
रोटी के इस रूप को देखकर मैं अचंभित हो उठा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं रोटी के प्रस्ताव पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया दूं। अमीर और गरीब का भेदभाव ना रखने वाली रोटी को मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था कि वह पेट भरने के लिए मेहनत के अतिरिक्त किसी दूसरी शर्तों का सहारा ले रही हो। मेरे मन में एक प्रश्न आया और मैंने उससे पूछा- घर में प्रवेश के लिए मेहनत के अतिरिक्त और क्या शर्त है तुम्हारी?
रोटी ने स्वयं को हवा में लहराते हुए कहा- शर्त, अनिवार्य भी है, जो मेहनत द्वारा मुझे प्राप्त करने से अतिरिक्त है। इससे पहले तो मेहनत के अतिरिक्त कोई और शर्त तुमको पाने के लिए नहीं होती थी। मैंने तर्क देते हुए पूछा।
वह समय मूर्खों का था,अब समय बदल गया है, रोटी ने दो टुक जवाब देते हुए कहा।
मैं समझ गया मुझे अपना आधार कार्ड किसी संस्था के साथ लिंक कराना पड़ेगा। यह भी अनिवार्य है,इसके अतिरिक्त भी एक शर्त और है। रोटी ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए उत्तर दिया। वह क्या है ? मैंने अचंभित होते हुए पूछा- उसने कहा राष्ट्रवाद साबित करने के लिए वंदे मातरम सुनाना अनिवार्य है। 
रोटी की शर्त सुनते ही मैं अचंभित रह गया। मुझे तुरंत अपने पड़ोसी का ख्याल आ गया जिसको वंदे मातरम नहीं आता था जबकि रोटी की उसे सख्त आवश्यकता थी। मैंने रोटी से कहा- तुम्हारी आवश्यकता मुझे भी है और मेरे पड़ोसी को भी है, परंतु तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिए मुझे 2 दिन का समय चाहिए। रोटी ने मेरा चेहरा देखते हुए प्रश्न करते हुए पूछा- तुमको वंदे मातरम नहीं आता है, तुम समय क्यों चाहते हो? मैंने कहा-आता है परंतु मेरे पड़ोसी को नहीं आता है। मैं इन 2 दिनों में अपने पड़ोसी को वंदे मातरम याद करा दूंगा।
यह कहते हुए मुझे अपने शब्दों में खुशामद का भाव साफ नजर आ रहे थे जबकि रोटी का चेहरा भावहीन था किसी हिटलर की तरह।
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शाहिद हसन शाहिद
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