Monday, November 30, 2020
लव-जिहाद
Friday, November 20, 2020
चटपटी चाट के पत्ते
मेरे दिल के डॉक्टर का कहना है कि मैं नमक और तेज मसालों का सेवन ना करूं क्योंकि मैं ब्लड प्रेशर का मरीज हूं।
हड्डियों का डॉक्टर कहता है कि दही,खट्टी- मीठी चटनी, छिलके दार दालें, दूध से तैयार किसी भी प्रकार के व्यंजन का सेवन ना करूं यह सब यूरिक एसिड उत्पन्न करते हैं। जिस कारण घुटनों का दर्द बढ़ जाता है।
मेरा अनुभव भी यही कहता है कि थोड़ा सा असंतुलित भोजन मेरे दिल की धड़कने तेज करने, सांस फूलने व घुटनों के दर्द को बढ़ाने के लिए प्रर्याप्त होता है।
स्वास्थ्य की इस खराब स्थिति के बावजूद, मैं अपनी फूली हुई सांस व एक वफादार दोस्त की तरह दिन-रात साथ रहने वाले अपने घनिष्ठ मित्र यानी घुटनों के दर्द के साथ नगर के मीना बाजार की मशहूर चाट वाली दुकान पर शाम होते ही पहुंच जाता हूं।
इस दुकान की चाट पापड़ी और गोलगप्पे अपने तीखे स्वाद और तेज़ मसालों के कारण शहर के चटोरों में काफी मशहूर हैं। दुकान पर स्वस्थ लोगों का हर समय मेला लगा रहता है।अब आप सोच रहे होंगे कि इन स्वस्थ चाट के चटोरों के बीच मेरा जैसा अस्वस्थ व्यक्ति जिस पर चाट खाने की पूर्णतः पाबंदी है वह अपने स्वास्थ्य का ख्याल ना रखते हुए चाट की दुकान पर जाने का जोखिम क्यों मोल लेता है? कौनसी ऐसी मजबूरी है कि बगैर चाट खाए यह व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता? चाट की दुकान से उठने वाले मसालों की सुगंध उससे कुछ भी अनर्थ करा सकती है। इन प्रश्नों के उत्तर में, मैं केवल इतना ही कहूंगा की चाट की दुकान पर जाना मेरी कोई मजबूरी नहीं है। मुझे स्वंय पर और अपनी ज़ुबान पर इतना यकीन और भरोसा है कि स्वादिष्ट चाट मेरी सेहत से खिलवाड़ करने का हौसला नहीं कर सकती। मेरे वहां जाने का कारण तो एक तलाश है जो मुझे उन गरीब बच्चों के दरमियान ले जाती है, जो चाट खाने की अपनी चाहत में अमीरों द्वारा फेंके चाट के झूठे पत्ते प्राप्त करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। नंग धड़ंग यह मासूम बच्चे अपनी फ्री स्टाइल कुश्ती दिखाते समय चोट भी खा जाते हैं फिर भी हार नहीं मानते और झूठे पत्तों को अपना हक़ समझते हुए अपनी जद्दोजहद में अपने ही भाइयों के साथ लड़ने का कौशल अमीरों को दिखाते नहीं थकते हैं, जबकि चाट खाने के शौकीन लोग अपने मनोरंजन के लिए अपने चाट के झूठे पत्ते उन बच्चों की ओर रुक-रुक कर फेंकते हैं, ताकि तमाशा जारी रहे। मैं तो केवल एक मुर्दा समाज की तरह यह देखने जाता हूं कि यह गरीब बच्चे कब बड़े होंगे और कब इस बात को समझेंगे कि उनकी गरीबी का मजाक उड़ाने वाले इन अमीरों के लिए वह कब तक मनोरंजन का साधन बनते रहेंगे। अमीरों की सोच में कब बदलाव आएगा यह मैं नहीं जानता या उन में कब कोई ऐसा अमीर पैदा होगा जो इस मनोरंजन के बाद या पहले इन बच्चों को एक चाट का पत्ता खिलाने का हौसला रखता हो यह भी मैैं नहीं जानता, हां...! यह अवश्य जानता हूं कि बच्चे गरीब हैं, पिछड़े हैं और जरूरतमंद हैं।अमीरों को सोचना चाहिए की चाट की खुशबू और चोट का दर्द तो सब को एक ही समान विचलित करता है चाहे वह अमीर हो या गरीब हो।
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