Saturday, January 30, 2021

मासूम पोती


टेलीविजन पर पूरे दिन बलात्कार की खबरें और उनपर पर होने वाली डिबेट सुनते सुनते जब मैं थक गया,तो खुद को तरोताज़ा करने के लिए आंखें बंद करके आराम से सोफे पर पैर फैला कर बैठ कर सोचने लगा कि बाज़ार वाद के बढ़ते प्रभाव और पत्रकारिता के बदलते स्वरूप ने हमको यह किस मुक़ाम पर ला खड़ा किया है कि कल तक जिस कन्या को हम देवी की तरह पूजा करते थे, जिस को हम घर की लक्ष्मी कहते थे,जो महिला परिवार की इज़्ज़त व आबरू हुआ करती थी, जिसके कदमों के नीचे बच्चे अपनी जन्नत तलाश करते थे,आज उसी देवी को लोगों ने अपनी हवस की पूर्ती की वस्तु विशेष और प्रयोग करके फेंकने वाला नेपकिन बना दिया है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि हमारा नेशनल मीडिया बलात्कार से संबंधी समाचार देश के कोने-कोने से ढूंढ ढूंढ कर क्यों लाता है? फिर उस समाचार को डिबेट के माध्यम से चटकारेदार बनाकर उसमें धार्मिक,राजनीतिक एवं विपक्ष को घेरने के पहलू तलाश करने या किसी एक जाति विशेष के साथ जोड़ कर नेशनल लेवल पर इस प्रकार परोसता है, जैसे यह कोई क्राइम ना होकर देश के विरुद्ध सोचा समझा रचा गया षड्यंत्र हो। नेशनल टीवी द्वारा इस गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के बारे अभी मैं विचार कर ही रहा था कि मेरी पोती जो 6 वर्ष की है मेरे पास आई और मुझे झंझोड़ते हुए कहने लगी- दादू आप सो रहे हैं? मैंने अपनी आंखें खोलते हुए कहा-
 बेटा मैं तो जग रहा हूं। उसने कहा- मुझे आपसे कुछ पूछना है।मैंने उसको प्यार से गोद में बैठाते हुए बड़े स्नेह भरे अंदाज में पूछा- मेरे बेटे को दादू से क्या पूछना है पूछो।उसने बड़ी मासूमियत से शिकायती अंदाज में कहा- दादू...! मुझे कोई नहीं बता रहा है कि "बलात्कार" क्या होता है।मैं समझ गया कि निरंतर चलने वाले टीवी समाचारों में यह शब्द वह बार-बार सुन रही है,जबकि उसको अभी पूरी तरह भाषा का ज्ञान नहीं है, इस कारण उसकी भाषा सीखने की जिज्ञासा जाग गई है और वह बलात्कार शब्द का अर्थ समझना चाहती है परंतुु मेरे सामने उसका यह प्रश्न एक नाग की तरह फन फैलाए खड़ा था कि मैं इस मासूम को किन शब्दों में बताऊं कि बलात्कार क्या होता है।मैंने उसकी आयु और भोलेपन को देखते हुए उसको यह बताना ही उचित समझा कि मैं उस से यह कहूं कि बेटा यह एक प्रकार का बुखार होता है जो केवल महिलाओं को दुखी करता है। यह कहकर मैंने बच्ची को तो बहला दिया; परन्तु मैं अंदर से डर गया। मुझे डर इस बात का था कि भविष्य में जब कभी इसको बुखार आ गया तो यह पूरे मोहल्ले में शोर मचा देगी कि मेरा बलात्कार हो गया है। अभी मैं अपने इस अनजाने डर से उभर भी नहीं पाया था कि उसने एक और प्रश्न मुझसे पूछ लिया। दादू...! बलात्कारी कौन होता है?पहला गलत उत्तर देकर मैं बुरी तरह फंस चुका था, इसलिए मैंने दूसरा झूठ बोला और कहा- जिस मच्छर के काटने से बुखार आता है उसको बलात्कारी कहा जाता है।अब मैं समझ चुका था कि देश के दूरदराज़ गांव में किसी बच्ची के साथ हुए बलात्कार और बर्बर हत्या पर पूरे दिन चलने वाली मीडिया ट्रायल को सुनकर उसका मासूम ज़हन बहुत से प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए बेचैन है। मेरे उत्तर से पोती संतुष्ट नहीं थी। उसने तर्क देते हुए मुझे से फिर पूछा- दादू मम्मा तो जब मच्छर मारने की क्रीम हमको लगाती है तो कहती है कि इसके लगाने से मच्छर मर जाते हैं। मैंने टीवी में अभी-अभी देखा है कि लोग चीख चीख कर कह रहे थे कि बलात्कारी को फांसी दो।दादू...! मच्छर तो क्रीम लगाने से मर जाता है, तो उसको फांसी क्यों दी जाए? पोती के श्रंखला वद सवालों में से इस सवाल का मैं कोई उत्तर नहीं दे सका। बल्कि एक झटके के साथ सोफे से खड़ा हो गया और चीख़ते हुए परिवार वालों से कहा- सब लोग कान खोल कर सुन लो,आज के बाद कोई व्यक्ति टीवी पर बलात्कार से संबंधी समाचार या डिबेट नहीं सुनेगा। भारत पूछता है तो पूछता रहे, हर सवाल का जवाब देना हमारी जिम्मेदारी नहीं है। यह कहते हुए मैंने घरवालों पर समाचार ना सुनने का फरमान जारी करते हुए उन पर ख़बरें ना सुनने का प्रतिबंध लगा दिया। यथार्थ का शायद यही सच है। इससे अधिक मैं या आप कुछ नहीं कर सकते। टीवी द्वारा खेले जा रहे टीआरपी के खेल के सामने हम और आप सब बोने जो साबित हो रहे हैं।  *****
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धन्यवाद सहित
शाहिद हसन शाहिद
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Wednesday, January 20, 2021

कहानी मछली की

सोशल मीडिया से होती हुई एक सूचना जैसे ही समाचार पत्रों की सुर्खियों तक पहुंची कि एक मछली के पेट पर पीले रंग से लिखा शब्द "अल्लाह" साफ तौर पर पढ़ा जा सकता है, तो लोगों की सोई हुई आस्था एकदम जाग उठी और लोग दूर-दूर से इस अनोखी मछली को देखने के लिए उस जगह पहुंचने लगे जहां यह अद्भुत मछली अपनी भरपूर शानो शौकत के साथ एक छद्म तालाब जिसको इकोरियम कहा जाता है उस में तैर रही थी।

मैं जब वहां पहुंचा तो इकोरियम के आसपास लोगों की काफी भीड़ जमा थी, जो मछली को बड़े आदर और सम्मान के साथ देख रही थी। उनमें से कुछ श्रद्धालु आंखें बंद करके दिल ही दिल में उस मछली का आशीर्वाद प्राप्त करने और अपनी मनोकामना पूरी करने की अरदास कर रहे थे। कुछ शांत स्वभाव के साथ उसके दर्शन करके स्वयं को भाग्यशाली समझ रहे थे। वहां मोजूद कुछ धनवान ऐसे भी थे जो इस अद्भुत चमत्कार की बोली लगाकर उसको खरीदना चाहते थे, वे जानते थे कि मछली एक मध्यवर्गीय परिवार की संपत्ति है जिसको वह कुछ रुपए खर्च करके आसानी से खरीद कर अपने ड्राइंग रूम की शोभा और समाज में अपना गौरव बढ़ा सकते हैं। जो लोग इस मछली को खरीदने की क्षमता नहीं रखते थे वह दूर खड़े होकर कह रहे थे कि हमारे तो दिल में "अल्लाह" बसता है, हम तो क़ुदरत के इस करिश्मे को देखने आए हैं। कुछ ऐसे भी थे जो इकोरियम के शीशे पर इत्र (खुशबू) लगाने की कोशिश कर रहे थे, तो कुछ लोग दूर खड़े होकर धूप अगरबत्ती जलाकर रूहानी वातावरण बना कर अपनी श्रद्घा पेश कर रहे थे। धार्मिक विद्वान भी वहां मौजूद थे जो लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि हमें क़ुदरत के इशारे पर गौर करना चाहिए जो हमको याद दिला रहा है कि दुनिया की हर चीज़ का मालिको मुख्तार अल्लाह है। जबकि कुछ ऐसे भी थे जिनका कहना था यहां जो कुछ भी हो रहा है यह सब पाखंड है जिसको दूसरे शब्दों में बिद'त कहा जाता है।अल्लाह हम सबको इस गुनाहे अज़ीम से महफूज रखे। (इस्लाम जिन चीजों की इजाज़त नहीं देता है वे बिद'त कहलाती हैं।)

इन सब से अलग मैं यह सोच रहा था कि मछली के पेट पर नज़र आने वाला लफ्ज़ "अल्लाह" जीव रसायन की एक प्रक्रिया है, जो कभी भी डिलीट हो सकती है; परंतु जो डिलीट नहीं हो सकता है वह हमेशा रहने वाला नाम "अल्लाह" है जि‌को हम अपने ज़हन की किसी डिस्क में सेव करके भूल चुके हैं। विचारों के इस भंवर में डुबकी लगाते हुए मैंने देखा कि कुछ पत्रकार अपने कैमरों से उस नींबू मिर्ची के टोटके को कवर कर रहे हैं, जो कुछ समय पहले तक वहां नहीं था; परंतु अब वह उस ड्राइंग रूम के द्वार पर एक पहरेदार की तरह लटक रहा था जहां वह अद्भुत मछली लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनी हुई थी। तभी मेरा ध्यान उस महिला पत्रकार पर गया जो लाइव रिपोर्टिंग करते हुए अपने दर्शकों को बता रही थी कि इस अनोखी जलपरी ने लोगों में आस्था कि वह ज्योत जगा दी है जो इससे पहले अतीत में राम मंदिर अभियान के समय देखी गई थी। लोग इस जलपरी को भगवान का अवतार मान रहे हैं। उन्होंने उसकी विधिवत तौर पर पूजा-अर्चना भी शुरू कर दी है। जलपरी को कोई हानि न पहुंचे इसके भी पुख्ता प्रबंध कर लिए गए हैं, जहां यह जलपरी विराजमान है वहां नींबू मिर्ची लटका दिया गया है और लोगों से कहा जा रहा है कि वह जलपरी के आसन से दूरी बनाकर रखें।उसको छूने या किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की कोशिश ना करें। जलपरी देश की धरोहर है। इसने भारत में प्रकट होकर पड़ोसी देश को जता दिया है कि अब उनका एकमात्र सहारा "अल्लाह" भी उनके साथ नहीं है। अंगारों की शैय्या पर लौटने वाला पड़ोसी देश इस देव्या चमत्कार से बुरी तरह बौखला गया है। वह इस सच्चाई को पचा नहीं पा रहा है कि "अल्लाह" ने उसका साथ छोड़ कर उस देश को क्यों चुना है जहां कण-कण में राम बसते हैं। अपनी जनता का ध्यान अपनी नाकामियों पर से हटाने के लिए वह कोई भी नापाक हरकत कभी भी कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो हम उस को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। हम उसकी ईंट से ईंट बजा देंगे। उसको याद रखना होगा कि 130 करोड़ भारतीयों के साथ अब उस जलपरी की भी अपार शक्ति हमको प्राप्त है जिस पर खुद भगवान ने अपने हस्ताक्षर करे हैं।

लाइव टेलीकास्ट होने वाली इस रिपोर्ट ने मुझे व्याकुल कर दिया और उत्तेजित भी। मैं समझ नहीं सका कि यह किस प्रकार कि रिपोर्टिंग हो रही है तभी मेरे अंदर का पत्रकार जाग उठा और मैंने उस रिपोर्टर को इशारे से एक ओर बुलाकर कहा- यह क्या कर रही हो? उसने कहा- अपनी जॉब कर रही हूं कोई आपत्ति है।
मैंने कहा- हां...! आपत्ति है, एक जिम्मेदार वरिष्ठ नागरिक और पत्रकार होने के नाते मैं पूछना चाहूंगा कि यह तुम किस प्रकार की रिपोर्टिंग कर रही हो? एक साधारण सी बात को तुमने असाधारण बनाते हुए पहले तो उसका ध्रवीकरण किया और अब दो देशों को जंंग के मुहाने पर खड़ा करने का दुस्साहस कर रही हो, तुम जानती हो जंग.... अभी मैं इतना ही कह पाया था कि उसने कहा- मुझे मेरा काम करने दीजिए। 
यह कहते हुए वह मेरे पास से चली गई और मछली को फोकस करते हुए लोगों को एकबार फिर बताने लगी, आप अद्भुत चमत्कार को देख सकते हैं कि कुछ समय पहले जलपरी पर जो शब्द पीले रंग से लिखा दिख रहा था अब उसका रंग हल्के हल्के केसरी होता जा रहा है। 

पत्रकारिता के इस अंदाज को मैं क्या नाम दूं यह मेरी समझ से परे था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह किस प्रकार की पत्रकारिता है? सवालों के इस मकड़ जाल ने मुझे एक भावहीन स्तंभ बना दिया था, जिसमें से केवल एक ही आवाज़ मुझे गूंजती सुनाई दे रही थी कि यह युवती जब अपने घर परिवार के लिए भोजन बनाती होगी तो वह कितना स्वादिष्ट होता होगा। मज़ेदार, चटखारेदार बिल्कुल इस समाचार की तरह।
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Sunday, January 10, 2021

फेसला देश का

मैं सुबह 5:00 बजे जब घर से सैर करने के लिए निकला तो धुंध इतनी अधिक थी कि हाथ को हाथ नज़र नहीं आ रहा था कुछ अंधेरा भी था। आजकल सूर्य उदय सुबह 7:00 बजे के बाद हो रहा था। अंधेरे और धुंध से लड़ता हुआ जब मैं गार्डन की ओर बढ़ा जा रहा था तब मैंने देखा कि कुछ लोग तेज़-तेज़ क़दमों के साथ वापिस घर की ओर दौड़े जा रहे हैं, इन भागने वालों में खास बात यह थी कि सब के हाथों में शराब की बोतलें थीं, इनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके दोनों हाथों और कोट की जेब में भी बोतलें नज़र आ रही थीं। मुझे बड़ी हैरानी हुई कि इतनी सुबह यह लोग इतनी बड़ी संख्या में शराब कहां से ला रहे हैं। तभी मैंने देखा कि उनमें से एक व्यक्ति ने अपने एक साथी को रोक कर उसके कान में कुछ कहा तो वह व्यक्ति भी तेज़ी के साथ सड़क की दूसरी ओर दौड़ने लगा। मैंने दौड़ते हुए उस व्यक्ति को रोकते हुए पूछा- भाई क्या हुआ कहां भागे जा रहे हो? उसने कहा कि हाईवे पर एक्सीडेंट हो गया है वहीं जा रहा हूं। एक्सीडेंट का सुनकर मैं भी स्वयं को रोक नहीं सका और दौड़ाता हुआ हादसे की जगह पहुंच गया। वहां पहुंच कर मैंने देखा कि एक व्यक्ति जो कार चला रहा था वह  
जख्मी अवस्था में ड्राइवर की सीट पर बेहोश पड़ा है। जबकि उसकी कार के चारों पहिये गायब हैं और वह ईंटों से बने प्लेटफार्म पर खड़ी है। मैं कार के जब और ज्यादा करीब पहुंचा तो मैंने देखा कि उसकी ऐसिसरीज़ भी गायब हैं और कार के चारों तरफ शराब की पेटियों के खाली डिब्बे बिखरे पड़े हैं। मैंने जब जख्मी का मुआयना किया तो उसको जीवित पाया। करीब ही एक व्यक्ति को उल्टी करते देखा शायद उसने अपने जीवन में पहली बार किसी व्यक्ति को इतना जख्मी देखा होगा। कुछ लोग इस हादसे पर अपनी प्रतिक्रिया यह कहते हुए भी सुने गए कि यार सुबह- सुबह मूड खराब हो गया। घायल की स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसको अकेले कार से नहीं निकाला जा सकता था। मैंने आगे बढ़ कर लोगों से कहा- आप लोग क्या देख रहे हैं? कुछ लोग मिलकर घायल को निकालते क्यों नहीं यह अभी जिंदा है। मेरी बात सुनकर कुछ लोग यह कहते हुए वहां से खिसक गए कि हम पुलिस के लफड़े में नहीं पड़ना चाहते, सब कुछ तो लोग लूट कर ले गए हैं हम कहां तक जवाब देते फिरेंगे। मैं अकेला उसकी जिंदगी बचाने में असमर्थ था इसलिए मैंने बगैर देर किए लगभग सुबह 6:00 बजे पुलिस को फोन किया और हादसे का पूरा विवरण उनको बताया और यह भी बताया की एक्सीडेंट सड़क किनारे खड़े एक ट्रक से टकरा जाने से हुआ है जो अनुमानुसार लगभग सुबह 4:00 बजे हुआ होगा। मैंने पुलिस को यह भी बताया कि एक व्यक्ति बुरी तरह घायल है जो अभी जिंदा है जिसको फोरी मेडिकल ऐड द्वारा बचाया जा सकता है। मेरी सूचना प्राप्त होने के दो घंटे बाद 13 किलोमीटर का सफर तय करके मुक़ामी पुलिस लगभग 9:00 बजे घटनास्थल पर पहुंची। जरूरी कार्रवाई करने के बाद जब पुलिस 16 किलोमीटर दूर उस घायल को अस्पताल लेकर पहुंची तो उस समय तक घायल दम तोड़ चुका था।
मैं और कुछ लोग पुलिस के साथ सहानुभूति के तौर पर अस्पताल तक गए। पुलिस ने हमारे सामने जब मृतक की तलाशी ली तो उसका पर्स, मोबाइल, हाथ की घड़ी या कोई भी पहचान पत्र ऐसा नहीं मिला जिससे उसकी पहचान हो जाती, तभी साथ गए किसी व्यक्ति ने कहा कि घायल के कपड़े बता रहे हैं कि वह शराब का तस्कर होगा उसकी बात का बाकी लोगों ने भी समर्थन किया फिर उसने अपनी बात पर मोहर लगाते हुए कहा कि ऐसे देशद्रोही का यही अंजाम होना चाहिए।
कपड़ों से हुई इस पहचान और फेसले को सुनकर मैं अपना सर पकड़कर बैठ गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे देश को यह क्या हो गया है कि लोग कपड़ों से लोगों को पहचान कर फेसले भी लेने लगे हैं। मेरे दिल में अचानक यह ख्याल आया कि जंगल राज में ऐसा ही होता है। कोई एक बहुबली जंगल का शेर बनकर शिकार करता है फिर उस मरे हुए शिकार को जंगल के दूसरे कमज़ोर जानवर दावत समझकर चट कर जाते हैं। यहां भी ऐसा ही हुआ है। धुंध ने एक इंसान को मार दिया और लोगों ने मरते हुए इंसान की परवाह नहीं की बल्कि उसकी कार का सारा सामान और उसके मालिक को भी लूट लिया। अब मरने वाले के कपड़े देखकर फेसला सुना रहे हैं कि मरने वाला अपने कपड़ों से तस्कर लगता है इसलिए ऐसे लोगों का यही अंजाम होना चाहिए। इन लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर कोई सवाल नहीं खड़े किए और ना ही उन लूटने वालों लोगों की भूमिका पर कुछ कहा जो एक जख्मी को लूट कर जश्न मना रहे थेे बल्कि मरनेे वाले को मुजरिम साबित करके उसके खिलाफ फेसला सुनाने का हौसला दिखा रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इनको कौन भ्रमित कर रहा है। वह कौन फक़ीर है जो लोगों को कपड़ों से पहचानने का यह चमत्कारी मंत्र इनको सिखा रहा है।
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