मुझे याद है वह दिन जब शाम ढलते ही अचानक सैकड़ों कुत्तों ने शहर को चारों तरफ से घेरकर जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया था।
जिस कारण महिलाएं डर गई थी और बच्चों ने रो-रो कर आसमान सर पर उठा लिया था। कुत्तों के इस प्रकार जोर-जोर से भोकने के कारण पूरे नगर का शांतिमय वातावरण अचानक आतंक के साए में आ गया था। इस घटना के बारे में किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है और कुत्ते क्यों भूख रहे है?
स्थानीय नौजवान भी इस अचानक होने वाले शौर की आवाज सुनकर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए थे, वह अचरज में थे परंतु शांत रहकर अचानक पैदा हुई परिस्थितियों को समझने की कोशिश कर रहे थे तभी मैंने एक बुजुर्ग की तरह जवानों को ललकारते हुए कहा था-
खड़े-खड़े क्या देख रहे हो ? किसकी प्रतीक्षा में हो, कुछ करते क्यों नहीं? तुम्हारी मर्यादा क्या खाक चाट रही है कुत्ते तुम्हें ललकार रहे हैं और तुम खामोश तमाशा ही बने खड़े हो। क्या यह पागल कुत्ते जब तुम पर हमला कर देंगे तभी तुम जागोगे, उठाओ अपनी-अपनी लाठियां और हमला करो इन भोकने वाले कुत्तों पर और भगाओ इनको शहर से दूर बहुत दूर जहां इनका स्थान है। मेरी ललकार सुनकर वीर जवानों ने एक दूसरे की और देखा था और आंखों ही आंखों में फैसला किया था कि यही वह उचित उपाय है जिससे स्वाभिमान और जिवन दोनों बचाए जा सकते हैैं। बस फिर क्या था पल भर में सैकड़ों लाठियां निकल आई थीं और बड़े संयोजित ढंग से इन भोकने वाले कुत्तों की ओर बढ़ गई थीं, कुछ समय बाद हम सब ने देखा था कि शौर थम गया है और कुत्ते खामोश हो गए हैं।
कुछ समय बाद पता चला कि शोर थमने का कारण वह मजबूत लाठियां नहीं थीं, बल्कि वह रोटियां थीं जो हमारे स्वाभिमानी वीर जवान अपनी मजबूत लाठियों के साए में भयभीत लोगों की नजरों से छुपा कर इन भोकने वाले कुत्तों के लिए चौराहे पर रख आए थे।
- शाहिद हसन शाहिद
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ReplyDeleteNice story
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