Wednesday, December 30, 2020

नाम नहीं बताऊंगा

मुझे आज जिस व्यक्ति का इंटरव्यू करना था वह अपनी वेशभूषा से किसान लग रहा था और मेरे स्टूडियो में उसी लापरवाही से बैठा था जैसा कि कुछ समय पहले वह धरना स्थल पर अपनी ट्रेक्टर ट्राली में बैठे था। स्टूडियो मैं लगे कैमरों से वह डरा हुआ नहीं था बल्कि मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह कैमरों को डराते हुए कह रहा हो कि अब मैं तुमको बताऊंगा कि मैं कौन हूं।
मेरा अनुभव कहता है कि आजकल मध्यवर्ग में क्रोध का स्तर कुछ अधिक बढ़ा हुआ है। उसको सरकार से इतनी शिकायतें हैं कि ज़रा सी बात पर यह वर्ग उग्र हो जाता है।  यही मध्यवर्ग आजकल किसानों की शक्ल में संघर्ष करते हुए सड़कों पर है। जितना क्रोध इस समय इस वर्ग में है उतना गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जीने वाले गरीबों या अमीरों में नजर नहीं आता।
मैंने उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक कई बार देखा मुझे ऐसा लगा कि यह एक व्यक्ति ना होकर स्वयं मुकम्मल आंदोलन है, जो मेरे प्रश्न पूछते ही फट जाएगा और पल भर में सरकार विरोधी शिकायतों की फेहरिस्त खोल कर रख देगा। मैंने इंटरव्यू आरंभ करते हुए उससे पूछा- तुम्हारा नाम क्या है।
उसने मेरे शक को सही साबित करते हुए एक प्रकार से फटते हुए मुझसे ही प्रश्न कर दिया- क्या मेरी बेइज्जती करने के लिए बुलाया है?
मैंने अपने लेहजे में नरमी बरतते हुए कहा- नाम पूछना बेज्जती नहीं होती है। इंटरव्यू का नियम होता है कि इंटरव्यू देने वाले का नाम पूछा जाए। तुम अपना नाम बताओ ताकि हमारे दर्शकों को मालूम हो सके कि वह किसकी बात सुन रहे हैं।
उसने कहा- मैं अपना नाम सर्वजनिक नहीं करना चाहता इस कारण नाम नहीं बताऊंगा।
संवाद को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- ऐसा क्या है तुम्हारे नाम में जो तुम सर्वजनिक नहीं करना चाहते। तुम इस समय नेशनल चैनल पर हो, करोड़ों लोग तुम्हारा नाम जानना चाहते हैं। पर मैं करोड़ों लोगों को अपना नाम नहीं बताना चाहता, उसने साफ शब्दों में कहा।
मैंने पूछा- इसका कारण?
उसने कहा-मेरी पहचान किसान है जो नाम बताते ही समाप्त हो जाएगी।
नाम से किसानियत का क्या संबंध है, मैं समझा नहीं। उसने कहा-बहुत गहरा संबंध है,आप अपना इंटरव्यू शुरू कीजिए।
यह समस्या तो बड़ी गंभीर है मैंने एक बार फिर कौशिश की। उसने कहा-ऐसा ही समझ लीजिए। मैंने संवाद जारी रखते हुए अपने चर्चित पत्रिकाना अंदाज में कहा-मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हारा नाम मुगल कालीन की याद दिलानेे वाला है ?
उसने प्रश्न का उत्तर ना देते हुए केवल इतना कहा कि जब मैं अपना नाम बताऊंगा तो परेशानी मेरे लिए कम तुम्हारे लिए ज्यादा खड़ी हो जाएगी।
मैंने चौंकते हुए उससे पूछा ऐसा क्यों?
उसने कहा-मान लो अगर मैंने अपना नाम तुम्हारी अटकलों के अनुसार मुगलकालीन युग से संबंधित बता दिया तो तुम असल मुद्दों से भटक कर मेरा नाम बदलने, मेरी घर वापसी या मेरे नाम के पीछे पाकिस्तान या चायना को तलाश करने लग जाओगे, जैसा कि भविष्य के अनुभव कहते हैं और वैसे भी तुम्हें मेरे नाम से क्या लेना देना है तुमने तो स्वयं मेरा नाम अन्नदाता रखा था फिर अचानक ही तुमने मुझे इतने नाम दे दिए कि मैं स्वयं कंफ्यूज हूं कि मैं स्वयं को टुकड़े टुकड़े गैंग कहूं, अर्बन नक्सल कहूं, दलाल, राजद्रोही, आतंकवादी, खालिस्तानी कहूं। इन सबके अतिरिक्त आलसी, निठल्ले, बहके हुए लोग कहते हुए पिछले एक माह से तुम्हारी जुबान नहीं थकी है। लोगों ने अपने भाषणों में या अपने ट्वीट द्वारा मुझे इन नामों से केवल एक बार ही बदनाम किया होगा जबकि तुम्हारे चैनल 24 घंटे मैं कई हजार बार इन नामों के सहारे कभी मेरे संघर्ष पर घड़ियाली आंसू बहाकर तो कभी मेरे मान सम्मान पर सिधा हमला करके मुझे रूसवा कर रहे हैं। अब तुम मुझे किसी भी नाम से पुकारो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर उसने एक गहरी सांस ली और थोड़ा रुक कर बोला मुझसे तुम किसी नए नाम की उम्मीद क्यों रखते हो। मैं नहीं चाहता कि इस संघर्ष के गर्भ से जन्म लेने वाली आवाज़ के चेहरे पर एक नए नाम का टेग अभी से लगा दिया जाए, ताकि तुम उसको पंजाब, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र या हिंदू, मुसलमान,सिख, ईसाई और जातियों में बांट कर उसको कमजोर कर सको। यह कहते हुए वह भावुक हो गया और उसकी आंख से एक आंसू टपक कर जब जमीन की ओर बढ़ने लगा तो मैं चाहते हुए भी उसको अपने हाथों की हथेली पर सजा नहीं सका क्योंकि पत्रकारिता मेरी मजबूरी थी।
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धन्यवाद सहित 

शाहिद हसन शाहिद

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Sunday, December 20, 2020

मैं भी किसान हूं

अचानक मेरे अंदर का किसान जाग उठा और बाग़ियाना अंदाज में कहने लगा कि मैं भी किसान हूं और आंदोलन में शरीक होने के लिए सिंधु बॉर्डर पर जाना चाहता हूं।
मैंने उसको हैरत से देखा और पूछा तुम कब से किसान हो गए?
उसने भी मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा और कहा- मैं तुम्हारे अंदर एक साहित्यकार की भूमिका में काफी समय से छवियां गढ़ने का रचनात्मक कार्य कर रहा हूं। भिन्न भिन्न प्रकार की पृष्ठ भूमियों पर चरित्र पैदा करके तुम्हारी कहानियों को जीवन्त करता रहा हूं। इसके पश्चात भी क्या मुझे यह बताने की आवश्यकता है कि मैं भी किसान हूं, तुमको ज्ञात होना चाहिए कि जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से कुछ भी पैदा कर रहा है वह किसान है। मैं छवियां पैदा करने वाला किसान हूं और अपने किसान भाइयों के संघर्ष को बल देने के लिए संघर्ष स्थल पर जाना चाहता हूं। 
उसकी दलील सुनने के बाद मैंने कहा- मैं समझ गया गमले में पुदीने की खेती करने वाले किसान की तरह तुम भी एक किसान हो,पर इसके लिए संघर्ष का ही रास्ता क्यों?  
मुझे इस समय किसान कई वर्गों में बटे नज़र आ रहे हैं, एक वर्ग संघर्ष कर रहा है, जबकि दूसरा सम्मेलन। तुम सम्मेलन वाले किसान क्यों नहीं हो जाते जहां खतरा कम है कुछ ना करने के पश्चात भी रंग चोखा है।
संघर्ष का दूसरा नाम ही किसान है, सम्मेलन तो तुम्हारे जैसे साहित्यकार, राजनीतिक या मुद्दों से फरार होने वाले लोग करते हैं। उसने मेरे बग़ैर  मांगे सुझाव का उत्तर देते हुए कहा।
अब मैं समझा कि कुछ लोग किसानों को अर्बन नक्सल क्यों कह रहे हैं। मैंने एक बार फिर उसको अपने कटाक्ष के निशाने पर लेते हुए कहा। उसने मेरी बात सुनी अनसुनी करते कहा- मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन मैं यह जानता हूं कि तुम्हारी वे सब कहानियां जो तुमने समाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए लिखी हैं और जिस पर तुमको बड़ा गर्व है वे सब बकवास हैं। 
यह अचानक से मेरी कहानियां बकवास किस प्रकार हो गयीं उनको तो लोगों ने पसंद किया है उनकी प्रशंसा की है। मैंने उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो उसने कहा, बर्फ जैसी ठंडी रात में खुले आसमान के नीचे संघर्ष करने वाले किसानों के साथ ना तो तुमने अभी तक ठंडी चाय पी है और ना ही उनके साथ लकड़ी जलाकर अलाव पर हाथ तापें हैं। मैंने उसकी बात को बीच में ही रोकते हुए कहा कि देसी गीजर से हुए गरम पानी से नहाते हुए भी तुम ने मुझे नहीं देखा होगा। उसने कहा- ठीक है....! इन कड़े अनुभवों से जब तक तुम नहीं गुज़रोगे किसानों की ही नहीं किसी भी समाजिक संघर्ष की कहानी नहीं लिख सकते यह मेरा विश्वास है। मैंने संवाद को आगे बढ़ाते हुए कहा- लंगर में काजू किशमिश,बादाम और पिज़्ज़ा खाने के बाद जिम और मसाज का मज़ा लेने वाले किसानों के संघर्ष की कहानी मैं नहीं लिख सकता इतना सुनकर ही मेरा पेट खराब हो जाता है।
काजू बादाम सुनकर पेट नहीं खराब होता है किसानों के कंधों पर रखी वह अदृश्य बंदूक देखकर तुम्हारा पेट खराब हो जाता है जिसका भय दिखाकर सरकार विपक्ष को निशाना बना रही है। उसने तुरंत उत्तर देते हुए कहा।
यह बात तुमने ठीक कही, बंदूक जैसी कोई चीज इस संघर्ष में डराने का काम तो कर रही है यह मैं भी महसूस कर रहा हूं। 
मेरी बात सुनकर वह एक क्षण के लिए खामोश हुआ और फिर बोला कुछ लोगों कह रहे हैं कि किसानों को संयोजक ढंग से भ्रमित किया जा रहा है तुमने सुना और भय के कारण आंखें बंद कर लीं और खामोश हो गए परंतु जब किसानों ने कहा कि हमको भ्रष्टाचारी,आतंकवादी,अर्बन नक्सली,टुकड़े टुकड़े गैंग,देशद्रोही, खालिस्तानी और बारबाला एंटोनियो के गुलाम कहकर बहुत सी बंदूकों से गोलियां दागी जा रही हैं तो तुम किसानों पर लगाए गए पचास लाख के जुर्माने के ज़िरो गिन्ने में व्यस्त रहे। यह कहां का इंसाफ है अंतरात्मा भी कोई चीज होती है। इतना कहकर उसने मुझे सोचने के लिए छोड़ दिया। 
अब मैं सच कहूं तो सच्चाई यह है कि मेरे अंदर मौजूद किसान ने मुझे अंतरात्मा की उस कसौटी पर खड़ा कर दिया है जहां मेरे लिए यह फेसला करना मुश्किल है कि आंखों पर काली पट्टी बांधकर इंसाफ करने वाली देवी की जगह अगर मैं स्वयं होता तो मुझे किसान की मर्यादा पर चली गोलियां नज़र आतीं या छुपा हुआ वह एजंडा, जो किसान को किशमिश बादाम की जगह भविष्य में सूखे चने खाने पर मजबूर कर देगा।
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Thursday, December 10, 2020

ज़िद्दी बुड्ढा

मेरी पत्नी मेरी परवाह नहीं करती, मेरी बेटी मेरी बात नहीं सुनती, बेटा प्राय: मुझसे नाराज़ रहता है। बहू द्वारा मेरा निरादर करना आम 
बात है, करीबी रिश्तेदार मुझसे दूर भागते जा रहे हैं संक्षेप यह कि किसी के पास मेरे लिए ना तो समय है ना आदर-सम्मान। मोदी सरकार की तरह हो गया हूं मैं, कोई मुझसे खुश ही नज़र नहीं आता। जिसको देखो वह धरना प्रदर्शन कर रहा है। दिन प्रतिदिन दयनीय होती मेरी हालत पर लोग हंसते और मज़ाक उड़ाते तो नज़र आते हैं पर समाधान के लिए बढ़ते हाथ नज़र नहीं आते, बहुत तनाव भरी परिस्थितियों से गुजर रहा हूं मैं आजकल।
मेरे एक बुजुर्ग मित्र ने जब मुझसे अपना यह दर्द बयान किया तो मैं भावुक हो गया जबकि मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि इस आधुनिक मशीनी युग में इस बुजुर्ग की यह अकेली कहानी नहीं है यह कहानी तो अब घर घर की कहानी बन चुकी है, पता नहीं इस युग के बच्चों को यह क्या हो गया है कि वे अपने बुजुर्गों का आदर-सत्कार करना ही भूल गए हैं। 
टूटते रिश्तों और दम तोड़ती मर्यादा को पुनः स्थापित करने में अपनी भूमिका तलाश करते हुए मैंने उस बुजुर्ग से एक बुद्धिजीवी की तरह समझाया कि आप शब्दों की शक्ति को भूल गए हैं इसलिए दुखी हैं आप भूल गए हैं कि शब्द तोप और तलवार से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं यह जानते हुए भी आपने तोप और तलवार तो उठा ली है और उन शब्दों को भूल गए हैं जो जख्मों पर मरहम से ज्यादा तेज काम करते हैं। मेरी बात सुनकर बुजुर्ग ने मुझे शक भरी नजरों से घूरते हुए कहा-तुम कहना क्या चाहते हो ?
मैंने विश्वास भरे स्वर में कहा-दुनिया की समस्त समस्याओं का हल चंद शब्दों के जादू में छुपा है। शब्दों से जादू करना सीख लीजिए और फिर देखिए चमत्कार कि किस प्रकार आप से नफ़रत करने वाले भी आपके प्रिय बन जाते हैं।
बुजुर्ग ने शक भरी नज़रों से मेरी ओर देखा, जैसे मैं कोई पेशावर जादूगर हूं, जो अपने शब्दों के जादू से जल्द ही अपनी जेब से खरगोश निकालकर उसे दिखा कर अचंभित कर दुंगा।
बुजुर्ग को आश्चर्य से देखते हुए मैंने पूछा- इस प्रकार क्यों देख रहे हैं, बात को समझिए लोगों के दरमियान समन्वय बनाने के लिए संवाद की आवश्यकता होती है और संवाद शब्दों से संभव होता है। आंकड़ों या इतिहास के पन्नों से नहीं। आपकी हर समस्या का हल शब्दों के इस जादू में छुपा है जो मैं आपको बताने वाला हूं।
बुजुर्ग ने जिज्ञासा से पूछा-वह जादुई मंत्र क्या है, जो मुझे नहीं आता और आप मुझे बताने वाले हैं।
मैंने कहा वह बहुत सरल है। आपको केवल कुछ शब्द अपने परिजनों से इस प्रकार कहना हैं कि मैंने तुम्हारी हर वह गलती जो तुमने मेरे आत्मसम्मान को पहुंचाई है उसके लिए मैं तुमको क्षमा कर रहा हूं अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है, इन जादुई शब्दों के कहने के बाद आप कमाल देखिएगा कि किस प्रकार आपकी आत्मा पर आए सब घाव खुद-ब-खुद भर जाएंगे और आपके अपने आपको अपनी पलकों पर बिठाने के लिए विवश हो जाएंगे। आपको केवल अपने जादुई शब्दों पर पूरा उतरना पड़ेगा जो निस्वार्थ होंगे और याद रखना होगा कि किसी को क्षमा कर देना जीवन का वह मंत्र है जो जीवन को आशावादी व ऊर्जावान बना देता है। याद रखिए नाराज़गी का कारण दूसरे नहीं आप स्वयं होते हैं इसलिए पहल भी आपको स्वयं से ही करते हुऐ अपनी बहू, बेटी और पत्नी को उनकी गलतियों के लिए क्षमा करना होगा। इस प्रकार आप स्वयं को तनाव मुक्त कर पाएंगे। 
मेरे सकारात्मक सुझाव को बीच में रोकते हुए बुजुर्ग ने बड़ी हिकारत से मुझे देखा और अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेहराते हुए कहा- बातें बहुत अच्छी कर लेते हो परंतु वे स्वभाविक नहीं होती हैं, मैंने आश्चर्य से पूछा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
बुज़ुर्ग ने बड़ी सहजता के साथ कहा-मैं अपने परिजनों को अच्छी तरह जानता हूं आपका परामर्श मानकर अगर मैंने अपनी बहू बेटी और पत्नी से आपका बताया हुआ मंत्र कह भी दिया कि कोई बात नहीं मैंने तुम्हारी हर गलती के लिए तुमको क्षमा कर दिया है। अब मुझे तुम लोगों से कोई शिकायत नहीं है। सुख शांति बनाए रखो और आराम से रहो। जिसके उत्तर में उन्होंने पलटकर मुझसे यह कह दिया कि तुमसे क्षमा मांग कौन रहा है, ऐ- सटठियाए हुए बूढ़े और रही बात शिकायत की, तो वह हम सबको तुम से है, तुमको हमसे कोई शिकायत नहीं है, हम तो सामान्य तौर पर ही रह रहे हैं; परंतु तुमने अपने नए-नए नियमों व कानूनों से दुखी कर रखा है इसलिए हम तुमको माफ करने के बिल्कुल तैयार नहीं हैं। हमें तो सिर्फ तुमसे छुटकारा चाहिए।
इस परिस्थिति में आप अपने जादुई शब्दों को क्या नाम देंगे।
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शाहिद हसन शाहिद
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