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Wednesday, October 28, 2020

सफेद दाढ़ी

किसी ने मुझसे कहा- तुम्हारी दाढ़ी काफी बड़ी और सफेद हो गई है, तुम इसका फायदा क्यों नहीं उठाते? मैंने उसको हैरत भरी नजरों से देखा....! उसने परवाह ही नहीं की और कहा-पैसा कमाओ इस से, मुझे मत देखो। मैंने हैरत से पूछा- दाड़ी से पैसा किस प्रकार कमाया जा सकता है। दाढ़ी मेरे चेहरे का नूर है, किसी मशीन का पार्ट या हाथ का हुनर नहीं है। जो रोज़ी-रोटी कमाने में सहायक हो। उसने कहा तुम बेवकूफ हो एक अच्छी मासूम सी भोली भाली सूरत लेकर भूखे मर रहे हो, जबकि दाढ़ी बढ़ा कर लोग करोड़ों कमा रहे हैं। तुम्हारी जैसी खूबसूरत दाढ़ी तो क़िस्मत से मिलती है। फायदा उठाओ,इस से जो बहुत आसान है। मैंने उससे कहा- कुछ बताओगे भी या यूं ही ऊल जलूल बातें करते रहोगे। उसने मेरी ना समझी पर तरस खाते हुए कहा- यह दौर सोशल मीडिया का है और मैं देख रहा हूं कि जिन लोगों को दीन (धर्म)के बारे में कुछ भी नहीं मालूम वह भी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ियों और कैमरों के सहारे दीन के लिए मॉडलिंग करके मोटी रकमें कमा रहे हैं। किसी माहिर एक्टर की तरह एक्टिंग करते हैं और अपनी रटी रटाई तक़रीर कंप्यूटर से पढ़ कर लोगों को उनकी जिंदगी मैं दीन की अहमियत,शिक्षाएं और इस्लामी क़िस्से, कहानियां सुनाते नज़र आते हैं। उनकी जुबान मैं अरबी,फार्सी के अल्फाज कम इंग्लिश के ज्यादा होते हैं, ताकि लोग उनकी गुफ्तगू पर तव्वजह दें और उनकी दाढ़ी और इंग्लिश के रोब को महसूस करते हुए ज्यादा से ज्यादा लाइक कर सकें।
मैंने सोशल मीडिया पर बहुत से उल्मा को दीन की बातें करते हुए और लोगों को बगैर इंग्लिश अल्फाज के भी गुफ्तगू करते हुए देखा व सुना है। उसने कहा हां देखा होगा सोशल मीडिया पर दीन सिखाने वालों में बहुत से ऐसे भी हैं जो यह कह कर दीन सिखाते नज़र आते हैं कि वह नए-नए मुसलमान बने हैं, उन्हें दीन के बारे में ज्यादा इल्म तो नहीं है। वह मुसलमान बनने से पहले एक मशहूर गायक,खिलाड़ी,डॉक्टर,
लोहार,बढ़ाई,साइंटिस्ट या कोई बड़ेबिजनेसमैन थे। मुसलमान बनने के बाद खुदा ने उनको अचानक ग़ैबी या रूहानी ताकतों से नवाज़ दिया, इस प्रकार वह लोगों को गुमराही से निकालने का काम करते हैं या खुद को उस गुमरही मैं तलाश करके दीन की तबलीग़ करते हैं। मैंने कहा, यहां तक तो ठीक है पर दाढ़ी के जरिए पैसा किस तरह कमाया जा सकता है। उसने कहा- दीन की तबलीग़ से तालुक़ रखने वाले दो तीन वीडियो देख लो तुम्हारी खुद समझ में आ जाएगा। अपने दोस्त की बात मानते हुए मैंने एक वीडियो देखना शुरू किया यह मौलाना मुझे कुछ जाने पहचाने से लगे इसलिए मैंने इनका पूरा वीडियो देखने का फैसला किया। वीडियो जैसे ही शुरू हुआ, तो सब से पहले उस में किसी फास्ट फूड का (ऐड)इश्तेहार नज़र आया जिसको एक महिला उसकी बच्ची इस टेगलाइन के साथ पेश करते नज़र आ रही थी ।
"यही आज की पसंद है, यही जिंदगी का आनंद"। ऐड पूरा होने के साथ ही मौलाना ने अपनी गुफ्तगू का आगाज़ यह फरमाते हुए किया कि हमने इस्लामी रिवायात को छोड़ दिया है। हम फास्ट फूड की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। हम जहां मौका देखते हैं वहां खड़े हो कर इस तैयार खाने को खा लेते हैं।दस्तरख्वान कितने घरों में सजाया जाता है? या हम किन इसलामी सुन्नतों के एहतमाम या एहतराम के साथ खाना खाते हैं? यह सब अब सवाल बनकर रह गए हैं। यह हमारी मा'शरत की तबाही है। अभी वह इस तबाही के दायरे को बढ़ा कर क़ौम को समझाने जा ही रहे थे कि इस्लाम ने जब शराब बंदी कि तब मुसलमानों ने अपने घरों में जमा की गई शराब नालियों में बहा दी थी,क्योंकि अल्लाह के प्यारे रसूल ने फरमाया था की शराब तमाम बुराइयों की जड़ है जो अब तुम पर हराम कर दी गई है। इसका पीना जमा करना या तिजारत करना सब हराम है, तभी एक तिजारती (कमर्शियल) ब्रेक आ गया जिसमें शराब की ऐड दिखाई जा रही थी। इसके बाद फिर मौलाना नज़र आए अब वह पहले से ज्यादा जलाल में थे और समाज में आई तमाम बुराइयों के लिए सीधे तौर पर पूरी क़ौम को कटघरे में खड़ा करके गलया रहे थे।वह पूरी कौम से पूछ रहे थे या यूं कहा जाए कि वह ऐतराज़ कर रहे थे कि समाज के द्वारा अपनाई जा रही आधुनिक जीवन शैली, कुछ नए-नए अपनाए गए रीति-रिवाज,फैशन किस तरह दीनेहक़ का हिस्सा बन गए हैं। वह जवाब तलब कर रहे थे कि यह क्या तरीका है कि हमारे नौजवानों ने अपने पजामे उतार दिए हैं और फटी हुई हाफ पेंट पहनना शुरू कर दी है। तभी उनकी तक़रीर को रोककर सोशल मीडिया द्वारा बाजार को कंट्रोल करने वाले माहिर खिलाड़ियों ने एक बड़े ब्रांड के रेडीमेड गारमेंट्स का ऐड लगा दिया जिसमें कुछ नौजवान लड़के, लड़कियां फटी हुई हाफ पेंट पहनकर मॉडलिंग करते नज़र आए। मैंने मौलाना के ब्यान को यहीं पर रोकते हुए अपने दोस्त से पूछा इसमें पैसा कहां है? यहां तो सिर्फ मज़ाक़ ही मज़ाक है।उसने कहा यह जो ऐड आप देख रहे हैं, यह हजारों और लाखों रुपए की पेमेंट मौलाना को अदा करते हैं। मैंने अपने दोस्त से पूछा इस्लाम में फोटो खिंचवाना हराम है यह बात मुझे याद है, परंतु मौलाना को याद नहीं है। उसने हंसते हुए कहा तो फिर ठीक है,तुम पीएम की तरह दाढ़ी बढ़ाओ और दाढ़ी-दाढ़ी खेल खेलते रहो और एक दूसरे से पूछते रहो कि तुम्हारी दाढ़ी मेरी दाढ़ी से ज्यादा 
सफेद कैसे?
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शाहिद हसन शाहिद
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Wednesday, September 23, 2020

सोना लो, चांदी लो

सोना लो, चांदी लो, यह आवाज़ जैसे ही मोहल्ले की गलियों की दीवारों से टकराई। कई महिलाऐं टोकरीयां और थेले लेकर घरों से बाहर निकल आयीं। सोना-चांदी शब्द जो आपने पढ़े वे सत्य हैं। इसमें शब्दों की कोई जादूगिरी नहीं है। महिलाएं बहुत देर से इस सोने-चांदी बेचने वाले की प्रतीक्षा में थीं, वे उसकी आवाज़ सुनकर बगैर देर किए पूरी तैयारी के साथ घर से बाहर निकल आयीं। मैंने भी एक थैला उठाया और इस सोना-चांदी बेचने वाले वेंडर की प्रतीक्षा में महिलाओं के झुंड से दूर अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा हो गया।
आप सोच रहे होंगे कि विश्व में ऐसा कौन सा देश है, जहां सोना-चांदी वहां के वेंडर गलियों में आवाज़ लगाकर बेचते हों, कहीं मैं किसी काल्पनिक देश की बात तो नहीं कर रहा हूं। जहां सोना चांदी गली मोहल्ले में फेरीवाले आवाज़ लगाकर बेचते होंगे। नहीं,ऐसा नहीं है, मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है की मैं विदेश या काल्पनिक देश की बात नहीं कर रहा हूं ,मैं अपने ही देश की बात कर रहा हूं जिसकी अर्थव्यवस्था शून्य 25 से नीचे जा कर आत्महत्या करने के लिए उत्सुक है। वह देश जिसके सामने कई करोड़ संगठित व असंगठित बेरोजगारों की सेना मुंह खोले खड़ी है, जहां समाज का हर वर्ग असुरक्षा और अविश्वास के कारण एक दूसरे को शक की निगाह से देखता है। जहां झूठ और पाखंड आपसे आपका धर्म पूछता है,जहां राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को गाली देना सिखाया जाता है। जहां अन्न पैदा करने वाला अपने बच्चों के पेट भरने के लिए सड़कों पर बैठकर लाठियां खाता है। वह देश जो करोना आपदा की होड़ मैं अपने दोस्त अमेरिका से आगे निकलने की होड़ में है। वहां गली में फेरी लगाने वाले वेंडर सोना और चांदी फेरी लगाकर बेच रहे हैं। यह और बात है कि सोने चांदी के नाम से बिकने वाली सब्जियां सोने चांदी की तरह ही महंगी हैं। जिनको मध्यवर्गी ग्रहणियां केवल छूकर ही रह जाती हैं, खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं।
सोना-चांदी बेचने वाले ने मुझसे पूछा- बाबूजी...! आप क्या लेंगे। 
मैंने कहा-लेहसन। उसने कहा- ₹300 किलो, मैंने कहा- हरा धनिया। उसने कहा ₹300 किलो। हरी मिर्च, वह भी ₹300 किलो।
मैंने विरोध जताते हुए कहा-इतनी महंगी। उसने हंसते हुए कहा- मैं सोना और चांदी बेच रहा हूं, आपने शायद मेरी आवाज़ सुनी नहीं।
मैंने उसकी हंसी का बुरा मानते हुए कहा- आप सोना चांदी क्यों बेच रहे हैं, सब्जियां बेचिए जो लोगों के काम आ सकें। 
उसने मेरी बात को हवा में उड़ाते हुए कहा-
जो मिल रहा है और जिस दाम में मिला है, ले लीजिए साहब, समय का पता कुछ नहीं कल हम हों या ना हों।
उसके इस प्रकार बात करने पर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने चिढ़ते हुए कहा- क्यों ले लूं कोई ज़ोर जबरदस्ती है? उसने कहा- बाबू जी बुरा ना मानें तो मैं एक बात कहूं । मैंने कहा कहो। उसने कहा-इन्हीं तेवरों में यही बात अगर आपने सरकार से कही होती तो आज यह नौबत नहीं आई होती कि हमारी मां, बहनें सब्जी पकाने के लिए भी तरस गई हैं। वह सब्जी को केवल छूकर देखती हैं और फिर रेट सुनकर उसी जगह रख देती हैं, खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। फिर उसने किसी दार्शनिक विद्वान की तरह कहा-श्रीमान जी, हमारी सहनशक्ति खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है, हम नफरत और प्रोपेगेंडे के इस युग में बर्फ की तरह जम चुके हैं या मूल मुद्दों से भटक गए हैं, जबकि इस प्रकार से जम जाना या भटक जाना एक स्वस्थ समाज के लिए कोई अच्छा चिन्ह नहीं है, यह चिंता का विषय है। इतना कहकर वह थोड़ा सा रुका और फिर कहने लगा- यह तो आप भी भली-भांति जानते हैं कि पानी अगर बेहता रहे तब ही वह स्वच्छ व शीतल रहता है, एक जगह ठहर जाए तो सड़कर बदबू देने लगता है। इतना कहकर उसने एक गहरी सांस ली और फिर बोला-अगर बुरा ना मानें तो छोटा मुंह और बड़ी बात कहूं। मैंने बड़े रूखे पन से कहा- कहो। वह बोला प्रॉब्लम यह है कि आप अपना विरोध केवल सब्ज़ी वाले पर ही उतारना जानते हैं, इससे आगे कुछ नहीं। इतना कहकर वह हंसता हुआ आगे बढ़ गया और मैं बहुत देर तक अपने अंदर बर्फ जैसी ठंडक और ठहरे हुए पानी की गंध महसूस करता रहा फिर अचानक मैं दौड़ कर उसके पास गया और उससे पूछा- सब्जी बेचने से पहले तुम क्या करते थे? उसने कहा- दार्शनिक का प्रोफेसर था।
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991


Tuesday, September 15, 2020

हरामखोर

 जवान जादूगरनी ने जैसे ही अपने जादू के करतब दिखाना शुरू किए, लोगों ने यह कहते हुए चीखना और चिल्लाना शुरु कर दिया कि यह जादू पुराना है, कुछ नया दिखाओ। जादूगरनी ने कहा- मैं एक ऐसा जादू तुमको दिखाने जा रही हूं, जो तुम्हारे होश उड़ा देगा। दिमाग पिघला देगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो? लोगों ने कहा- हम तैयार हैं। लोगों का उत्साह देखकर जादूगरनी ने कहा- अपनी आंखें बंद करो और जब तक मैं ना कहूं इनको मत खोलना। उसकी बात मानते हुए लोगों ने अपनी आंखें बंद कर लीं और वे एक प्रकार से अंधभक्त बन गए। जादूगरनी ने मुंह ही मुंह में कुछ शब्द बुद बुदाना आरंभ किए। कुछ देर बाद उसने अंधभक्तों से कहा-अपनी बंद आंखें खोलो। भक्तों ने कहा-वे नहीं खुल रही हैं। जादूगरनी ने कहा-ओह, मैं भूल गई, तब उसने थाली बजाना आरंभ की और साथ खड़े लोगों ने ताली।थाली और ताली की जुगलबंदी जब भगतों के कानों तक पहुंची तो उन्होंने अपनी आंखें खोल दीं। अब उनकी खुली आंखों ने जो देखा उसको देख कर सब हैरान रह गए। जादूगरनी ने जो दावा किया था वह उस ने सच कर दिखाया था। उनको विश्वास नहीं हो रहा था कि यह कैसे संभव हो सकता है कि समंदर के किनारे रहने वाले भक्तों को जादूगरनी ने चुटकी बजाते ही अपने जादू से बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर पहुंचा दिया था, जहां से उनको छुपे आतंकी भी साफ नज़र आ रहे थे। लोगों ने जादूगरनी से पूछा- यह कौन सी जगह है और हम कहां हैं ? जादूगरनी ने कहा- तुम पीओके में हो।
लोगों ने कहा- हम पीओको में क्या कर रहे हैं? जादूगरनी ने कहा शासक बाबर के राज के मज़े ले रहे हो। किसी नए प्रश्न के आने से पहले जादूगरनी ने चेतावनी देते हुए लोगों से कहा- अगर इस से अधिक की तुमने मुझे से इच्छा रखी तो में बाबर के फौजियों को बुलाकर तुम्हारी वह पिटाई करवाऊंगी कि तुम्हें अपनी नानी, और फिर नानी की नानी याद आ जायेगी। शब्द पिटाई सुन कर कुछ लोग डर गए,उनकी निगाहों के सामने माबलंचिग जैसे केई मामले घूम गए, परंतु भीड़ में से एक व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने चीखते हुए कहा- ऐ...! जादूगरनी, तूने यह अच्छा नहीं किया। हमने अपना पूरा जीवन समंदर को समर्पित किया है। और उसने भी हमें वह सब कुछ दिया है, जिसकी हम इच्छा कर सकते हैं। हमको अपना समंदर और प्रदेश प्यारा है, हम इन पहाड़ियों का क्या करेंगे, हमको वापस वहीं पहुंचाओ, जहां के हम वासी हैं। जादूगरनी ने कहा- ऐसा संभव नहीं है। अधिकृत पहाड़ियां भी हमारी हैं जिन को हम किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ सकते। व्यक्ति ने क्रोधित होते हूए कहा- 
तू हरामखोर है। जादूगरनी ने पूछा, यह हरामखोर क्या होता है व्यक्ति ने कहा- जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है यही हरामखोरी है। इतना सुनकर जादूगरनी शोर मचाने लगी और अंधभक्तों को उकसाते हुए कहने लगी देखो-देखो यह देश द्रोही मुझे गाली दे रहा है। देश की बेटी का अपमान कर रहा है। नारी सम्मान की बातें करने वाला नारी को खुलेआम बेइज्जत कर रहा है। इतना सुनकर कुछ भोंपू टायप के लोग जोर-जोर से चीखने लगे...... शर्म करो शर्म करो।
भीड़ में से एक दूसरा आदमी निकल कर सामने आया और उसने जादूगरनी से कहा- हमें बताओ जादू करते समय तुमने ऐसे कौन से शब्द कहे थे। जो हम इस स्थिति तक पहुंच गए। जादूगरनी ने कहा- वे जादुई शब्द थे राम मंदिर, मुसलमान, आतंकवाद,गद्दार, राष्ट्रद्रोह, और निपोटिज़्म। व्यक्ती ने चीखते हुए कहा- यह शब्द जादू नहीं कर सकते, यह शब्द तो किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा लगते हैं। तुम इन शब्दों से जादू नहीं कर सकतीं। जादूगरनी बिगड़ गई और कहने लगी मुझे इन्हीं शब्दों से जादू करना सिखाया गया है।इन शब्दों ने वह कर दिखाया है जिसकी तुम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इतना सुनकर कई लोगों ने एक साथ कहा तू झूटी है। 
जादूगरनी ने कहा- मैं झूठी नहीं पागल हूं, यकीन ना आए तो मूवी माफिया से पूछ लो। जिसने मुझे 2008 में पागल 2016 में डायन 2020 में स्टॉकर, एवं खिसकी हुई घोषित कर रखा है।
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शाहिद हसन शाहिद
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Saturday, September 12, 2020

कीचड़ ना उछालिए

खबर यह है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जो छोटे और मझोले किसानों को ₹6000 सालाना की वित्तीय मदद देने के लिए दिसंबर 2018 में शुरू हुई थी। वह आज कल चर्चा में है। तमिल नाडु कृषि विभाग की जांच में सामने आया है की लाभार्थियों में 5.5 लाख से ज्यादा नकली नाम इस में शामिल हैं। जिससे राजकोष को लगभग ₹110 करोड़ का चूना लगा है।
लोगों का कहना है की कृषि विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने एक सिंडिकेट बनाया और  नकली दस्तावेजों द्वारा अयोग्य लोगों को योजना के साथ जोड़ दिया। यह सारी कवायद ऑनलाइन होना थी जिसमें झूठे दस्तावेज और पासवर्ड इस्तेमाल किए गए। योजना की शर्तों के अनुसार किसानों के पास 2 हेक्टेयर तक जमीन होना चाहिए व परिवार से एक ही व्यक्ति इस योजना का लाभ ले सकता है। नौकरशाही ने ऐसा ना करके योजना का दायर बढ़ा कर एक घर से 6 लोगों तक पहुंचा दिया और ग्रेटर चेन्नई के आलीशान बंगलो में रहने वालों को भी स्कीम का लाभ पहुंचाया जिनके पास कृषि भूमि थी ही नहीं। कुछ ऐसा ही हाल दूसरे प्रदेशों को का भी है जहां बड़े पैमाने पर आयोग्य लोगों को उपरोक्त योजना में शामिल किया गया है। 
कुछ विद्वानों का कहना है कि यह खुली धोखाधड़ी है। कुछ का विचार है कि यह राष्ट्र विरोधी कार्य है। जबकि प्रधानमंत्री  कहते हैं कि हमारे देश में गरीबों की बात तो बहुत हुई है, लेकिन गरीबों के लिए जितना कार्य पिछले 6 साल में हुआ है, उतना कभी नहीं हुआ। हर वह क्षेत्र, हर वह सेक्टर जहां गरीब, पीड़ित, शोषित, वंचित, अभाव में था, सरकार की योजनाएं उस का संबल बनकर आयीं।
मैं सोचता हूं कि ऐतराज करने वाले लोग यह क्यों नहीं समझते कि अब गरीब की परिभाषा बदल गई है जिसको हम पहले गरीब मानते थे वह तो धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ठीक कह रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था जिस हाल में या जिन कारणों से अस्वस्थ है, उसमें सबसे ज्यादा बुरी हालत मध्य वर्गी समाज की है, जो देखते ही देखते गरीब हो गया। वह रहता तो कोठियों में हैं, जो उसने कभी अपने बुरे वक़्त में पहले बना ली थीं, परंतु अब उसके पास अपनी कमीज़ का सफेद कॉलर बचाने के लिए ₹6000  धोखे से लेने के अतिरिक्त आत्महत्या का ही विकल्प रह जाता है। अंततः मैं इतना ही कहूंगा की हर चर्चा को जुमले बाज़ी कहकर गरीबों के लिए सरकार की सद्भावनाओं का मज़क ना उड़ाएं और ना ही कीचड़ उछालें सच्चाई भी तलाश कर लिया कीजिए।
शाहिद हसन शाहिद
70093-16991
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Saturday, September 5, 2020

पाजी का खेल खत्म

पाजी का खेल खत्म
आजकल मैं एक ऐसी मनोवैज्ञानिक बीमारी से ग्रस्त हूं जिसमें कहने वाला कहता कुछ और है और मैं समझता कुछ और हूं। इसका अर्थ यह नहीं  है कि मैं बेरा हो गया हूं या मुझे सुनाई कम दे रहा है। बल्कि कोविड-19 के कारण गत 4 माह से घर में बगैर किसी अपराध के क़ेदियों जैसी जिंदगी गुजारने के कारण मेरे दिमाग ने अपनी मनमानी करना आरंभ कर दी है। मनमानी के कारण ही  आज  के समाचारपत्र की पहली हेडिंग को मैंने कुछ इस प्रकार पढ़ा-"पाजी का खेल खत्म"। इतना पढ़कर मैं कुछ क्षण के लिए स्तंभ रह गया कि यह कैसे हो सकता है ? पाजी तो ठीक-ठाक थे, कल तक तो वह शांत मन से मोर को दाना खिला रहे थे फिर यह कैसे हो गया ? समाचार के हेडिंग में मुझे कुछ संदेह लगा। मैंने उत्सुकता के साथ विस्तार से समाचार पढ़ना आरंभ किया तो ज्ञात हुआ कि पाजी नहीं बल्कि पबजी लिखा है। जिस को मेरे बीमार दिमाग ने पाजी पढ़ लिया और मैं वह सोचने लगा जिसको सोचने का 138 करोड़ भारतीयों को कोई हक नहीं है। 
यह तो वह  समाचार था जिसको सुनकर चीन भुखला उठा। उसके होश उड़ गए, अर्थव्यवस्था धरा शाही हो गई और वह पाजी के सामने गिड़गिड़ाने लगा। समाचार की  यह वह प्रतिक्रियाएं थीं जो हमको बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बतायीं।
पबजी के बंद होने के ग़म में कुछ लोग यह कहते भी सुने गए की पबजी को पूरे विश्व के 17.5 करोड़ युवाओं ने डाउनलोड कर रखा है। इसमें सर्वाधिक 5 करोड़ से अधिक भारतीय हैं। जिनमें से लगभग 3.5 करोड़ सक्रिय खिलाड़ी थे जो अब पबजी बन्द होने के बाद पुणीता बेरोजगार हो गए हैं।
युवाओं और बच्चों में लोकप्रिय गेमिंग एप प्लेयर अननोन बैटलग्राउंड यानी पबजी पर सरकार ने पाबंदी लगाने के पश्चात कुछ विद्वानों का यह भी कहना है की सरहदों पर चीन को मुंहतोड़ जवाब हमारे जवान दे रहे हैं और देश की अंदर की सफाई हमारे पाजी कर रहे हैं।
 यह पाजी शब्द भी बड़ा अनोखा है अगर पंजाबी भाषा में प्रयोग हो तो इसका अर्थ भाई होता है जबकि हिंदी भाषी इसका उपयोग चालाक एवं शैतान के तौर पर करते हैं। मैं पंजाबी अर्थ को उचित समझते हुए कहूंगा की पाजी ने 118 एप्स बंद करके जीडीपी वाले मुद्दे को अपने जादुई करिश्मे से गायब कर दिया, यही पाजी का मास्टर स्ट्रोक है। यह नए भारत का उदय है, जो विश्व गुरु है। अंततः मैं नए- नए हुए बेरोजगारों के प्रीति अपनी संवेदना प्रकट करते हुए कहूंगा कि वह खेलकूद से बाहर निकलें और मनोरंजक मींम्स देखने के लिए स्वयं को तैयार करें। जो भारतीय होंगे और हमको आत्मनिर्भर बनाने में सहयोगी भी।
-शाहिद हसन शाहिद