Wednesday, January 20, 2021

कहानी मछली की

सोशल मीडिया से होती हुई एक सूचना जैसे ही समाचार पत्रों की सुर्खियों तक पहुंची कि एक मछली के पेट पर पीले रंग से लिखा शब्द "अल्लाह" साफ तौर पर पढ़ा जा सकता है, तो लोगों की सोई हुई आस्था एकदम जाग उठी और लोग दूर-दूर से इस अनोखी मछली को देखने के लिए उस जगह पहुंचने लगे जहां यह अद्भुत मछली अपनी भरपूर शानो शौकत के साथ एक छद्म तालाब जिसको इकोरियम कहा जाता है उस में तैर रही थी।

मैं जब वहां पहुंचा तो इकोरियम के आसपास लोगों की काफी भीड़ जमा थी, जो मछली को बड़े आदर और सम्मान के साथ देख रही थी। उनमें से कुछ श्रद्धालु आंखें बंद करके दिल ही दिल में उस मछली का आशीर्वाद प्राप्त करने और अपनी मनोकामना पूरी करने की अरदास कर रहे थे। कुछ शांत स्वभाव के साथ उसके दर्शन करके स्वयं को भाग्यशाली समझ रहे थे। वहां मोजूद कुछ धनवान ऐसे भी थे जो इस अद्भुत चमत्कार की बोली लगाकर उसको खरीदना चाहते थे, वे जानते थे कि मछली एक मध्यवर्गीय परिवार की संपत्ति है जिसको वह कुछ रुपए खर्च करके आसानी से खरीद कर अपने ड्राइंग रूम की शोभा और समाज में अपना गौरव बढ़ा सकते हैं। जो लोग इस मछली को खरीदने की क्षमता नहीं रखते थे वह दूर खड़े होकर कह रहे थे कि हमारे तो दिल में "अल्लाह" बसता है, हम तो क़ुदरत के इस करिश्मे को देखने आए हैं। कुछ ऐसे भी थे जो इकोरियम के शीशे पर इत्र (खुशबू) लगाने की कोशिश कर रहे थे, तो कुछ लोग दूर खड़े होकर धूप अगरबत्ती जलाकर रूहानी वातावरण बना कर अपनी श्रद्घा पेश कर रहे थे। धार्मिक विद्वान भी वहां मौजूद थे जो लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि हमें क़ुदरत के इशारे पर गौर करना चाहिए जो हमको याद दिला रहा है कि दुनिया की हर चीज़ का मालिको मुख्तार अल्लाह है। जबकि कुछ ऐसे भी थे जिनका कहना था यहां जो कुछ भी हो रहा है यह सब पाखंड है जिसको दूसरे शब्दों में बिद'त कहा जाता है।अल्लाह हम सबको इस गुनाहे अज़ीम से महफूज रखे। (इस्लाम जिन चीजों की इजाज़त नहीं देता है वे बिद'त कहलाती हैं।)

इन सब से अलग मैं यह सोच रहा था कि मछली के पेट पर नज़र आने वाला लफ्ज़ "अल्लाह" जीव रसायन की एक प्रक्रिया है, जो कभी भी डिलीट हो सकती है; परंतु जो डिलीट नहीं हो सकता है वह हमेशा रहने वाला नाम "अल्लाह" है जि‌को हम अपने ज़हन की किसी डिस्क में सेव करके भूल चुके हैं। विचारों के इस भंवर में डुबकी लगाते हुए मैंने देखा कि कुछ पत्रकार अपने कैमरों से उस नींबू मिर्ची के टोटके को कवर कर रहे हैं, जो कुछ समय पहले तक वहां नहीं था; परंतु अब वह उस ड्राइंग रूम के द्वार पर एक पहरेदार की तरह लटक रहा था जहां वह अद्भुत मछली लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनी हुई थी। तभी मेरा ध्यान उस महिला पत्रकार पर गया जो लाइव रिपोर्टिंग करते हुए अपने दर्शकों को बता रही थी कि इस अनोखी जलपरी ने लोगों में आस्था कि वह ज्योत जगा दी है जो इससे पहले अतीत में राम मंदिर अभियान के समय देखी गई थी। लोग इस जलपरी को भगवान का अवतार मान रहे हैं। उन्होंने उसकी विधिवत तौर पर पूजा-अर्चना भी शुरू कर दी है। जलपरी को कोई हानि न पहुंचे इसके भी पुख्ता प्रबंध कर लिए गए हैं, जहां यह जलपरी विराजमान है वहां नींबू मिर्ची लटका दिया गया है और लोगों से कहा जा रहा है कि वह जलपरी के आसन से दूरी बनाकर रखें।उसको छूने या किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की कोशिश ना करें। जलपरी देश की धरोहर है। इसने भारत में प्रकट होकर पड़ोसी देश को जता दिया है कि अब उनका एकमात्र सहारा "अल्लाह" भी उनके साथ नहीं है। अंगारों की शैय्या पर लौटने वाला पड़ोसी देश इस देव्या चमत्कार से बुरी तरह बौखला गया है। वह इस सच्चाई को पचा नहीं पा रहा है कि "अल्लाह" ने उसका साथ छोड़ कर उस देश को क्यों चुना है जहां कण-कण में राम बसते हैं। अपनी जनता का ध्यान अपनी नाकामियों पर से हटाने के लिए वह कोई भी नापाक हरकत कभी भी कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो हम उस को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। हम उसकी ईंट से ईंट बजा देंगे। उसको याद रखना होगा कि 130 करोड़ भारतीयों के साथ अब उस जलपरी की भी अपार शक्ति हमको प्राप्त है जिस पर खुद भगवान ने अपने हस्ताक्षर करे हैं।

लाइव टेलीकास्ट होने वाली इस रिपोर्ट ने मुझे व्याकुल कर दिया और उत्तेजित भी। मैं समझ नहीं सका कि यह किस प्रकार कि रिपोर्टिंग हो रही है तभी मेरे अंदर का पत्रकार जाग उठा और मैंने उस रिपोर्टर को इशारे से एक ओर बुलाकर कहा- यह क्या कर रही हो? उसने कहा- अपनी जॉब कर रही हूं कोई आपत्ति है।
मैंने कहा- हां...! आपत्ति है, एक जिम्मेदार वरिष्ठ नागरिक और पत्रकार होने के नाते मैं पूछना चाहूंगा कि यह तुम किस प्रकार की रिपोर्टिंग कर रही हो? एक साधारण सी बात को तुमने असाधारण बनाते हुए पहले तो उसका ध्रवीकरण किया और अब दो देशों को जंंग के मुहाने पर खड़ा करने का दुस्साहस कर रही हो, तुम जानती हो जंग.... अभी मैं इतना ही कह पाया था कि उसने कहा- मुझे मेरा काम करने दीजिए। 
यह कहते हुए वह मेरे पास से चली गई और मछली को फोकस करते हुए लोगों को एकबार फिर बताने लगी, आप अद्भुत चमत्कार को देख सकते हैं कि कुछ समय पहले जलपरी पर जो शब्द पीले रंग से लिखा दिख रहा था अब उसका रंग हल्के हल्के केसरी होता जा रहा है। 

पत्रकारिता के इस अंदाज को मैं क्या नाम दूं यह मेरी समझ से परे था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह किस प्रकार की पत्रकारिता है? सवालों के इस मकड़ जाल ने मुझे एक भावहीन स्तंभ बना दिया था, जिसमें से केवल एक ही आवाज़ मुझे गूंजती सुनाई दे रही थी कि यह युवती जब अपने घर परिवार के लिए भोजन बनाती होगी तो वह कितना स्वादिष्ट होता होगा। मज़ेदार, चटखारेदार बिल्कुल इस समाचार की तरह।
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16992
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7 comments:

  1. बहुत ही सटीक और बढ़िया ब्लॉग आर्टिकल 👌🏼

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  2. शाहिद जी
    आपके व्यंग्यात्मक लेख पहले भी पढ़े है !बेहद उम्दा तंज़ है आज के हालात पर ! मुबारकबाद देना चाहती हूँ !
    सीमा जैन

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  3. Very articulated attributes of pollutated journalism as illustrated by Janab Shahid sb. SyedSHussain

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  4. Very intellectual satire on todays journalism

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