Thursday, April 15, 2021

बैगम

आप ज़िद छोड़ क्यों नहीं देतीं, मुझे चश्मा बनवा दीजिए। मेरी मजबूरी को समझिए,मैं चश्मे के बगैर देख नहीं पा रहा हूं, पढ़ नहीं पा रहा हूं, दिनचर्या मैं कठिनाइ हो रही है। लिखना पढ़ना,यार दोस्त सब छूट गए हैं। अपनी विकलांगता के कारण किसी को फोन तक नहीं कर पा रहा हूं। मैंने बैगन से एक मजबूर की तरह फरियाद करते हुए कहा। उत्तर में उन्होंने कहा- सब्र कीजिए, थोड़े ही समय की बात है। बेटा कनाडा गया है और मुझसे वायदा करके गया है कि वह अपनी पहली कमाई की मोटी रक़म सबसे पहले मुझे भेजेगा। पैसे मिलते ही मैं सबसे पहले आपके लिए सोने के फ्रेम का चश्मा बनवा दूंगीं।
तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, आप यह क्यों नहीं समझतीं, पिछले 6 माह से मैं सोने के फ्रेम वाले चश्मे के इंतज़ार में विकलांगों जैसा जीवन बिता रहा हूं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा, इंतज़ार की भी कोई सीमा होती है। मेरा अपना भी कोई अस्तित्व है। इसके आगे मैं कुछ कह पाता बेगम ने मुझे बीच में ही रोकते हुए कहा- सब्र कीजिए सब्र। सब्र का फल मीठा होता है।
बेगम की नसीहत सुनकर मैंने चिढ़कर एक बार फिर कहा- आप हट छोड़ क्यों नहीं देतीं, मुझे सोने के फ्रेम वाले चश्मे से कहीं अधिक एक ऐसे चश्मे की आवश्यकता है, जो मेरी दिनचर्या में मेरी मदद कर सके। फिर बात को और आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- मोटी कमाई जब आएगी तब आप उससे अपने लिए गहने बनवा लीजिएगा। वह गहने जो आपने अपने बेटे को कनाडा भेजते समय उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए बेच दिए थे। मुझे सोने के फ्रेम वाले चश्मे की आवश्यकता नहीं है, मुझे तो आप साधारण सा चश्मा बनवा दीजिए। मेरा काम चल जाएगा।
मेरे तर्क सुनकर बेगम फिर बोलीं- गहनों से कहीं ज्यादा मुझे आपके चश्मे की चाहत है, वैसे भी मेरा गहना तो आप हैं। कनाडा गया  बेटा है। मैं तो केवल आपकी आंखों पर सोने के फ्रेम वाला चश्मा देखना चाहती हूं। यही मेरी तमन्ना है और यही मेरी इच्छा है। इतना कहकर बेगम ने मुझसे कहा- मेरा दिल घबरा रहा है, मुझे पसीना आ रहा है।आप एक गिलास पानी ला दिजिए। मैं उनके लिए जब पानी लेकर आया तो वह खामोश थीं। मैंने उनको पानी देना चाहा जो उन्होंने नहीं लिया। मैंने उनको आवाज़ दी। वह नहीं बोलीं, उनकी खामौशी बरक़रार रही। उनके इस प्रकार अचानक खामोश हो जाने से मैं परेशान हो गया। मैंने उनको फिर आवाज़ दी- बेगम- बेगम। वह नहीं बोलीं, फिर आवाज़ दी- बेगम- बेगम। वह नहीं बोलीं। मैंने उनसे कहा- आप बोलती क्यों नहीं हैं ?
वह फिर भी नहीं बोलीं।
अब मुझसे सब्र नहीं हुआ मैंने व्याकुल होकर उनको छू कर देखा, उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैंने नव्ज़ टटोली, जो नहीं चल रही थी। उनके दिल की धड़कन को सुना, वह भी खामोश थी। 
उनकी इस खामोशी के बाद मुझे पूरा यकीन हो गया कि वह मेरे चश्मा पाने की ज़िद को पूरा करने के लिए दूर बहुत दूर कनाडा या भगवान के पास चली गई हैं।
अचानक हुए इस हादसे के कारण मैं खुद को संभाल नहीं सका और पागलों की तरह अपनी क्षमता से कहीं अधिक ज़ोर ज़ोर से चीखते हुए रो-रो कर पुकाराने लगा- बेगम बेगम, आप ऐसा नहीं कर सकतीं। मुझे छोड़कर नहीं जा सकतीं, आप चली गयीं तो मुझे चश्मा कौन बनवाकर देगा। आप ही तो मेरी आंखें हैं। आप ही तो मेरा सहारा हैं। यह कहते हुए मैं गला फाड़कर चीख रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि मेरी आवाज़ यहां कोई नहीं सुनने वाला है जो सुन सकता था वह अच्छे भविष्य की तलाश में कनाडा बेठा है। मुझे अपनी आवाज़ बेटे तक इसी वक़्त पहुंचाना जरूरी थी ताकि मेरी आवाज़ सुनते ही वह मुझे सोने के फ्रेम का चश्मा तुरंत भेज दे और मैं अपनी बेगम का आखरी दीदार उस सोने के फ्रेम वाले चश्मे से कर सकूं जो उनकी आखरी तमन्ना थी।
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शाहिद हसन शाहिद
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