Tuesday, March 30, 2021

मेरी संपत्ति

मेरा शरीर मेरी संपत्ति है। मैं इसको जिस प्रकार चाहूं रख सकती हूं। किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। यह शब्द उस लड़की के थे, जो देखने में एक मध्यवर्गीय परिवार की लग रही थी और मेरे पास नौकरी की तलाश में इंटरव्यू देने आई थी। पश्चिमी डिजाइन के कपड़ों में वह सुंदर लग रही थी। मैंने एक नज़र उस पर डाली और बैठने के लिए कुर्सी की ओर इशारा करके उसका सीवी पढ़ने लगा। शैक्षणिक योग्यता देखने के बाद जब मैंने कुछ प्रश्न पूछने के लिए उसकी ओर देखा, तो मैं यह देखकर हैरान रह गया की 21 वर्षीय इस लड़की की शर्ट में बटन नहीं थे और जो वह पहने थी उसका गला गहराई तक खुला हुआ था। जिस से उसके शरीर के खुले अंग साफ देखे जा सकते थे। जबकि वह इस दिगम्बर अवस्था में सजगता के साथ बैठी हुई थी।
मैंने अपनी नज़रें नीचीं रखते हुए उससे कहा- पहले आप अपने कपड़े ठीक कीजिए फिर आगे की बात करते हैं।
उसने बुरा सा मुंह बनाकर मेरी ओर देखा और पूछा- इसमें बुरा क्या है ? 
मैंने कहा- बुरा कुछ नहीं है फिर भी बेटियों का सम्मान हमारी संस्कृति है। इतना सुनकर उसने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा- शहर में लगे बड़े-बड़े होल्डिंग पर नज़र आने वाली मॉडल के कपड़ों पर आपने कभी आपत्ति नहीं जताई ? उनको देखकर क्यों शांत हो जाते हैं आप और आपका सभ्य समाज। उन बड़े ब्रांड से क्यों नहीं कहा जाता कि हम तुम्हारे प्रोडक्ट का बहिष्कार कर रहे हैं, तुमने एक स्त्री को भरे बाज़ार में निर्वस्त्र किया है। 
उसका तर्क सुनकर मैंने कहा- देखो बेटी...! वह रंगों से बनी केवल एक छवि होती है, मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही उसनेे मुझे रोकते हुए कहा- पर वह छवि होती तो एक स्त्री की ही है।
मैंने फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- उनमें भावनाएं नहीं होती हैं।
उसने फिर टोकते हुए कहा- परंतु वह भावनाएं जगाती तो है। 
जीवित औरत और तस्वीर में बहुत अंतर होता है, आप यह क्यों नहीं समझातीं। हाड- मास की महिला में भावनाएं भी होती हैं और सेक्स अपील भी। अक्सर देखा गया है कि महिला को अर्धनग्न देखकर बहुत से अमानुष्य अपने ऊपर निरंतर खो देते हैं और बलात्कार जैसे संगीन जुर्म हो जाते हैं। मैंने उसके तेवर देखते हुए समझाने की कोशिश की।
यह पुरुषों की समस्या है,उनकी बिमार मानसिता और परवरिश की समस्या है, स्त्री की नहीं। उसने भी तुरंत उत्तर देते हुए कहा। इतना कहकर वह कुछ क्षण के लिए खामोश हुई और एक गहरी सांस लेते हुए बोली- देखिए, अंकल...! पुरुष समाज को महिला के प्रति अपना दख्यानूसी दृष्टिकोण बदलना होगा विश्व गुरु ऐसे ही नहीं बना जाता इसके लिए समाज को एक बड़ी राष्ट्रवादी क्रांति सोच की आवश्यकता है जिसमें हम महिलाएं की हिस्सेदारी भी जरूरी है। 5 मीटर साड़ी में लिपटी महिला अब अपने हौसलों के साथ खुले आसमान में उड़ना चाहती है, जो उसका हक़ है उसको उसका हक़ मिलना चाहिए। फिर उसने मुझसे कहा-
पुरुष प्रधान समाज ने अपनी झूठी शान बनाए रखने के लिए महिला को बड़ी चतुराई से अपने शाब्दिक जादू से लज्जा व शर्म जैसे मायावी ज़ेवर पहना कर युगों से क़ेद कर रखा है। उसकी शारीरिक संपत्ति को कपड़ों से बनी गुफाओं में कैद रखने का एक प्रकार से अपराध किया है। इतना कहकर वह खड़ी हो गई, मैं समझा कि मेरे विचारों से वह नाराज़ हो गई है और अब मेरी झूठी सभ्यता पर थूक कर जा रही है। मैंने इस क्रांतिकारी लड़की को सर से पैर तक गौर से देखा। उसने भी मुझे देखते हुए देख लिया था। शायद इसलिए वह गई नहीं बल्कि बड़े आराम से कुर्सी पर बैठ गई और बोली- अंकल...! सच बताएं
आपने मुझमें क्या देखा।
मैंने कहा- कुछ खास नहीं देखा, केवल यह कि तुम एक आम सी दिखने वाली लड़की हो, जिसकी जींस घुटनों से ऊपर और घुटनों से नीचे फटी हुई है।
उसने कहा- इसके अतिरिक्त आपने क्या देखा ?
मैंने कहा- इससे ज्यादा कुछ नहीं देखा।
उसने कहा- यही बात मैं कहना चाहती हूं कि पुरूषों को महिलाओं को देखने का आपना दृष्टि कोण बदलना होगा। आपको मेरी फटी जींस के अतिरिक्त कुछ नज़र नहीं आया क्योंकि आप कुछ और देखना नहीं चाहते थे, जबकि कुछ लोग अपनी लालसा में बहुत कुछ तलाश करते हैं। उन लोगों को फटी जींस देखने की आदत डालनी होगी इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। फटे जींस जो आज का फेशन हैं। 
फिर उसने आगे कहना शुरू किया कि कुदरत ने किसी चीज़ को छुपा कर नहीं रखा है। हमने कपड़ों को डिजाइन करते समय मर्द और औरत में भेदभाव पैदा किया है। इस भेद भाव को समाप्त करना समय की आवश्यकता है।औरत की आजादी और सशक्तिकरण बहुत जरूरी है। देश के विकास में बाधा आ रही है। हम अपने देश को महिलाओं की आजादी के परिपेक्ष में जापान,फ्रांस,चाइना,इसराइल और अमेरिका की तुलना में बहुत पिछड़ा पाते हैं।
उसकी आक्रामकता को देखते हुए मेरी यह पूछने की हिम्मत ही नहीं हूई कि क्या वह उन महिलाओं की बात कर रही है, जो आजादी और पुरूष समानता के नाम पर आंदोलन करते समय पूरी तरह नंगी होकर सड़कों पर फोटो शूट कराती हैं। क्योंकि मैं विवाद नहीं चाहता था। फिर भी मैंने डरते डरते उससे पूछा- तुमको इस प्रकार रहने पर डर नहीं लगता ? 
उसने पुनः मुझसे पूछा- कैसा डर ? फिर उसने कहा- डर नाम की कोई चीज संसार में नहीं होती है, जहां विश्वास कमजोर पड़ जाता है वहां डर आ जाता है और लोग उसको धर्म कहने लगते हैं। इतना कहकर वह मुस्कुराई और बोली- आपके छुपे हुए प्रश्न का उत्तर यह है कि चोरियां तो बंद कमरों में भी हो जाती हैं। हमें चोरी से नहीं चोरों से लड़ना है। उसके तर्क और क्रान्तिकारी जज़्बात सुनकर मैं कुछ कहने की हालत में स्वयं को नहीं पा रहा था।
केवल इतना ही सोच रहा था कि वह कौन लोग हैं जो इन लड़कियों को अपने स्वार्थ के लिए दिशाहीन कर रहे हैं ? बेरोजगारी इसका मूल कारण तो नहीं है ? या नफरत का यह एक ऐसा सोचा समझा खेल है, जो राजनीतिक इशारों पर महिलाओं के हक़ के नाम पर खेला जा रहा है। बाजारवाद या महिला वोट बैंक को बढ़ावा देना जिसका मुख्य उद्देश्य है। एक विचार मेरे मन में यह भी आ रहा था कि अपने आदर्श,मान मर्यादा, उच्च धार्मिक विचार और संस्कारों की आध्यात्मिक खुशबू से पूरे संसार को सुगंधित करने वाला पिता आज अपनी ही मासूम बच्चियों का दुरुपयोग होता देख कर खामोश क्यों है ? गफलत में कूड़ेदान पर फेंकी गई वस्तु को दुबारा उठाने में संकोच केसा ?
सवाल गम्भीर हैं समाधान तलाश करना होगा। आप भी सोचिए मैं भी सोचता हूं।
*****
मेरी हास्य-व्यंग्य रचनाएं अगर आपको पसंद आ रही हैं और आप चाहते हैं कि आपके साहित्यिक मित्र भी इनका आनन्द लें, तो उनको Share अवश्य करें। Comments Box में अपनी प्रतिक्रिया भी अवश्य लिखें। 
शाहिद हसन शाहिद
70093-16992
Copyright reserved

Monday, March 15, 2021

पाठशाला

"आपने मुझे पाल-पोस कर कोई एहसान नहीं किया है, अपनी अय्याशी की क़ीमत चुकाई है।"
बेटे के मुंह से यह अनजान अल्फाज़ सुनते ही मैं हेरान रह गया क्योंकि यह भाषा ना तो मेरे परिवार की है और ना ही मेरे संस्कार ऐसे हैं। शब्द "अय्याशी" सुनकर मैं एक ऐसे शुन्य में परिवर्तित होता चला गया जिसके आगे और पीछे कोई संख्या ना हो। सिर्फ सवालों का ख़त्म ना होने वाला सिलसिला हो जो मुझे आंखें बंद करके सोचने पर मजबूर कर रहा हो कि मैं अपने अतीत के काले सायों को तलब करुं और उनसे पुछूं- ऐ काले सायों तुम गवाही दो कि अतीत में कभी ऐसा हुआ है कि मैंने गुस्से से पागल होकर अपने पूज्य पिता या परिवार के किसी सदस्य को  अपशब्द कहने का साहस किया हो ?        तो काले साए अपने हाथ खड़े करते हुए कहें- नहीं, कभी नहीं۔۔۔۔! हमने इस प्रकार पिता या परिवार वालों की तौहीन करते आपको कभी नहीं देखा। 
काले सायों की गवाही के बाद भी प्रश्न फिर भी वहीं खड़ा था कि मेरे बच्चे के मुंह में अय्याशी जैसा अपशब्द किसने डाला ? किस पाठशाला ने उसको यह शब्द सिखाया, और कौन है गुरु उसका ?
इन सवालों में उलझा ही था तभी मुझे याद आया कि मेरा बच्चा कल अपनी मां को समझा रहा था कि पेट्रोल और डिजल के दाम बढ़ने से देश का गौरव बढ़ा है यह राष्ट्रीय हित में है। तब मेरी समझ में आया कि उसका गुरु कोई और नहीं बल्कि वह स्मार्ट फोन है, जो मैंने ही उसको जन्मदिन पर उपहार में दिया था। 
स्मार्टफोन उसके हाथ में देते ही, मैं उसमें बहुत से बदलाव महसूस कर रहा हूं । मेरा शर्मिला बच्चा जो कल तक अपनी पेंट की खुली ज़िप की परवाह नहीं करता था, वह आज अपने फोन के लिए हर समय सतर्क रहता है। अगर किसी कारण फ़ोन का लाक खुला रह जाए या फोन इधर-उधर रखा जाए तो वह बेचैन ही नहीं होता बल्कि पागल हो जाता है। उसकी घबराहट और बैचेनी यह कहती है कि उसकी इस ज़रा सी चूक या लापरवाही के कारण मोबाइल में रखा हुआ उसका काला धन सार्वजनिक हो जायेगा और सरकार की नज़र पड़ते ही वह किसी बड़ी मुसिबत का शिकार हो जाएगा।    बच्चा अब बड़ी-बड़ी बातें भी करने लगा है। पहले से अधिक स्मार्ट और रहस्यमय भी हो गया है। उसकी रहस्यमय स्मार्टनेस देखकर ही मुझे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है कि मैंने बचपन की दहलीज़ पर खड़े अपने मासूम बच्चे के हाथ में समय से पहले स्मार्टफोन देकर अनजाने में उसकी ऊंगली समाज के उन लोगों को पकड़ा दी है, जो कभी उसकी पहुंच में नहीं थे, परंतु अब वे ही लोग फोन के माध्यम से उससे खेल ही नहीं रहे हैं बल्कि उन्होंने उसको सेल्फी वाले फोन से सेल्फी लेने का हुनर और रज़ाई में मुंह छुपा कर सपने देखना, खरीदना और बेचना भी बहुत कम समय में सीखा दिया है। इस हुनर ने ही उसको एक ऐसे बाज़ार का खिलाड़ी बना दिया है, जहां उसके नाम को लोग लाइक तो करते हैं पर नज़र नहीं आते। 
फोन ने उसको अपने एवं दूसरे धर्मों की वह गोपनीय बातें भी बता दी हैं जो उसके पूर्वजों ने परंपरा व समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए ना जाने कितने युगों से छुपा कर रखी थीं, जबकि वह जानते थे एक दिन जब बच्चे जवान होंगे तो यह जटिलताएं वह स्वयं ही जान जाएंगे। 
इतिहास का ज्ञानी भी वह हो गया है। परिवार को यह बताने का होंसला भी उसमें आ गया है कि हिंदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है, मुसलमान और ईसाईयों को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। यह लोग देश पर एक ऐसा बोझ हैं, जो बहुसंख्यक हिंदुस्तानियों पर उनकी इच्छा के विपरीत इस प्रकार लाध दिए गया है जिस प्रकार धोबी अपने गधे पर हर धर्म के कपड़े उसकी इच्छा के विरुद्ध लाध देता है।
सोशल मीडिया, जिसको वह पूज्य पाठशाला की तरह आदर करता है, उसको यह पाठ पढ़ाने में भी सफल हो गई है कि उसके देश को सेकुलरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता के कैंसर ने बर्बाद किया है। वह यह भी जानता है कि यह वायरस पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने स्वार्थ के लिए पैदा किया था। किसी अवसर पर मेरे पूछने पर उसने कहा था कि जवाहर लाल नेहरू कौन थे, यह वह नहीं जानता है और ना ही जानना चाहता है, परंतु वह किसके इश्क में मुब्तिला थे और उनकी नूरजहां कौन थी यह सच्चाई वह अच्छी तरह जानता है। 
महात्मा गांधी के चरित्र और उनकी लीलाओं की सच्चाई के बारे में भी उसको सब कुछ पता है। इस लिए अब उसने अपना आइडियल बदल लिया है।
आज़ादी से पूर्व और बाद में देश को धोखा देने वाले देशद्रोही और राष्ट्रप्रेमी कौन लोग हैं, यह सच्चाई भी वह भली-भांति जान चुका है। 
राष्ट्रवाद के शिकार मेरे बेटे ने परिवार और समाज से दूरी बनाना बना ली है उसे अब हर व्यक्ति राष्ट्रद्रोही नज़र आ रहा है। उसने मुझसे भी बात करना कम कर दिया है या तो वह मुझे राष्ट्रद्रोही समझने लगा है या अपने से कम ज्ञानी या फिर एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी अय्याश के कारण बच्चों की फोज खड़ी कर दी है। 
अंततः मैं यह कहने के लिए विवश हूं कि स्मार्टफोन ने मेरे बेटे से उसकी बचपन की मासूमियत छीन ली है। लोगों का कहना है कि संसार सिमटकर एक गांव कि तरह हो गया है, जबकि मेरा बेटा परिवार और समाज से कटकर एक नए संसार में खो गया है, जो उसकी पैंट की बैक पाकिट में बस्ती है। यह पाकिट ही अब उसका परिवार, समाज, देश, धर्म, पाठशाला और समस्त संसार होकर रह गई है। इसी पाकिट के संसार ने उसको सिखाया है कि तुम्हारे पिता ने तुम्हारा लालन-पालन करके तुम्हारे ऊपर कोई उपकार नहीं किया है बल्कि अपनी अय्याशी की कीमत चुकाई है।
स्मार्टफोन ने मेरा जवान बेटा चुरा लिया है। मैं बेटे को खोकर अपनी भूल की भारी क़ीमत चुका रहा हूं, शायद मेरी तरह ही देश के सारे पिता अपने बच्चों के चोरी होने की कीमत चुपचाप चुका रहे हैं।
*****
मेरी हास्य-व्यंग्य रचनाएं अगर आपको पसंद आ रही हैं और आप चाहते हैं कि आपके साहित्यिक मित्र भी इनका आनन्द लें तो उनको Share अवश्य किजिए और Blog Comments Box में अपनी प्रतिक्रिया लिखना ना भूलें।
धन्यवाद सहित 
शाहिद हसन शाहिद
70093-16992
Copyright reserved