अपने अंदर के इस आदमी को मैं भली भांति पहचानता हूं, वह बड़ा बहानेबाज़ व आवारा सिफत व्यक्ति है। जिस प्रकार की छवि वह समाज को दिखाता है वैसा वह बिल्कुल नहीं है। मुझे उसकी यह आवारगी बहुत बुरी लगती है। जिसके लिए में उसको बराबर टोकता रहता हूं। मैं उसको समझाता हूं कि उसको अपनी यह बुरी आदत छोड़ देना चाहिए। एक दिन मैंने उससे कहा तुम ऐसी खबरें क्यों पढ़ते हो जो ज़हनी अयाशी पैदा करती हैं। इतना सुनकर वह भड़क गया और गुस्से में चिखते हुए कहने लगा- क्षमा कीजिए, यह सोच आपकी है जो मेरे अंदर आवारगी देखती है, मेरी नहीं है । सही सोच क्या है यह बताने का भी कष्ठ करें, मैंने उसको चिढ़ाते हुए पुनः प्रश्न किया। एक ही बलात्कार का समाचार जिस की घटना, स्थान ,तिथि, चरित्र और चरित्रों का नाम एवं आयु एक ही होती है उसी समाचार को अलग-अलग समाचार पत्रों में पढ़कर आप कौन सा शोध कार्य करते हैं ?
मेरा ऐतराज़ सुनते ही उसने तुरंत उत्तर देते हुए कहा- रिपोर्टिंग......! रिपोर्टिंग शब्द सुनकर मुझे एक प्रकार से झटका लगा और मैं अचंभित होते हुए बोला- मैं समझा नहीं, रिपोर्टिंग से तुम्हारा क्या मतलब है ? मेरे अचरज को देखते हुए वह शांति रहा और मीठे स्वर से बोला, मैं बताता हूं, कहते हुए वह मुझे समझाने वाले अंदाज में बताने लगा देखिए, आपका यह कहना ठीक है कि समाचार एक ही होता है घटना की शिकार लड़की, उसकी आयु, स्थान, क्या हुआ, कैसे हुआ अंततः हादसे की तारीख भी वही होती है,परंतु इस समाचार को लिखने वाले पत्रकार समाज के अलग-अलग वर्गो से आते हैं जिनकी कलम ही तय करती है कि खबर आम है, खास है, या बहुत खास है। उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विस्तार से बताना आरंभ क्या। हम इस सत्य को इस प्रकार समझ सकते हैं कि एक पत्रकार किसी मासूम लड़की के साथ हुए इस शर्मनाक हादसे का समाचार को केवल एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना, जो उसकी सोच के अनुसार रोज कहीं ना कहीं होती है बड़े सामान और सहज रूप से प्रस्तुत कर देता है। वह अपनी टिप्पणी में इस हादसे को उस लड़की या उसके परिवार की खराब किस्मत का दोष देकर अपना कर्तव्य पूरा करता है। जबकि दूसरा पत्रकार इसी घटना को कानून की बिगड़ी व्यवस्था या प्रशासन की ढ़ील बता कर सरकार के सर इलज़ाम डाल कर समाचार की जरूरतों को पूरा कर देता है। कोई तीसरा पत्रकार इस घटना को समाज के गिरते हुए स्तर की दुहाई देते हुए इंसान के वेहशीपन या पश्चिमी सभ्यता को दोषी बताकर समाचार पूरा कर देता है। कोई चौथा पत्रकार इस घटना को आंखों देखा हाल बताते हुए एक मसालेदार पोर्न फिल्म की तरह पेश करके अपने पाठकों का मनोरंजन करता है जबकि इस भीड़ मैं से निकलकर कोई एक पत्रकार ऐसा भी होता है, जो इस घटना की पीड़ित लड़की की मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व स्वाभिमान की पीड़ा को अपनी अंतरात्मा की गहराइयों से महसूस करते हुए समाचार इस प्रकार लिखता है जैसे वह पत्रकार ना होकर स्वयं एक पीड़ित लड़की हो और जो अपने ऊपर हुए इस जुल्म को सहन करते हुए सारा ज़हर खुद ही पी जाना चाहती हो बिल्कुल वैसे ही जैसे एक सच्चा गायक किसी दर्द भरे गाने को अपने गले या पेट से ना गाकर दिल की गहराइयों से गाता है और हमारे मन मस्तिष्क पर अपनी छाप हमेशा हमेशा के लिए छोड़ जाता है।
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शाहिद हसन शाहिद
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सही लिखा आपने जैसे लिखने वालों के दिमाग अलग अलग होते हैं और एक ख़बर को अपनी मानसिकता के अनुसार लिखते हैं वैंसे ही पढ़ने वाला पाठक भी उस ख़बर को अपने स्वभावानुसार लेता है।
ReplyDeleteआपकी लेखनी सराहनीय है और बधाई के पात्र हैं।
Kya baat hai lajwaab kahani
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हसन साहिब, ख़ुदा न सबको अलग अलग बनाया और दिमाग भी अलग अलग दिया , इसलिए सब की सोच अपनी अपनी होती है। जैसे जिसका स्वभाव होता है वैंसे ही वो सोचता है और व्यवहार करता है। आप बधाई के पात्र हैं सही लिखा
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteAwsome 👌🏻
ReplyDeleteGreat.
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteYou always Make us wordless
Best wishes
May Allah bless you with good health
ایک بے حد عمدہ اور سچائ پر مبنی کہانی جس کے لئے کہانی کار قابل مبارکباد ہیں
ReplyDeleteVery nice story
ReplyDeleteVery nice story superb👍👍👍👍👍
ReplyDeleteVery meningful
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