Sunday, November 1, 2020

पहचान कौन ?

पहचान तो लिया होगा....! दरवाजे पर खड़ी गेहूं के आटे से बनी रोटी ने मुझसे इस प्रकार पूछा,जैसे वह खाने लायक रोटी ना होकर तलाक शुदा पत्नी हो और कटाक्ष करते हुए पूछ रही हो, पहचान कौन ?
मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा-पहचान लिया और क्यों नहीं पहचानूंगा ? तुम वही रोटी हो जिसने युगों-युगों से समय का पहिया थाम कर रखा है। जिसने अपना रुतबा फकीरों की कुटिया से राजाओं के महलों तक हमेशा बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। जिसके लिए बार-बार युद्ध लड़े गए हैं और आज भी लड़े जा रहे हैं। तुम्हारे ना मिलने से कई मानव जातियां भूख के समंद्र में गार्क होकर अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। मैं जानता हूं तुम वही हो जिसकी तलाश में लोग अपना देश,परिवार और अपनी पहचान तक छोड़ देते हैं। 
रोटी ने धैर्य के साथ अपनी प्रशंसा या कथा सुनी और कहा ठीक कह रहे हो तुम....! मेरी आवश्यकता हर समय हर व्यक्ति,हर समाज और हर जीवित प्राणी को रही है। मेरा महत्व कल भी था और आज भी है और भविष्य में भी इसी प्रकार बना रहेगा, तुम यह भी जानते हो की मुझे प्राप्त करने के लिए सख्त मेहनत की शर्त हमेशा रही है। परंतु समय के बदलाव के कारण अब उस शर्त के अतिरिक्त कुछ नए बदलाव आ गए हैं। इन नए बदलाव के कारण ही मुझे घर-घर जाकर लोगों से पूछना पड़ रहा है कि नई शर्तें पूरी करेंगे तभी मैं उनका पेट भरने का आश्वासन दूंगी। 
यह रूप रोटी का मैंने पहली बार देखा था कि वह घर घर जाकर पूछ रही थी कि मेरी आवश्यकता है,तो मेरी शर्तें पूरी करो,तभी मैं तुम्हारा पेट भरने के लिए तैयार हूंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि दरवाजे- दरवाजे रोटी का भटकना स्मृद्धि या विकास का कारण नहीं है, जैसा कि पहले मेरे मन में विचार आया था या अनुभव था। यह एक लक्ष्य था जिसको प्राप्त करके ही रोटी गृह प्रवेश कर सकती थी। 
रोटी के इस रूप को देखकर मैं अचंभित हो उठा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं रोटी के प्रस्ताव पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया दूं। अमीर और गरीब का भेदभाव ना रखने वाली रोटी को मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था कि वह पेट भरने के लिए मेहनत के अतिरिक्त किसी दूसरी शर्तों का सहारा ले रही हो। मेरे मन में एक प्रश्न आया और मैंने उससे पूछा- घर में प्रवेश के लिए मेहनत के अतिरिक्त और क्या शर्त है तुम्हारी?
रोटी ने स्वयं को हवा में लहराते हुए कहा- शर्त, अनिवार्य भी है, जो मेहनत द्वारा मुझे प्राप्त करने से अतिरिक्त है। इससे पहले तो मेहनत के अतिरिक्त कोई और शर्त तुमको पाने के लिए नहीं होती थी। मैंने तर्क देते हुए पूछा।
वह समय मूर्खों का था,अब समय बदल गया है, रोटी ने दो टुक जवाब देते हुए कहा।
मैं समझ गया मुझे अपना आधार कार्ड किसी संस्था के साथ लिंक कराना पड़ेगा। यह भी अनिवार्य है,इसके अतिरिक्त भी एक शर्त और है। रोटी ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए उत्तर दिया। वह क्या है ? मैंने अचंभित होते हुए पूछा- उसने कहा राष्ट्रवाद साबित करने के लिए वंदे मातरम सुनाना अनिवार्य है। 
रोटी की शर्त सुनते ही मैं अचंभित रह गया। मुझे तुरंत अपने पड़ोसी का ख्याल आ गया जिसको वंदे मातरम नहीं आता था जबकि रोटी की उसे सख्त आवश्यकता थी। मैंने रोटी से कहा- तुम्हारी आवश्यकता मुझे भी है और मेरे पड़ोसी को भी है, परंतु तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिए मुझे 2 दिन का समय चाहिए। रोटी ने मेरा चेहरा देखते हुए प्रश्न करते हुए पूछा- तुमको वंदे मातरम नहीं आता है, तुम समय क्यों चाहते हो? मैंने कहा-आता है परंतु मेरे पड़ोसी को नहीं आता है। मैं इन 2 दिनों में अपने पड़ोसी को वंदे मातरम याद करा दूंगा।
यह कहते हुए मुझे अपने शब्दों में खुशामद का भाव साफ नजर आ रहे थे जबकि रोटी का चेहरा भावहीन था किसी हिटलर की तरह।
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शाहिद हसन शाहिद
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