वह एक ऐसा साधु है जो शनी और मंगल के प्रकोप से मुझे बचाने और मेरी हर मनोकामना पूरी करने के उद्देश्य से सप्ताह में कई बार मुझसे सरसों का तेल, काली दाल ले जाता है। इसके अतिरिक्त भी वह नित्य नए बहानों से मोटी रक़में मेरी जेब से निकालने का मास्टर है। अपनी इस अनोखी कला के कारण ही कभी कभी वह मुझे वित्त मंत्री लगने लगता है, रक़म ठगते समय वह राष्ट्रीय हित का सहारा लेकर मुझे भावुक बनाने में सफल हो जाता है और मैं हर बार उसके हाथों मुर्ख बन जाता हूं। एक आम आदमी जो मैं ठहरा। झोला छाप वह एक ऐसा साधु है जो मुझे यह विश्वास दिलाने में सफल है कि मेरा दिया हुआ दान मेरे विकास और मेरी जान माल की हिफाजत की फुल फलेज गारंटी है और साधु स्वयं मेरी हर इच्छा पूरा करने के लिए वचनबद्ध है। दान की इस शक्ति को समझते हुए मैं साधु महाराज का एक प्रकार से अंध भगत बन चुका हूं जो स्वयं को बड़ा भाग्यशाली और गोरवान्वित महसूस करता है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैंने साधु पर विश्वास के रूप में एसबीआई में एक बड़ी रकम फिक्स डिपॉजिट कर रखी हो, जिसको मैं जब चाहूं, जहां चाहूं, जितना चाहूं कैश करा सकता हूं।
एक दिन मैंने साधु की वचनबद्धता को परखने के तौर पर उससे कहा- महाराज मेरे मन की इच्छा तो यह है कि मैं देश का प्रधानमंत्री बनूं परंतु देश की परिस्थितियों को देखते हुए अब मैं यह चाहता हूं कि आप मुझे केवल "निठल्ला" बनने का वरदान दें।
मेरी अजीब सी इच्छा सुनने के बाद साधु ने कहा "निठल्ला" तो मैं तुमको बना दुंगा परन्तु पहले तुम्हें राष्ट्र हित में एक काम करना होगा। मैंने पूछा वह क्या है ?
साधु ने तुरन्त कहा- खुले आकाश में उड़ने वाले उन काले कौवों को भगाना होगा जिनकी कांव-कांव ने देश के शांतिपूर्ण माहौल को दूषित कर रखा है।
साधु के इस सुझाव को मैं समझ नहीं सका कि वह ऐसा क्यों कह रहा है कि मैं निठल्ला बनने से पहले कौवे उड़ाऊं। साधु ने तो मुझे विश्वास दिलाया था कि वह मेरी हर मनोकामना पूरी करने की शक्ति रखता है, सो मैंने निठल्ला बनने की अपनी इच्छा कह दी तो यह कंडिशन एप्लाई शर्तें कहां से आ गयीं ?
स्वाभाविक तो यह था कि साधु मुझसे पूछता कि अचानक तुमने प्रधानमंत्री बनने की अपनी चाहत से मुंह क्यों मोड़ लिया?
"निठल्ला" बनने का विचार तुम्हारे मन में कहां से आ गया?
यह शब्द तुमने कहां से सिखा?
जिसके उत्तर में, मैं उसको बताता कि यह शब्द मैंने किसान आंदोलन से सिखा है और वहीं से मैंने यह भी जाना है कि आजकल देश निठल्लों को काफी इज़्ज़त की निगाह से देख रहा है। निठल्लों का ग्राफ शेयर मार्केट की तरह उछालें मार रहा है। इसी गर्व को ग्रहण करने की ख्वाहिशों ने मुझे यह साहसी फेसला लिने पर मजबूर किया है। परंतु जुमले बाज़ साधु ने मेरी हसरत पर पानी फेरते हुए बड़ी चतुराई से मुझे असल मुद्दे से भटका कर मेरा सामना काले कौवों से करा दिया जिनको वह आतंकवादी समझता है।
अब मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि साधु के बताए आतंकियों को कहां तलाश करूं। साधु किन आतंकियों की बात कर रहा है।
कहीं उसका इशारा उन कौवों की ओर तो नहीं है जो गत चार पांच वर्ष में देश के कौने कौने में कभी किसान आंदोलन जीवी बनकर,कभी आतंकवादी जीवी, कभी नक्सलवादी जीवी, कभी अर्बन नक्सलवादी जीवी, कभी टुकड़े टुकड़े गेंग जीवी,कभी मजदूर जीवी,कभी व्यापारी जीवी,कभी निम्न व मध्य वर्गीय जीवी,कभी शिक्षक जीवी, कभी सहायक शिक्षक जीवी, कभी पाकिस्तानी जीवी, कभी चाइनीज़ जीवी, कभी लव जिहाद जीवी, कभी तीन तलाक़ जीवी, कभी सीए विरोधी जीवी, कभी एन आर सी विरोधी जीवी, कभी जयश्री राम विरोधी जीवी, कभी डॉक्टर जीवी, कभी नर्स जीवी, कभी प्रोफेसर जीवी, कभी विद्यार्थी जीवी, कभी आंगन वाड़ी वर्कर जीवी और ना जाने किस किस रूप के आंदोलन जीवी कौवे बनकर देश के आकाश में कांव कांव करते सुनाई दे रहे हैं। इन कौवों तक पहुंचते ही मेरी हालत अब कुछ इस प्रकार हो गई है कि जब मैं सोता हूं तो मुझे सपने में कौवे नज़र आते हैं। जागता हूं तो मुझे हर व्यक्ति कौवा जैसा दिखाई देता है और मैं उसके चेहरे पर कौवे की नुकेली चोंच देखकर नफरत से मुंह मोड़ लेता हूं। निगाहें हर समय आसमान और ज़मीन पर नए नए कौवे तलाश करती रहती हैं। विपक्ष का तो हर नेता मुझे कौवा ही नज़र आता है।
कौवों के इन माया जाल से जितना खुद को आज़ाद कराना चाहता हूं उतना ही उसमें फंसता जा रहा हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी इस हालत के लिए किसको जिम्मेदार ठहराऊं.....?
खुद को.....?
अपनी इच्छा को.....?
साधु को.....?
या कौवों को.....?
राष्ट्रहित में किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही होगी।
मुजरिम कोई तो है इन परिस्थितियों का।
ऐसा मुजरिम जिसको माफ नहीं किया जा सकता।
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शाहिद हसन शाहिद
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