Wednesday, September 23, 2020
सोना लो, चांदी लो
Tuesday, September 15, 2020
हरामखोर
Saturday, September 12, 2020
कीचड़ ना उछालिए
बंदूक की खाली नाल
Thursday, September 10, 2020
बूढ़े हो गए हो तुम
मैंने अपने बेटे से कहा-आज़ादी का अर्थ यह नहीं है जैसा कि तुम समझ रहे हो।दिशाहीनता और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित तुम्हारी जीवन शैली ने आज़दी शब्द को अर्थहीन बना दिया है। इसका का आदर करो, यह बहुत क़ीमती है, मेरे बेटे।
उसने आत्म-निर्भरता के साथ नपे-तुले शब्दों में एक ही वाक्य में उत्तर देते हुए मुझ से कहा- आप बूढ़े हो गए हैं पिताजी।
मैंने अपनी बेटी से कहा- समाज ने लड़कियों के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हुई हैं। तुम उन सीमाओं का उल्लंघन करती दिखाई दे रही हो। लज्जा हमेशा से स्त्री का बहुमूल्य आभूषण रहा है, तुमने यह आभूषण क्यों उतार फेंका मेरी प्यारी बेटी? उसने तुरंत भाहीन स्वर मैं मुझे उत्तर देते हुए कहा- आप बूढ़े हो गए हैं पापा।
मैंने अपनी पत्नी से कहा- नारी स्वतंत्रता, महिला सशक्तिकरण,आत्मसम्मान एवं पुरुष से समानता जैसे शब्दों के मायाजाल मैं फंसकर यह जो कुछ आप नि:संकोच एवं निर्भय होकर कर रही हैं,यह सरासर गलत है और आने वाली पीढ़ियों के लिए तबाही भी। हमारी सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज किसी भी स्थिति में इसकी अनुमति नहीं देते हैं। भविष्य की पीढ़ियों के चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी आपके कंधों पर है। इस जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक पूरा कीजिए और तुरंत रोकिए इन खुराफात को, जो समाज में आ रहे बदलाव के नाम पर आप अपनाती जा रही हैं,नहीं तो देर हो जायेगी। अगर देर हो गई तो विरासत के नाम पर नई पीढ़ी को देने के लिए आपके पास कुछ नहीं बचेगा। इतना सुनकर उन्होंने बड़ी निंदनीय निगाहों से मुझे देखा और ललकारते हुए कहा- बूढ़े हो गए हैं आप।
परिवार की प्रतिक्रियाएं सुनने के बाद, मैंने समाज को संबोधित करते हुए कहा- ऐसी क्या मजबूरी थी जो रिश्तों की गरिमा,मान-मर्यादा, आपसी भाईचारा,सम्मान, प्रेम, व्यवहार,चरित्र की गरिमा, शालीनता सब कुछ छोड़ दी तुमने। तुम ही तो हमेशा से हमारी पहचान रहे हो। तुम ही बदल गए तो हम किस दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर स्वयं को पहचानेंगे।
भावी पीढ़ियां किस चीज पर गर्व करेंगे।
क्या तुमने कभी सोचा है ? तो उसने बड़े अहंकारपूर्ण एवं उपेक्षिता के साथ मुझ से हुए कहा- बूढ़े हो गए हो तुम।
इसके बाद मैंने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा- राष्ट्र स्वाभिमान, सम्मान,गौरव, रीति- रिवाज, सभ्यता आदि सब राष्ट्र इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों से लिखे यह वह शब्द होते हैं, जो सदियों में निर्माण होते हैं। त्यौहार प्र:या हमारी सभ्यता एवं परंपरा की पहचान रहे हैैं, तुमने इन सब मूल्यवान आदर्शों को छोड़कर यह किस नई सभ्यता के साथ हाथ मिला लिया है जो हमारी विचारधारा व चरित्र से मेल नहीं खाती है। हर रोज नए-नए त्यौहार,नई-नई मान्यताएं, जो तुम मनाने लगे हो वे हमारे समाज का कभी अंग नहीं रही हैं, यह विशेष दिवस मनाने का चलन तुमने कहां से सीख लिया। जो हमारी सभ्यता का हिस्सा कभी थे ही नहीं। इसकी जवाबदेही तो तुमको करनी ही होगी नहीं तो समय तुम्हें माफ नहीं करेगा।
उसने बड़ी घृणित नज़रों से मुझे देखते हुए कहा- बूढ़े हो गए हो तुम।
इस पूरे संवाद का निष्कर्ष यह निकला कि हर वर्ग ने एकमत होकर यह घोषणा करने में देर नहीं की कि मेरी सोच बूढ़ी एवं रूढ़िवादी हो चुकी है और मैं बुढ़ा। जबकि मैं यह मानने के लिए कदापि तैयाार नहीं कि मैं बूढ़ा हो गया हूं। मेरी चेतना मेरी सोच और मेरा विवेक मुझसे पूछता है। क्या क़ुराने पाक की शिक्षाएं,गीता के संदेश, बाइबल के उपदेश या गुरु ग्रंथ साहब की वाणी कभी बूढ़ी हो सकती है ? क्या पीर-फकीरों, ऋषि- मुनियों के पाक क़दमों से गुंथी मेरे देश की मिट्टी बूढ़ी हो सकती है ? क्या मेरे देश की बहुरंगी विरासत कभी बूढ़ी हो सकती है? अगर यह सब बूढ़े नहीं हो सकते हैं, तो मैं कैसे विश्वास कर लूं कि मैं बूढ़ा हो गया हूं।
- शाहिद हसन शाहिद
70093-16991
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Monday, September 7, 2020
दीवार पर लिखी गालियां
Saturday, September 5, 2020
पागल इंसान
सब खुश हैं
मैं खुश हूं बल्कि बहुत ज्यादा खुश हूं ।
चार दिन अस्पताल में गुजार कर 'जान बची और लाखों पाए' कहावत अनुसार स्वस्थ लाभ लेकर वापस जीवित घर जो आ गया हूं।
मेरे स्वस्थ होने पर मेरा डॉक्टर भी खुश है। उसके कहने के अनुसार उसने 25000 रुपए की मामूली राशि लेकर मुझे नया जीवन जो प्रदान किया है, वह जीवन जो थोड़ी देर से क्लीनिक पहुंचने पर मेरा नहीं रहता और कुछ भी बुरा हो सकता था, जो समय पर क्लीनिक पहुंचने पर टल गया।
मेरे दोस्त वा रिश्तेदार भी मेरे स्वस्थ होने पर खुश हैं, उनकी खुशी का कारण है कि उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का बहाना लेकर टेलीफोन द्वारा मेरा हाल पूछ कर मेरे प्रति अपनी सद्भावनाएं समय पर पहुंचा दी थीं। जिस कारण वे अपनी आत्मीयता दिखाने में सफल रहे, नहीं तो सोचिए अगर मेरे साथ भगवान ना करे कुछ बुरा हो जाता और उनको अपनी व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर मेरे उस बुरे में शामिल होना पड़ जाता तो उनके लिए कितनी मुश्किल हो जाती।
मेरी बैगम भी खुश हैं, क्योंकि उन्होंने एक बार फिर मेरे प्रति अपना समर्पण व त्याग से सिद्ध कर दिया है की वह हमेशा की तरह इस बार भी वफादारी और प्रेम की कसोटी पर खरा सोना साबित हुई हैं, जबकि इसकी कीमत उनको अपने गले की वह सोने की चैन बेचकर अदा करना पड़ी है, जो मैंने उनको निकाह के समय मुंह दिखाई पर दिखी थी।
मेरे जीवित होने पर मेरे बच्चे भी बहुत खुश हैं। वह अपनी खुशी में खुदा का शुक्र अदा करना नहीं भूल रहे हैं, जिसने उनकी इज्जत बचा ली वह सोचते हैं कि अगर पापा के साथ कुछ बुरा हो जाता तो अस्पताल के बिल के साथ-साथ कफन, दफन और दूसरी धार्मिक क्रियाओं के अतिरेक इस अवसर पर आने वाले अतिथियों और उनके नाज़ नखरों पर आने वाला लगभग एक लाख का खर्च वह कैसे पूरा कर पाते क्योंकि उनकी मां के पास बेचने के लिए केवल सोने की चैन के अतिरिक्त कुछ और था ही नहीं।
- शाहिद हसन शाहिद