मैंने अपनी आंतों को पेट के अंदर इतना सिकरोड़ा कि वहां एक गड्ढा सा बन गया। फिर मैंने अपने पैरों को इस गड्ढे में फिट किया और पंजों के बल बैठ गया। इस प्रकार पंजों के बल उकड़ू बैठकर भूख पर विजय प्राप्त करना एक ऐसी प्राचीन कला है, जो पूरे विश्व के गरीबों में प्रचलित है।भूखे पेट की सहायता से मैंने इस कला पर बचपन में ही विजय प्राप्त कर ली थी। मेरा अनुभव कहता है कि इस प्रकार बैठने के बाद इंसान की सोई हुई ऐसी बहुत सी अंतरात्माएं जाग जाती हैं, जो फूले हुए पेट के साथ कभी नहीं जागतीं। आनंद देने वाले इस योग मुद्रा में बैठने के बाद मेरी अंतरात्मा ने देखा- मेरे चारों ओर खाने के बर्तन बिखरे पड़े हैं। जिनमें कुछ टूटे-फूटे हैं और कुछ ठीक-ठाक हैं। जो ठीक-ठाक हैं उन में अन्न का दाना नहीं है। वे खाली हैं मेरे पेट की तरह।
मैं हैरानो-परेशान अभी इन बर्तनों को देख ही रहा था तभी मेरी नज़र उस कूड़ेदान की ओर चली गई,जहां कुछ दिन पहले तक शहर के सभ्य व सम्मानित लोग अपने मरे हुए कुत्ते, बिल्ली,घर का बेकार सामान और कन्या भ्रूण फेंक जाते थे,यह मेरे हुए शरीर सढ़ कर इतनी गंध पैदा करते थे कि आसपास के निवासियों का जीवन नर्कमय हो चुका था।
इस गंध ने मेरी नाक के नथुनों में जाकर मुझे कभी दुखी नहीं किया,कारण यह था कि इस गंध से कहीं अधिक गंध मेरी उस पेंट और शर्ट से आती थी,जो मैंने जवान होते ही इसी कूड़ेदान से उठाकर 60 वर्ष पहले पहन ली थी, और दूसरा कारण था कि मैं ना तो समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति हूं और ना ही सभ्य समाज का अंग जिसको गंध या सुगंध का अंतर मालूम हो।
कूड़ेदान को देखकर मेरे मन में एक पुरानी कहावत याद आने लगी कि 20 साल बाद कूड़ेदान के भी भाग्य बदल जाते हैं, यह कहावत अब मुझे सत्य होती प्रतीत हो रही थी। सामने वाले कूड़ेदान का भाग्य निसंदेह अब बदल चुका है। वह पहले से कहीं ज्यादा उदार एवं प्रगतिशील नजर आने लगा है। नगर के सम्मानित लोग अब इस कूड़ेदान पर अपने मरे हुए चूहे बिल्ली नहीं फेंकते, जो सड़कर उनका जीवन को नर्क बनाते थे, बल्कि वे अब कूड़ेदान को साफ-सुथरा एवं स्वच्छत रखते हुए करोना महामारी की संभावना से ग्रस्त अपने जीवित बुज़ुर्ग,बीमार माता-पिता व रिश्तेदारों को फेंक जाते हैं। जिनको कुछ समय बाद कारपोरेशन की गाड़ीयां कूड़े करकट की तरह उठाकर ले जाती हैं । गाड़ीयां जब इन जीवित रिश्तों को उठाकर ले जाती है तो यह रिश्तेदार उनको दूर खड़े होकर हाथ जोड़कर पूरे धार्मिक रीति रिवाज के साथ रुखसत होते हुए अपने घरों की बाल्कोनियों से देखते रहते हैं। इन में से कुछ लोग थाली या ताली बजाकर करोना योद्धाओं के प्रति अपना स्नेह एवं आदर सम्मान भी प्रकट करते हैं।
मेरी समस्या यह नहीं है के रिश्तेदारों ने अपने जीवित परिवारजन को कूड़ेदान पर फेंक दिया। समस्या यह भी नहीं है कि उन्होंने थाली और ताली क्यों बजाई? मेरी समस्या केवल इतनी है कि जो बदबूदार पैंट-कमीज मैंने 60 वर्ष पहले कूड़ेदान से उठाकर पहनी थी उसको उतारने के लिए कब, कौन और कहां से आएगा?
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16991
I wrinkled my intestines so much inside the stomach that it became a hole there. Then I fitted my feet in this pit and sat on the feet. In this way, conquering hunger by sitting squatting is such an ancient art, which is prevalent among the poor all over the world. With the help of a hungry stomach, I conquered this art in my childhood. My experience says that after sitting in this way, many such sleeping souls wake up, which never wake up with bloated stomach. After sitting in this yoga post that gave pleasure, my conscience noticed - the food utensils are scattered all around me. Some of them are broken and some are fine. Those who are well-off do not have food grains. They are empty like my stomach.
I was surprised to see these utensils right now, when my eyes went to the dustbin, where till a few days ago the civilized and respected people of the city used to throw their dead dogs, cats, household waste and female embryos , This used to make my body smell so bad that the lives of the nearby residents had become hellish.
This smell never made me sad by going into the nostrils of my nose, the reason was that more than this smell came from my paint and shirt, which I had worn 60 years before when I was young, from this dustbin. And the second reason was that I am neither an eminent person of society nor a part of a civilized society who knows the difference of smell or fragrance.
Seeing the dustbin, I started remembering an old saying that after 20 years, the fate of dustbin also changes, I now seemed to be true. The fate of the front dustbin has undoubtedly changed now. He is beginning to appear more liberal and progressive than ever before. The respected people of the city no longer throw their dead rat cats on this dustbin, which made their lives hell by rotting, but they now keep their dustbins clean and hygienic, with their surviving elderly, sick mother, prone to the Karona epidemic. Father and relatives are thrown away. After some time, the Corporation's cars are taken away like garbage. When the vehicles carry these living relations, these relatives stand away from them and fold their hands and watch them from the balconies of their homes, moving with full religious rituals. Some of these people also express their affection and respect for Karona warriors by playing thali or tali.
My problem is not that relatives throw their surviving family on the trash. The problem is not also why they played the thali and clap? My only problem is that when, who and where will I come to remove the smelly pant-shirt that I wore from the dustbin 60 years ago?
Wah kya baat
ReplyDeleteAwsome 👌🏻
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