साधू सा देखने वाला एक व्यक्ति मेरे कार्यालय मैं आया और कहने लगा- मुझे इंटरव्यू देना है, पत्रकार बुलाओ।
मैंने सर से पैर तक उसको कई बार देखा और मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नया नया साधू बना है, पहले यह निश्चय ही मिडिल क्लास का रहा होगा, उसकी मनोस्तिथि देखते हुए मैंने उससे कहा दिया कि हम साधू-संतों के इंटरव्यू नहीं करते हैं। इतना सुनते ही वह क्रोधित हो गया और बिगड़ कर कहने लगा-
इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी कोई इज्जत ही नहीं है। उसके गुस्से को देखते हुए मैंने कहा- इज्जत है, परंतु वह 5 वर्ष बाद तुमको मिलती है अभी समय नहीं आया है,जब समय आएगा तो इज्जतदार लोग तुम्हारे दरवाजे पर इज्जत लेकर पहुंच जाएंगे उस समय तुम इज्जत दार बन जाना और इंटरव्यू देना। मेरा कटाक्ष सुन कर उसने शक भरी नज़रों से मुझे देखा और पूछा- तुम कौन हो? मैंने कहा- लेखक...! लेखक सुनते ही उसने बुरा सा मुंह बनाया और कहा- मुझे तुमसे बात नहीं करनी है, मुझे दबंग पत्रकार चाहिए, जो आंखों में आंखें डालकर कड़क आवाज मैं पूछ सके मुझे जवाब चाहिए। ऐसा पत्रकार बुलाओ। मैंने कहा- मैं पत्रकार भी हूं और लेखक भी टू इन वन। उसने टू इन वन पर गौर ना करते हुए कहा -लेखक पत्रकार नहीं हो सकता। उसका स्पष्ट विश्लेषण सुनकर मैंने कहा- अब लेखक और पत्रकार में कोई फर्क नहीं रह गया है, बड़े-बड़े नेताओं के इंटरव्यू अब लेखक ही पत्रकार बनकर कर रहे हैं और तुम कह रहे हो कि लेखक पत्रकार नहीं हो सकता
तुमको मालूम नहीं की देश बदल चुका है,अब लेखक ही नहीं फिल्मों के नायक भी इंटरव्यू करने लगे हैं।पत्रकार तो केवल अपने स्वामी द्वारा दिए हुए निर्देशों का पालन करते हुए केवल चीखने चिल्लाने तक ही सीमित रह गए हैं। अपनी बात बीच में रोकते हुए मैंने उससे कहा- छोड़ो इन बातों को तुम बताओ इंटरव्यू क्यों देना चाहते हो? उसने कहा- तुमने अभी कहा था कि देश बदल चुका है, जो गलत है, मैं कड़े शब्दों से इसका खंडन करता हूं ,देश नहीं बदला है, लोग बदल गए हैं। हमारे मालिक बदल गए हैं जिन्होंने या तो हमको देश के अमीरों को बेच दिया है या गिरवीं रख दिया है। मेरी गरीबी इसका सबूत है। पर इस समय मैं अपनी गरीबी पर बात करने नहीं आया हूं और ना ही यह बताने आया हूं कि मैं जन्मजात साधू नहीं हूं। मैं तुम्हारे कार्यालय में अपने साथ हुए धोखे पर बात करने आया हूं,उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने आया हूं। मैंने उसकी पीड़ा को समझते हुए सहानुभूति दिखायी और पूछा-तुम्हारी अपनी पहचान खत्म होने से भी ज्यादा बड़ा कोई और नया धोखा हुआ है ? उसने कहा हां...! आज सुबह ही हुआ है। मैंने पूछा कैसा धोखा हुआ है और किसने दिया है? उसने एक समाचार पत्र मुझे दिखाते हुए कहा- इस समाचार पत्र ने मुझे धोखा दिया है। मैंने समाचार पत्र हाथ में पकड़ते हुए पूछा- इसने क्या धोखा दिया है तुम को? उसने कहा- मैंने सुबह का नाश्ता नहीं किया है,चाय भी नहीं पी है। उसकी इन बातों का अर्थ ना समझते हुए मैंने पूछा- इसमें समाचार पत्र का क्या दोष है? उसने कहा-केवल ₹3 ही थे मेरे पास, मैंने चाय नहीं पी उन पैसों से समाचार पत्र खरीद लिया। अब तुम खुद ही देख लो,12 पन्नों के इस पत्र में 9 पन्नों पर पूरे पूरे पेज के विज्ञापन हैं जिन में अधिकतर में सरकार की उन नीतियों का उल्लेख है जो धरातल पर कहीं नहीं हैं, फिर उसने मेरी ओर देखा और कहा, हमारी कोई इज्जत ही नहीं है हमें फेक न्यूज़ बेची जा रही हैं। मैंने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उस से कहा -तुम्हें समाचार पत्र नहीं खरीदना चाहिए था तुम इन पैसों की चाय पी लेते। उसने कहा मुझे अपने बच्चों की फिक्र है। तुम ही बताओ क्या हमारे बच्चों की सब आवश्यकताएं सन्यासी हो गई हैं। देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। सब ने सुबह की चाय पी ली है। सबके हाथ में मिनरल वाटर की बोतलें थमा दी गई हैं। सबको भरपेट पिज़्ज़ा व फल फ्रूट मिल गए हैं। सब स्वस्थ हो गए हैं। सब बच्चे नौकरी करने लगे हैं। सबको कोरोना वैक्सीन मिल गई है। यही सब कुछ जानने के लिए मैंने समाचारपत्र खरीदा था परंतु वहां व्यवसाय और बाज़ारबाद तो मिला पर देश या उसकी मूल समस्याएं नहीं मिलीं। सब फ्रॉड है। मेरे ₹3 डूब गए।
अपनी सारी पूंजी डुबो देने वाले व्यक्ति का दुख सुनने के बाद मैं यह नहीं समझ पाया कि इसको किन शब्दों से समझाऊं कि हमारे देश ने विकास की जिस गति को अपनाया है उसमें गरीब या उसकी समस्याओं को कोई स्थान नहीं है, परंतु यह शब्द मैं उससे कह नहीं सका वह अब भी भावुक होते हुए यही कह रहा था कि मुझे इंटरव्यू देना है। पत्रकार बुलाओ।
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शाहिद हसन शाहिद
70093-16992
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Beautiful
ReplyDeleteماشاءاللہ بہت خوب۔اللہ کرے زور قلم اور زیادہ۔۔۔۔ بہت ہی عمدہ کاوش نظر قارئین کی گئی ہے۔۔۔۔۔
ReplyDeleteBilkul sahi kaha hai ji
ReplyDeleteکیا خوب طنز کسا ہے بہت اثردار ہے
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